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कलाम
क़दम याँ बुल-हवस मत रख कि जाँ-बाज़ों का कूचा हैभला अहल-ए-हवस को सर के कटवा ने से क्या मतलब
अज्ञात
कलाम
बुल-हवस ’इश्क़ को तू ख़ाना-ए-ख़ाली मत बूझइस का आग़ाज़ तो आसान है अंजाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
सर न फोड़ें अपना दीवारों से क्यूँ कर बुल-हवसबज़्म-ए-आदा में मुझे वो आश्ना को हैं
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
कलाम
मोहब्बत को ख़याल-ए-मा-सिवा छू भी नहीं सकताहवस की जादा-पैमाई फ़क़त सूद-ओ-ज़ियाँ तक है