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कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
बहार आए दिल-ए-सूफ़ी पे ज़ेर-ए-साया-ए-कामिलचमन पर रंग आ जाता है अक्सर अब्र-ओ-बाराँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
शबीह-ए-’आशिक़-ए-मुज़्तर को देख ऐ कोह-ए-रा’नाईअगर मंज़ूर है तुझ को तमाशा संग-ए-लर्ज़ां का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ग़ुबार-ए-आस्ताँ हर रोज़ झाड़े मेहर-ए-मिज़्गाँ सेबिछाए माह हर शब चादर-ए-शफ़्फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
रोती है शबनम कि नैरंग-ए-जहाँ कुछ भी नहींहँस रहे हैं गुल कि रंग-ए-बोस्ताँ कुछ भी नहीं
शाह वारिस अली
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मे'राज-ए-नबी में थी हर-दम उदनु मिन्नी की सदा पैहमआ सू-ए-मक़ाम-ए-औ-अदना तू और नहीं मैं और नहीं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
उस हस्ती-ए-वहमी का जब बार-ए-गराँ सर लेहै शिर्क तिरी ख़ातिर फिर याद-ए-ख़ुदा करना