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कलाम
लाए थे मुल्क-ए-अदम से साथ अपने नक़्द-ए-दिलअब यहाँ से उस के बदले दाग़-ए-फ़ुर्क़त ले चले
औघट शाह वारसी
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
उसी के इंतिज़ार-ए-दीद में हैरान है नर्गिसउसी के 'इश्क़ में ख़ूनीं-जिगर बर्ग-ए-हिना भी है
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
डरें क्यूँ अहल-ए-’इस्मत ताबिश-ए-ख़ुर्शीद-ए-महशर सेकि होगा सर पर उन के साएबाँ यूसुफ़ के दामन का
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तू नवा है महरम-ए-गोश होवो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन