आँखों में आ गया है कोई ख़्वाब बरमला हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
आँखों में आ गया है कोई ख़्वाब बरमला हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
शादाब जावेद
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आँखों में आ गया है कोई ख़्वाब बरमला हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
दश्त-ए-तख़य्युलात में चलने लगी हवा हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
अब रंज-ओ-ग़म की शामें भी शब में बदल गईं अब आफ़्ताब-ए-हुस्न की किरनें भी ढल गईं
होने को ’अन-क़रीब है वक़्त-ए-सहर सुना हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
तुम ने वफ़ा के वा'दे वफ़ा कर लिए चलो ख़ुद को उठाओ सीने में महशर लिए चलो
तस्वीर-ए-काएनात का नक़्शा बदल चुका हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
यौम-ए-अलस्त याद है और याद है वो बात वो एक बात जिस के सबब है ये काइनात
तुम को जवाब मिल ही गया इस सवाल का हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
यूँ तो बहार-ए-वक़्त मुई'न की है असीर शादाबियत भी चंद ज़मानों की है अख़ीर
जावेद होना चाहता है तो क़दम बढ़ा हय्या-’अलल-फ़लाह-ओ-हय्या-’अलल-फ़लाह
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