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कलाम
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ होयार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो
बेदम शाह वारसी
कलाम
तेरे मय-ख़ाना में ऐ साक़ी ये कैसा जोश हैदेखिए जिस रिंद को भी बे-ख़ुद-ओ-मदहोश है
अब्दुल हादी काविश
कलाम
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
फ़ना का जाम ऐ साक़ी मैं पी-पी लूँ तू भर-भर देबक़ा की मय से आँखें मिस्ल-ए-नर्गिस-ए-मस्त कर-कर दे
अलाउद्दीन जलाली
कलाम
यार था गुलज़ार था मय थी फ़ज़ा थी मैं न थालाएक़-ए-पा-बोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
मिर्ज़ा अबुल मुज़फ़्फ़र
कलाम
ये फ़ज़ा ये चाँदनी रातें ये दौर-ए-जाम-ओ-मयमस्तियों में ग़र्क़ हो जाने का मौसम आगया
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम हैये हरम नहीं है ऐ शैख़ जी यहाँ पारसाई हराम है