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रोज़-ए-महशर सुर्ख़़रु होने का अरमाँ चाहिएदिल में जोश-ए-उल्फ़त-ए-शाह-ए-शहीदाँ चाहिए
ग़ुल हुआ देख के महशर में तड़पना मेराइ'श्क़-ए-अहमद में हुआ हाल तमाशा मेरा
कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देनामगर कुछ सोच कर रहम आ गया जाओ दु'आ देना
सुनते हैं कि महशर में फिर जल्वा-गरी होगीक्या शाख़-ए-तमन्ना फिर इक बार हरी होगी
जब उन के आस्ताँ पे न महशर बपा हुआफैलाए नैन-ए-शौक़ वो सज्दा ही क्या हुआ
ऐ फ़ित्ना-ए-हर-महफ़िल ऐ महशर-ए-तन्हाईले फिर तिरा नाम आया ले फिर तिरी याद आई
जो न यहाँ देखे तुम कोमहशर में भी अंधा हो
महशर में होगी सामने उन के'उज़्र-ए-मोहब्बत हर 'उज़्र-ख़्वाही
मैं इस अंदाज़ से महशर में आयामिरे आगे मिरी रुस्वाइयाँ हैं
जब गुनहगार महशर मा जैहैं कभीलाज हमरे जिया की बचय्यो कभी
मुंतज़िर हश्र में है दामन-ए-तरमहर-ए-महशर की मेहरबानी का
हमें दोगे इन’आम क्या रोज़-ए-महशरजो हम बात बिगड़ी बनाएँ तुम्हारी
यहाँ क्या है महशर में मा'लूम होगातुम्हें शो'ला-रू यूँ जलाना किसी का
गुनाहगार हूँ मैं वाइ'ज़ो तुम्हें क्या फ़िक्रमिरा मुआ'मला छोड़ो शफ़ी-ए-महशर पर
ज़ाहिद उम्मीद है हमें दोज़ख़ की आग सेमहशर के रोज़ हज़रत-ए-मौला बचाएँगे
करेगी दावर-ए-महशर को शर्मसार इक रोज़किताब-ए-सूफ़ी-ओ-मुल्ला की सादा-औराक़ी
सुब्ह-ए-वस्ल-ए-महशर बपा हो रहा हैमिरा मुझ से दिलबर जुदा हो रहा है
रग रग में दिल की जज़्ब है महशर-ए-उमीदअंदाज़ा-ए-हुजूम-ए-तमन्ना करे कोई
करना है हया कब तक ऐ पर्दा-नशीं कर लेमहशर में देखेंगे तुझे तेरे शैदाई
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