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कलाम
दूर हैं जब तलक तुम से हम कैसे होगा मदावा-ए-ग़मएक दफ़अ' तुम मिलो तो सनम ग़म ख़ुशी में बदल जाएगा
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
ऐ शो’ला-ए-जवाला जब से लौ तुझ से लगाए बैठे हैंइक आग लगी है सीने में और सब से छुपाए बैठे हैं
कामिल शत्तारी
कलाम
ऐ जबीन-ए-शौक़ तेरी क़ुव्वतों के मैं निसारएक सज्दे से क़ियाम-ए-बज़्म-ए-इम्काँ कर दिया
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
क्या कोई बज़्म-ए-हसीं ज़ेर-ए-ज़मीं और भी हैफूल क्यूँ चाक-ए-जिगर चाक-ए-गरेबाँ निकले
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
ख़ुदा से या रसूल-अल्लाह बंदों की सिफ़ारिश करकि बरसे सब कहें बारान-ए-रहमत ख़ूब सा झर-झर
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
अलिफ़-अल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पाणी मिलाया हर रगे हर जाई हू