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कलाम
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला'इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला
हसन रज़ा बरेलवी
कलाम
फिरे ज़माना में चार जानिब निगार-ए-यकता तुम ही को देखाहसीन देखे जमील देखे व-लेक तुम सा तुम ही को देखा
अज्ञात
कलाम
फिरा ज़माना में चार जानिब सनम सरापा तुम्हीं को देखाहसीन देखे जमील देखे पर एक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
अगर का'बः का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाएतो फिर सज्दः मिरी हर लग़्ज़िश-ए-मस्ताना हो जाए
बेदम शाह वारसी
कलाम
'अक़्ल का हुक्म है उधर तू न जाना ऐ दिल'इश्क़ कहता है कि फिर वाँ से न आना ऐ दिल
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
ऐ यार न मुझ से मुँह को छुपा तू और नहीं मैं और नहींहै शक्ल तेरी मेरा नक़्शा तू और नहीं मैं और नहीं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है