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कलाम
जहान-ए-आशिक़ी कहते हैं जिस को वो जहाँ मैं हूँमोहब्बत की ज़मीं मैं हूँ वफ़ा का आसमाँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
दिल पे ज़ख़्म खाते हैं जान से गुज़रते हैंजुर्म सिर्फ़ इतना है उन को प्यार करते हैं
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
कहते हैं किस को दर्द-ए-मोहब्बत कौन तुम्हें बतलाएगाप्यार किसी से कर के देखो ख़ुद ही पता चल जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कलाम
ओ सनम तेरे न आने की क़सम खाता हूँ मैंइस दिल-ए-बेताब को दिन-रात समझाता हूँ मैं