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कलाम
लब्ब-ए-लुबाब-ए-जुमला कमालात-ए-'इश्क़ हैमुम्किन नहीं कि 'इश्क़ भी हो औलिया न हो
गुलाम मुहम्मद जल्लानवी
कलाम
हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी गयाये सरापा शोख़ी-ए-दुज़्द-ए-हिना थी मैं न था
मिर्ज़ा अबुल मुज़फ़्फ़र
कलाम
ऐ सय्यद मोहम्मद जान 'क़दीर' तेरी सूरत में है भेद छुपादीवाना करीमुल्लाह ने दीवाना बना कर छोड़ दिया
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
आ ऐ अजल कि नाम-ए-ख़ुदा ले के ज़ौक़ मेंज़िक्र-ए-हबीब-ए-हक़ भी किए जा रहा हूँ मैं
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
मोहम्मद बादशाह क़ादरी
कलाम
ढूँढ उस जगह किशवर-ए-’अली बाब-ए-’इल्म है’उक़्दा वहीं से होवे है हल मुश्किलात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
पस-ए-दीवार जानाँ दफ़्न करना 'सहव' मुज़्तर कोकि पहलू में दिल-ए-मुज़्तर है कुशा उन की चितवन का
आग़ा मुहम्मद दाऊद
कलाम
तुम्हें मैं जानता हूँ तुम बदलते हो हज़ारों रंगनहीं मैं ग़ैर उठा कर पर्दा-ए-रू-ए-बशर आओ
आग़ा मुहम्मद दाऊद
कलाम
मोहम्मद सर से पा तक मज़हर-ए-हुस्न-ए-इलाही हैंकि आए दहर में तस्वीर-ए-सूरत आफ़रीं हो कर
बेदम शाह वारसी
कलाम
ज़माना आख़िरी आया ख़ुदी खोया ख़ुदा पायाजमाया पीर-ए-कामिल ने यही कह कि क़दम मेरा
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
दौर-ए-ख़ुर्शीद की भी हश्र में हो जाएगी सुब्हता अबद दूर-ए-मोहम्मद का है रोज़-ए-अव्वल
मोहसिन काकोरवी
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन