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कलाम
शाह महमूदुल हसन
कलाम
ये है वो मक़ाम कि जिस जगह ये ‘अमीर’-ए-साबरी खो गयान रही है जल्वों की आरज़ू न ही जल्वा-गर की तलाश है
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
रहने दो चुप मुझे न सुनो माजरा-ए-दिलमैं हाल-ए-दिल कहूँ तो अभी मुँह को आए दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
बस उसी ख़ता पे मिरे लिए मय-ए-ला-ला-गूँ है न जाम हैकि गदाई दर-ए-मय-कदा मरी तिश्नगी पे हराम है