हम क़द-ए-यार को सर्व-ए-चमनी कहते हैं
हम क़द-ए-यार को सर्व-ए-चमनी कहते हैं
ज़ुल्फ़-ए-दिल-दार को मुश्क-ए-ख़ुतनी कहते हैं
वस्फ़ उन के दुर्र-ए-दंदाँ का करूँ क्या तहरीर
जो मुबस्सिर हैं वो हीरे की कनी कहते हैं
नोक-ए-मिज़्गाँ की दिखा कर वो सितम-गर बोला
नेज़ा-बाज़ो इसे बर्छी की अनी कहते हैं
रग-ए-गुल करती है उस जिस्म पे कार-ए-नश्तर
देख ऐ दिल उसे नाज़ुक-बदनी कहते हैं
बातों बातों में लिया छीन हमारे दिल को
इन्हीं चालों को तो सब राह-ज़नी कहते हैं
मौत भी आए तो कूचे में उन्हीं के आए
दो-जहाँ में जिन्हें मक्की मदनी कहते हैं
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