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रोज़-ए-महशर सुर्ख़़रु होने का अरमाँ चाहिएदिल में जोश-ए-उल्फ़त-ए-शाह-ए-शहीदाँ चाहिए
ग़ुल हुआ देख के महशर में तड़पना मेराइ'श्क़-ए-अहमद में हुआ हाल तमाशा मेरा
कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देनामगर कुछ सोच कर रहम आ गया जाओ दु'आ देना
सुनते हैं कि महशर में फिर जल्वा-गरी होगीक्या शाख़-ए-तमन्ना फिर इक बार हरी होगी
ऐ फ़ित्ना-ए-हर-महफ़िल ऐ महशर-ए-तन्हाईले फिर तिरा नाम आया ले फिर तिरी याद आई
यहाँ क्या है महशर में मा'लूम होगातुम्हें शो'ला-रू यूँ जलाना किसी का
सुब्ह-ए-वस्ल-ए-महशर बपा हो रहा हैमिरा मुझ से दिलबर जुदा हो रहा है
वो रंग लाई है रहमत तेरी सर-ए-महशरकि बे-ख़ता भी तरसने लगे ख़ता के लिए
करना है हया कब तक ऐ पर्दा-नशीं कर लेमहशर में देखेंगे तुझे तेरे शैदाई
ज़ाहिद उम्मीद है हमें दोज़ख़ की आग सेमहशर के रोज़ हज़रत-ए-मौला बचाएँगे
वो मेरे दीदा-ओ-दिल देख कर कहते हैं महशर मेंउन्ही झूटे गवाहों की शहादत होने वाली है
मैं हूँ वो पुर-गुनाह कि महशर में मेरे पासकोई नहीं नजात का सामाँ तिरे बग़ैर
सितम से बाज़ आ ज़ालिम क़ियामत होने वाली हैये पेश-ए-दावर-ए-महशर 'अदालत होने वाली है
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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