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नज़र की मंज़िल-ए-मक़्सूद मेहर-ओ-माह नहींये जल्वा-गाह के पर्दे हैं जल्वा-गाह नहीं
मिस्ल-ए-तार-ए-नज़र नज़र में नहींइस तरह घर में हूँ कि घर में नहीं
जल्वा ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ नज़र देखते रहेक्या देखते हम उन को मगर देखते रहे
ज़र्रे-ज़र्रे में नज़र आती है रा’नाई मुझेयाद है हाँ याद है वो ’अहद-ए-बरनाई मुझे
जो रुख़्सार-ए-शह पे नज़र जाएगीगुलों से तबी'अत उतर जाएगी
जिस का हर ज़र्रा नज़र आता है सौदाई मुझेकाश मिल जाए वही महबूब-ए-हरजाई मुझे
ऐसी नज़र-फरोज़ थी बज़्म-गह-ए-निगार-ए-फ़नमेरी नज़र को भा गई अहल-ए-नज़र की अंजुमन
तुझे इक नज़र देखना चाहता हूँमैं इस के सिवा और क्या चाहता हूँ
गए दोनों-जहाँ नज़र से गुज़र तिरी शान का कोई बशर न मिलातिरी हर जगह देखी निराली फबन तिरा भेद किसी को मगर न मिला
अल्लाह के प्यारे सजन गाहे नज़र बर मन फ़िगनधो-धो पियूँ तुम्हरे चरन गाहे नज़र बरमन फ़िगन
ये सुरूर कैसा है साक़िया मुझे क्या नज़र से पिला दियाहै मता’-ए-होश लुटी-लुटी मुझे क्या तमाशा बना दिया
ख़िरद ने मुझ को अता की नज़र हकीमानासिखाई इश्क़ ने मुझ को हदीस-ए-रिंदाना
नज़र आते नहीं मुझ को निकलते हौसले दिल केइलाही ख़ैर करना काँपते हैं हाथ क़ातिल के
दो-'आलम में नज़र आता है जल्वा सर-ब-सर अपनातमाशा देखता है आप हुस्न-ए-ख़ुद-निगर अपना
यार अग़्यार में नज़र आयागुल हमें ख़ार में नज़र आया
जो नज़र आर-पार हो जाएवही दिल का क़रार हो जाए
सरगोशियाँ करती नज़र आती हैं फ़ज़ाएँदर-पर्दा ये मिलने का इशारा तो नहीं है
दिया है किस की नज़र ने ये ए'तिबार मुझेकि एक दम भी नहीं अपने पास बार मुझे
सुन लो कि रंग-ए-महफ़िल कुछ मो'तबर नहीं हैहै एक ज़बान गोया शम'-ए-सहर नहीं है
कैसा तेरे मक़्तल में तमाशा नज़र आयागर्दन कटी उसी की जो शैदा नज़र आया
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