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कलाम
जब तिरे सिमटे हुए जल्वों को फैलाता हूँ मैंएक दिल में दो जहाँ की वुस’अतें पाता हूँ मैं
मुनव्वर लखनवी
कलाम
या दिन की बातें होती हैं या रात की बातें होती हैंये दुनिया है इस दुनिया में हर बात की बातें होती हैं
मुनव्वर बदायूँनी
कलाम
ज़र्रा ज़र्रा से अ'याँ है तेरी वहदत ऐ ख़ुदातेरे जल्वों से मुनव्वर है शबिस्तान-ए-हयात
अब्दुल हादी काविश
कलाम
सर-ए-मशरिक़ से मग़रिब तक जो नाज़िर आप हैं अपनेमुनव्वर ऐनमा से मुसहफ़-ए-रुख़्सार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुनव्वर नूर-ए-ईमाँ से ये कर देता है सीनों कोख़ुदा-ए-पाक-ओ-बरतर की 'इबादत का महीना है