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कलाम
दर पे किसी के आ गया दैर-ओ-हरम को देख करसज्दे में सब सनम गिरे मेरे सनम को देख कर
ग़ुलाम अहमद गिलिमी
कलाम
ये फ़ज़ा ये चाँदनी रातें ये दौर-ए-जाम-ओ-मयमस्तियों में ग़र्क़ हो जाने का मौसम आगया
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
ख़ुशी से दूर हूँ ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-’इशरत हूँसरापा दर्द हूँ वाबस्ता-ए-ज़ंजीर-क़िस्मत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
नीस्ती हस्ती है यारो और हस्ती कुछ नहींबे-ख़ुदी मस्ती है यारो और मस्ती कुछ नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
की होया बुत दूर गया दिल हरगिज़ दूर न थीवे हूसै कोहाँ ते वसदा मुर्शिद विच हुज़ूर दिसीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अफ़्साना मेरे दर्द का उस यार से कह दोफ़ुर्क़त की मुसीबत को दिल-आज़ार से कह दो