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कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
एक 'आलम है कि मक़्तल में है क़ातिल की तरफ़धार ख़ंजर की फ़क़त ’आशिक़-ए-बे-दिल की तरफ़
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
गो देख चुका हूँ पहले भी नज़्ज़ारा दरिया-नोशी काएक और सला-ए-आम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
क़तील शिफ़ाई
कलाम
वो हसीं हर एक अदा हसीं मगर इतनी सब को नज़र नहींकोई रूप शान-ए-जमाल में कोई रूप शान-ए-जलाल में
कामिल शत्तारी
कलाम
जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गयाहुईं जिस पे तेरी नवाज़िशें वो बहार बन के सँवर गया
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
है अ'जब चमन का ये रंग ढंग कि आब का तो है एक रंगये हज़ारों क़िस्म के फूल हैं कहीं सुम्बुल और गुलाब है
ग़ौसी शाह
कलाम
रात कटती है गिन-गिन के तारे नींद आती नहीं एक पल भीआँख लगती नहीं अब हमारी आँख उस बुत से ऐसी लगी है