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कलाम
ये कहाँ थी मेरी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होतामेरी तरह काश उन्हें भी मेरा इंतिज़ार होता
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
फँसा जब से दिल-ए-शैदा सनम की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ मेंबसर होती है हर शब एक ही ख़्वाब-ए-परेशाँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैंबरहमन बन के ख़ुद गर्दन में हम ज़ुन्नार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
फिरा ज़माना में चार जानिब सनम सरापा तुम्हीं को देखाहसीन देखे जमील देखे पर एक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
ख़ुदा को याद करता हूँ सनम की आश्नाई मेंशराब-ए-शौक़ पीता हूँ मैं अपनी पारसाई में
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
दिल है सनम-ख़ाना मिरा जब से बसी सूरत तिरीकाफ़िर हूँ तेरे 'इश्क़ में मस्लक मिरा है काफ़िरी
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
ओ सनम तेरे न आने की क़सम खाता हूँ मैंइस दिल-ए-बेताब को दिन-रात समझाता हूँ मैं