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कलाम
फ़ुर्सत-ए-आगही भी दी लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी भी दीमौत के साथ साथ ही आप ने ज़िंदगी भी दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
ज़े-ज़बानी हर कोई पढ़दा दिल दा कलमा कोई हूजित्थे कलमा दिल दा पढ़िए मिले ज़बां न ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ख़ाम की जाणन सार फ़क़र दी महरम नहीं दिल दे हूआब मिट्टी थीं पैदा होए खामी भांडे गिल्ल दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़-अल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पाणी मिलाया हर रगे हर जाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दीपुरानी दोस्ती भी ताक़ में ऐ मेहरबाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
कलाम
अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पानी मल्या हर रगे हर जाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बे-अदबाँ न सार अदब दी गए अदब थीं वांजे हूजेहड़े होण मिट्टी दे भांडे कदी न थीवण कांजे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तिरे सज्दे में हम ने अपनी पेशानी जहाँ रख दीतजल्ली ने तिरी वाँ वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ रख दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
कलाम
कलमे दी कल तदाँ पई, जद मुर्शिद कलमा दिस्या हूसारी उमर कुफ़र विच जाली बिन मुर्शिद दे दस्याँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू