ऐ हरि मीत बड़े तुम राजा
ए हरि मीत बड़े तुम राजा
ब्यापक जहाँ तहाँ तुम्हरे हुकुम बिना कहुँ सरे न काजा
तिरगुन सूबा मौज बनाया भिन्न भिन्न कहँ फ़ौज रखाया
हय गय रथ सुखपास बहुता माया बढ़ी करै को कूता
कहत बनै नहिं अनघड़ साजा ए हरि मीत बड़े तुम राजा
चारो दिसा कनात गड़ा है असमान तम्बू मिन चोब खड़ा है
पानी अगिनि पवन है पायक जो कछु काम सो करिबे लायक
अनहद ढोल दमामा बाजा ऐ हरि मीत बड़े तुम राजा
तारागन पैदल समुदाई अज्ञा ले जहँ तहँ चलि जाई
चाँद सूर निस बासर आई आवत जात मसाल दिखाई
ध्रुव कियो थीर अचल मन धाजा ऐ हरि मीत तुम बड़े राजा
सहजादा है मन बुधि काला कीन्हेव सकल जगत पैमाला
काल बड़ा उमराव है भारी डरे सकल जहँ लग तन धारी
तुम्हारो दंड सकल सिर ताजा ए मीत तुम बड़े राजा
सत्त सतोगुन मंत्र दृढ़ता ज्ञान आदि दे पुत्र बुलावा
अमल करहु तुम जग में जाई फेरहु केवल राम दोहाई
नाम प्रताप प्रकास को छाजा ऐ हरि मीत बड़े तुम राजा
चतुरंगिनी उज्जस दल देखा जोग बिराग बिचार को लेखा
छिमा सील संतोष को भाऊ परमारथ स्वारथ नहिं चाऊ
स्वारथ रत पर पारहु गाजा ए हरि बड़े तुम राजा
रज गुन तम गुन कीन्ह्यो मेला सबहीं भयो सतो गुन चेला
हम तुम आइ कछू नहिं कीन्हा अज्ञा ईस सीस पर लीन्हा
मरत बहुत डर आपु की लाजा ऐ हरि मीत बड़े तुम राजा
पठयौ काम क्रोध मद लोभा जातें कीन्ह सकल मन छोभा
केवल नाम भजै सो बाचै नहिं तौ और सकल मन काचै
'भीखा' तुम बिन कौन निवाजा ऐ हरि मीत बड़े तुम राजा
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