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कलाम
शोर शहर ते रहमत वस्से, जित्थे बाहू जाले हूबाग़बाँ दे बूटे वांगू, तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तू बे-पर्दा हो महफ़िल में अगर ऐ फ़ित्ना-सामानेक़ियामत तक न आएँ होश में फिर तेरे दीवाने
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
शाह अकबर दानापूरी
कलाम
सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाएये दीवानों की महफ़िल है कोई रुस्वा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
लेकर जहाँ के हुस्न को शम्स-ओ-क़मर को क्या करूँमुझ को तो तुम पसंद अपनी नज़र को क्या करूँ