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कलाम
तिरी मी’आद-ए-ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी ख़ुश होक़फ़स टूटे न टूटे मैं तुझे आज़ाद करता हूँ
हरी चाँद अख़्तर
कलाम
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँदअपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
राही मासूम रज़ा
कलाम
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा