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कलाम
'इश्क़ में जो मंज़िल मिलती है यूँ ही नहीं मिलती 'कौसर'बरसों वीरानों के सरों पर ख़ाक उड़ाई लोगों ने
कौसर आरफ़ी
कलाम
ऐ सय्यद मोहम्मद जान 'क़दीर' तेरी सूरत में है भेद छुपादीवाना करीमुल्लाह ने दीवाना बना कर छोड़ दिया
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
मोहम्मद बादशाह क़ादरी
कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
कलाम
चला आहिस्ता-आहिस्ता तिरे कलिमा से दम मेरानज़्अ' में कैसे भूलूँ है वज़ीफ़ा दम-बदम मेरा
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
नहीं ताब कौसर-ए-’आरफ़ी’ कोई साग़र-ए-मय-ए-कौसरीये दयार लाला-रुख़ाँ नहीं ये क़लंदरों का मक़ाम है
कौसर आरफ़ी
कलाम
टुक साथ हो हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले'आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
मैं बुरा हूँ या भला हूँ मेरी लाज को निभानामुझे जानता है साजन तेरे नाम से ज़माना
मोहम्मद अली ज़ुहूरी
कलाम
मैं भी अदना साक़िया तेरे तलब-गारों में हूँचौदहवीं का चाँद तू है मैं तिरे तारों में हूँ
मोहम्मद बादशाह क़दीर
कलाम
हर नक़्शा किस से हक़ के सिवा मुम्किनात काहर फ़र्द है जहाँ में आईना ज़ात का