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कलाम
अगर मंज़ूर है पीना मय-ए-वहदत के साग़र कालिया कर नाम हर दम हज़रत साक़ी-ए-कौसर का
ख़्वाजा ईलाही बख़्श मारूफ़
कलाम
तू शैख़-ए-जाम कर मुझ को क़सम है पीर-ए-मुग़ तुझ कोसक़्क़ा हम रब्बहुम पढ़ के शराब आगे मिरे धर दे
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
न असीर-ए-क़ैद-ए-सुजूद में न रहीन-ए-जौर-ए-वुजूद मेंकि ये आ'शिक़ों की नमाज़ है न सुजूद है न क़ियाम है
कौसर आरफ़ी
कलाम
सई’द शहीदी
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
मरातिब वो दिए हैं अहमद-ए-मुख़्तार को हक़ नेलिए रहते थे जिब्रील-ए-अमीं क़दमों को शहपर पर
शरफ़ुद्दीन कानपुरी
कलाम
अब्र है जाम है मीना है मय-ए-गुल-गूँ हैहै सब अस्बाब-ए-तरब साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
मुश्किल जो 'नियाज़' आई तुम्हें फ़क़्र में दरपेशजा शाह-ए-नजफ़ हैदर-ए-कर्रार से कह दो