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कलाम
अनवर फ़िरोज़पुरी
कलाम
तेरी आरज़ू से ख़ाली है जो दिल वो बे-सुकूँ हैतेरी आरज़ू है जिस को उसे भी सुकूँ कहाँ से
मोहम्मद समी
कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
सुकूँ की जुस्तुजू में क्यूँ है ऐ 'सीमाब' सरगर्दांकहीं आसूदगी मिलती नहीं उन के परेशाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ख़्वाहिश-ए-जन्नत न गुलज़ार इरम चाहूँ 'फ़राज़'हूँ तिरा बंदा तिरे दर पर सुकूँ पाता हूँ मैं
फ़राज़ वारसी
कलाम
सुकूँ है कुछ इसी से इज़्तिराब-ए-ज़िंदगानी मेंवगरना ज़ात-ए-बाक़ी पैकर-ए-इंसान-ए-फ़ानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
कब था नसीब में सुकूँ पहले ही हाल था ज़ुबूँबढ़ गईं और उलझनें गेसू-ए-यार देख कर