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कलाम
मुल्ला आरीफ़ ख़ैराबादी
कलाम
मिज़्गान-ए-तर हूँ या रग-ए-ताक-ए-बुरीदा हूँजो कुछ कि हूँ सो हूँ ग़रज़ आफ़त-रसीदा हूँ
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँदिल की तपिश को क्या करूँ सोज़-ए-जिगर को क्या करूँ
हसरत मोहानी
कलाम
हदफ़ जिस का फ़क़त दिल हो मैं ऐसे तीर के क़ुर्बांबदन जिस से न घाइल हो मैं उस शमशीर के क़ुर्बां
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैंबरहमन बन के ख़ुद गर्दन में हम ज़ुन्नार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
वुहूश-ओ-तैर को भी है ख़ुदा ही रिज़्क़ पहुँचातातकें दर ग़ैर का क्यूँ हम वही अपना ख़ुदा भी है
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
अपने दीवाने को ज़ालिम इस तरह तड़पा न अबमस्त नज़रों से पिला कर कह भी दे दीवाना अब