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कलाम
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह-ओ-दमनमुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
कलाम
'इश्क़ की बर्बादियों की फिर नई तम्हीद हैज़ख़्म-ए-दिल ताज़ा हुए हैं मेरे घर में 'ईद है
कामिल शत्तारी
कलाम
दाम-ए-ज़ीस्त में करता रहा दिल में पिन्हाँखुल गया फिर न मिरा भेद छुपा मेरे बा'द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
जब याद किया उस ने फिर किस की फ़रामोशीयूँ आते हैं होश 'अकबर' यूँ जाती है बे-होशी