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कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ये महफ़िल है यहाँ पर कौन रोकेगा ज़बाँ मेरीतुम्हें दिल थाम कर सुनना पड़ेगी दास्ताँ मेरी
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
रौशन जहाँ है जिस से वो महफ़िल तुम्हें तो होदिल जिस को ढूँढता है वो मंज़िल तुम्हें तो हो
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
अनवर मिर्ज़ापुरी
कलाम
हुस्न की ख़्वाबीदा महफ़िल को जगा देता हूँ मैंकिस बुलंदी से ख़ुदा जाने सदा देता हूँ मैं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कलाम
अब्दुल हादी काविश
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी