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कलाम
रात उभरी तिरी ज़ुल्फ़ों की दराज़ी क्या क्याख़्वाजा-ए-हुस्न ने की बंदा-नवाज़ी क्या क्या
सूफ़ी तबस्सुम
कलाम
फ़ुर्क़त की हज़ारों रातों से इक रात सुहानी माँगी थीजो फूल के बोझ से दब जाए इक ऐसी जवानी माँगी थी
अज्ञात
कलाम
इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली हैइक होश-रुबा इनआ'म कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
क़तील शिफ़ाई
कलाम
जो शबाब आया तो क्या कहूँ वो रात के जैसे बदल गएमग़रूर हुए हैं वो इस तरह जज़्बात के जैसे बदल गए
हुनर सिल्लोडी
कलाम
या दिन की बातें होती हैं या रात की बातें होती हैंये दुनिया है इस दुनिया में हर बात की बातें होती हैं
मुनव्वर बदायूँनी
कलाम
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई कीतुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की