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कलाम
जिसे मैं शाम-ए-ग़ुर्बत इक शुगून-ए-नहस समझा थावो तारा रहनुमा-ए-सुब्ह-ए-मंज़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
सिराज औरंगाबादी
कलाम
ज़माना करवट बदल रहा है नई-नई चाल चल रहा हैसहर न हो जाए ज़िंदगी की अगर यही शाम-ए-आरज़ू है
कामिल शत्तारी
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
रू-ए-ज़ेबा गर न देखे चश्म वो है चश्म-कोरतिरे क़दमों पर न हो जब सर वबाल-ए-दोश है
अब्दुल हादी काविश
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
हो गया मा’लूम टूटा जब तिलिस्म-ए-ज़िंदगीमा'रिफ़त ऐ’न-ए-ख़ुदा की है ये ’इरफ़ान-ए-हयात
अब्दुल हादी काविश
कलाम
नाला-ए-दिल लब से जिस दिन आश्ना हो जाएगादेख लेना तुम कि 'आलम क्या से क्या हो जाएगा
अब्दुल क़ादिर शरफ़
कलाम
कुम्हला गया था मा'रिफ़त-ए-तौहीद का जो फूलइक चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ में वाइ'ज़ वो खुल गया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
खयाल-ए-मा-सिवा पी की नगरिया कैसे ले जाऊँवो यक्ता है मैं दूजे की गगरिया कैसे ले जाऊँ