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जल्वा-ए-क़ौस-ए-कज़ह है या मय-ए-रंगीं की मौजया नज़र आया फ़रेब-ए-हुस्न-ए-लैलाई मुझे
यूँ न हो बर्क़-ए-तजल्ली बेताबमिल गया रँग तमाशाई का
हम ही मर्कज़ हैं सिमट आई है दुनिया हम मेंमेहवर-ए-क़ौस हैं हम मर्कज़-ए-परकार हैं हम
मैनूँ तेरे फ़िराक़ ने मार सुटिया, आजा आजा ओ जान-ए-बहार आजाईहनाँ साहवाँ दा नहीं एतबार कोई, तीनों वेख् ते ला इक वार आजा
जो तसव्वुर में तिरा पैकर-ए-ज़ेबा देखेंरू-ए-वश्शमस तकें मतला’-ए-सीमा देखें
चश्म-ए-साक़ी के असर से अब सरापा 'कैफ़' हूँबे-पिए ही हर क़दम पर झूमता जाता हूँ मैं
जाम है मय है सुबू है और साक़ी महव-ए-नाज़कुल जहाँ को ग़र्क़-ए-मीना देखता जाता हूँ मैं
दीद-ए-ख़ुदा के शोर से पहुँचा मैं तेरे घरतेरे ही आस्ताँ का पता जानता हूँ मैं
चार तिनकों का सहारा कुछ नहींसहन-ए-गुलशन में हमारा कुछ नहीं
भटक रहा था मैं मुद्दतों से तलाश-ए-मंज़िल में चार जानिबजो तेरे दामन में आ गए हैं वो अपनी मंज़िल को पा रहे हैं
तुम्हारा मश्ग़ला मश्क़-ए-तग़ाफ़ुलकिसी के दम पे बन जाए तुम्हें क्या
वुजूद-ए-वाहिद है सिर्फ़ तेरा हूँ मैं फ़रेब-ए-नज़र महज़ इकजो तुज्झ को समझा तो फिर कहाँ मैं तू आ गया है मैं जा रहा हूँ
जलाया आतिश-ए-गुल ने चमन में हर तिनकाबहार फूँक गई मेरे आशियाने को
है कौन बर-लब-ए-साहिल कि पेशवाई कोक़दम उठाए ब-अंदाज़-ए-मौज दरिया ने
इस आस्तान-ए-नाज़ का जब तज़्किरा हुआमेरी जबीन-ए-शौक़ में सज्दे मचल गए
अल्लाह अल्लाह मजाज़-ए-हक़ीक़त-नुमावो बशर है कि तस्वीर है ज़ात की
वहीं माह-ओ-अंजुम की ताबानियाँ थींजहाँ तेरे नक़्श-ए-क़दम याद आए
सितम है जिस बुत ने दिल को लूटा उसी को दिल में बसा रहा हूँसनम-कदा इक 'अजीब यारो दुरून-ए-का'बा बना रहा हूँ
जब वो ख़ुशबू-ए-बदन लाती है बाद-ए-सहरीमेरी उम्मीद के ग़ुंचों को खिला जाती है
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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