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कलाम
बर्गश्ता-ओ-बद-ज़न सा पाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़अब हम तिरी महफ़िल से जाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़
ताबिश कानपुरी
कलाम
आंधियों और मौज-ए-तूफ़ाँ से गुज़र जाने के बा'दनाव डूबी है मिरी दरिया उतर जाने के बा'द
साग़ार सिल्लोडी
कलाम
न हुई फिर किसी आ'शिक़ पे जफ़ा मेरे बा'दबन गए दस्त-ए-सितम दस्त-ए-दुआ' मेरे बा'द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'दयाद आती ही रही मेरी वफ़ा मेरे बा'द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
सब का मर्जा’ बन गया है सब को ठुकराने के बा'दज़िंदगी पाई किसी ने तुम पे मर जाने के बा'द
कामिल शत्तारी
कलाम
शान-ए-ख़ुदा भी आप महबूब-ए-ख़ुदा भी आप हैंतज्सीम-ए-हक़ भी आप हैं और हक़-नुमा भी आप हैं
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल सेज़मीं गर्दूं से टकराई जहाँ दिल मिल गया दिल से