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कलाम
ग़म में जीता हूँ तिरे हिज्र में मरता हूँ मैंख़ुद ही बीमार हूँ और ख़ुद ही मसीहा हूँ में
आक़िल रेवाड्वी
कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपनाउसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी