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कलाम
रहा बार-ए-अमानत गो वबाल-ए-दोश रस्ते भरन कंधा भी मगर हम ने तह-ए-बार-ए-गराँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
किसी से सीख ले बुलबुल सरापा दास्ताँ रहनाहै नंग-ए-'इश्क़ हाल-ए-दिल का मोहताज-ए-बयाँ रहना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' तू भी ग़ैर-ए-ख़ुदा से लगाए दिल'इश्क़-ए-बुताँ है बंदा-ए-हक़ ना-सज़ा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
दुर्र-ए-मज़मूँ की झड़ी रहती है क्यूँ फिर ये 'हसन'गर मिरी तब-ए'-रवाँ अब्र-ए-गुहर-बार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
जला ही देगा तिफ़्ल-ए-अश्क दामान-ए-नज़र अपनाकि इक आतिश का पर काला है ये लख़्त-ए-जिगर अपना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
एक वो दिन थे मोहब्बत से था लुत्फ़-ए-ज़िंदगीअब तो नाम-ए-'इश्क़ से भी सख़्त घबराता है दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' अब किसी से भला क्यूँ लगाए दिलदिल आश्ना-ए-दर्द है दर्द आश्ना-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
निगाह-ए-नाज़ को तेरी में शर्मिंदा न देखूँगाहटाए लेता हूँ अपनी नज़र अच्छा न देखूँगा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
तब'-ए-रंगीं ने मिरी गुल को गुलिस्ताँ कर दियाकुछ से कुछ हुस्न-ए-नज़र ने हुस्न-ए-ख़ूबाँ कर दिया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ऐ मिरे बाग़-ए-आरज़ू कैसा है बाग़-हा-ए-तूकलियाँ तो गो हैं चार सू कोई कली खिली नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
हमारा शुग़्ल है रातों को रोना याद-ए-दिलबर मेंहमारी नींद है महव-ए-ख़याल-ए-यार हो जाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
मुझ में सभी हुनर सही ताब तो ज़ब्त की नहींशर्त-ए-वफ़ा वहाँ यही और यहाँ यही नहीं