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कलाम
सै रोज़े सै नफ्ल नमाज़ाँ सै सज्दे कर थक्के हूमक्के हज्ज गए सै वारी दिल दी दौड़ न मक्के हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तिरे सज्दे में हम ने अपनी पेशानी जहाँ रख दीतजल्ली ने तिरी वाँ वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ रख दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या सलात-ओ-सोम-ओ-सज्दा और क्या ईमाँ का तोलइक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाना है कुल आ'लम का मोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
हर नक़्शा किस से हक़ के सिवा मुम्किनात काहर फ़र्द है जहाँ में आईना ज़ात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
वो हक़ के साथ राबिता-ए-दिल नहीं रहामज्ज़ूब उस लक़ब ही के क़ाबिल नहीं रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
दर्शन सिंह
कलाम
ख़ुदी से बे-ख़ुदी में आ जो शौक़-ए-हक़-परसती हैजिसे तू नीस्ती समझा है ऐ ग़ाफ़िल वो हस्ती है