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कलाम
जो अहल-ए-दिल हैं वो हर दिल को अपना दिल समझते हैंमक़ाम-ए-'इश्क़ में हर गाम को मंज़िल समझते हैं
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ परमैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
वस्ल है पर दिल में अब तक ज़ौक़-ए-ग़म पेचीदा हैबुलबुला है ऐ'न दरिया में मगर नम-दीदा है
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की
अज्ञात
कलाम
ग़ुंच-सा लब बंद है शोर-ए-‘अनादिल दिल में हैलब पे है मोहर-ए-सुकूत इक शोर बरपा दिल में है