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कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
मज़हबाँ दे दरवाज़े उच्चे राह रब्बाना मोरी हूपंडत ते मुलवाणे कोलों छुप छुप लंघिये चोरी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बदल सकती हैं कब तक़दीर-ए-आ'लम उन की तदबीरेंख़ुदा के हाथ में ख़ुद हैं ख़ुदी वालों की तक़दीरें
सीमाब अकबराबादी
कलाम
रूह-ए-रवाँ नग़्मा तुम नग़्मों का सोज़ साज़ मेंजान-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम जान-ए-जहान-ए-नाज़ में
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
'अजब क्या गर मुझे 'आलम ब-ईं वुस'अत भी ज़िंदाँ थामैं वहशी भी तो वो हूँ ला-मकाँ जिस का बयाबाँ था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलमतिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो