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कलाम
तड़पते लौटते सीना-सिपर होते हैं बिस्तर परदहान-ए-ज़ख़्म का हर दाँत है क़ातिल के ख़ंजर पर
शरफ़ुद्दीन कानपुरी
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
ये असीर-ए-रंज-ओ-राहत में असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानानाभला क्या समझ सकेगा मुझे ना समझ ज़माना