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कलाम
रूप बदला है कि ढाई है क़ियामत तू नेलोग कहते हैं नज़र आता है जो ख़्वाबों में नहीं
अब्दुल हादी काविश
कलाम
काम चले तो क्या चले शाहिद-ओ-बादा के बग़ैररिंद ही रिंद हैं यहाँ मजमा'-ए-क़ुदसियाँ नहीं
कामिल शत्तारी
कलाम
बंदा-ए-हक़ गदा-नवाज़ महरम-ए-राज़-ए-बे-नियाज़वाक़िफ़ है राज़-ए-किबरिया जल्वा-ए-मुस्तफ़ा भी तुम
बेदम शाह वारसी
कलाम
मकतब-ए-'इश्क़ में मा'लूम नहीं लेगा कौनदरस-ए-उफ़्तादगी-ओ-दरस-ए-फ़ना मेरे बा'द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
हर नक़्शा किस से हक़ के सिवा मुम्किनात काहर फ़र्द है जहाँ में आईना ज़ात का
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
क्या सलात-ओ-सोम-ओ-सज्दा और क्या ईमाँ का तोलइक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाना है कुल आ'लम का मोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
वो हक़ के साथ राबिता-ए-दिल नहीं रहामज्ज़ूब उस लक़ब ही के क़ाबिल नहीं रहा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
सलात-ओ-सौम ऐ वाइ'ज़ इ'बादत और रियाज़त येमुबारक हों तुझे काफ़ी है मुझ को चश्म-ए-जानाना
अब्दुल हादी काविश
कलाम
जो भी है जैसा भी है गर जानता है जान लोमैं नहीं कहता कि ये 'रिज़वाँ' क्या था क्या हुआ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
बादा-ए-तौहीद से लबरेज़ है मिरा सुबूमैं शराब-ए-ज़ीस्त बन कर जाम-ए-कैफ़-ओ-कम में हूँ