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कलाम
माना कि तुम हो जान-ए-इ'श्क़ मैं भी तो जान-ए-हुस्न हूँतुम हो जो जान ग़ज़नवी रूह तन अयाज़ में
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
बुतों को महरम असरार तू ने क्यूँ क्या साहबकि ये काफ़िर हर इक ख़ल्वत-सरा-ए-दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
अगर ये रेख़्ता सय्यद कोई मशहद में ले जाएतयक़्क़ुन है कि शौहरत-याफ़्ता हो मुल्क-ए-ईराँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
ऐ दिल-ए-शोख़-ओ-हीला जो ज़ेर-ए-मकीन-ए-रंग-ओ-बूताइर-ए-क़दह को भी ले दाम-गह-ए-मजाज़ में
असग़र गोंडवी
कलाम
स्वामी रामतीर्थ
कलाम
कहाँ अब वो सुरूर-ए-दौर-ए-अव्वल बज़्म-ए-हस्ती मेंजिसे कहते हैं दुनिया है वो ऐ 'मैकश' ख़ुमार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
एहसान दानिश
कलाम
ठहर जाता है चलते चलते यूँ अफ़्साना-ए-हस्तीकि जैसे कहते कहते भूल पड़ जाए कहानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
फ़ुर्क़त-ए-तैबा में ये मिस्कीन ग़िज़ा ठहरे मेरीरात-ओ-दिन अब लुक़मा-ए-अंदोह-ओ-ग़म खाते हैं हम