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कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
अज़ल से हूँ मैं शैदाई तुम्हारा तुम मिरी चाहतमेरा क़िस्सा तुम्हारे नाम पर ही मुख़्तसर होगा
फ़राज़ वारसी
कलाम
दिल-ए-दीवाना अपने पाँव फैलाए तो क्या 'सय्यद'बहुत ही मुख़्तसर है दोस्तो दामन बयाबाँ का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
हवादिस के भँवर में बैठ जा सीना-सिपर हो करयही मौजें कभी साहिल बनेंगी मुख़्तसर हो कर
सीमाब अकबराबादी
कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त का जब कुछ तूल कम होना नहीं मुमकिनतो मेरी ज़िंदगी का मुख़्तसर अफ़्साना हो जाए
बेदम शाह वारसी
कलाम
सुब्ह-ए-अज़ल से मैं चला शाम-ए-अबद तक आ गया’उम्र-ए-दराज़-ए-शौक़ है मेरी हयात-ए-मुख़्तसर