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कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की
अज्ञात
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
दर-हक़ीक़त इंक़िलाब-ए-ज़िंदगी ए'जाज़ हैज़र्रा ज़र्रा ख़ाक-ए-हस्ती का जहान-ए-राज़ है
माहिरउल क़ादरी
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
हनूज़ इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी हैदिल-ए-अफ़सुर्दा गोया हुजरा है यूसुफ़ के ज़िंदाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
शब-ए-वस्ल-ए-सनम में तो न आए मुर्ग़-ए-सहर चलाहमारा लुत्फ़ जाता है तिरी क्यूँ जान जाती है
सफ़ीर बिलग्रामी
कलाम
मुबारक ऐ दिल-ए-शैदा कि वस्ल-ए-दिल-रुबा होगाबहार-ए-’ऐश आती है ग़म-ए-फ़ुर्क़त हुआ होगा
सफ़ीर बिलग्रामी
कलाम
कभी तार-ए-क़फ़स कटता नहीं शहबा-ए-हिज्राँ मेंनए जौहर हैं ऐ क़ातिल मिरी तेग़-ए-गरेबाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
इस क़दर आँखें मिरी महव-ए-तमाशा हो गईंपुतलियाँ पथरा के आख़िर संग-ए-मूसा हो गईं