साधो अवगत अलेख गाया काया नगर में पाया
साधो अवगत अलेख गाया काया नगर में पाया
शील कमान समझ का तरकश सत्य का तीर चढ़ाया
निर्भय नाम का लगा मोरचा मन का भरम उड़ाया
पाँच पचीसों नगर बसाया मन राजा समझाया
तेरे शहर में पाँच चोरटे सतगुरु भेद लखाया
ऊँचो नीचो सेरी बाके रूप-रेख नहिं काया
इँगला पिंगला देख तमाशा सुसमन आन समाया
निर्भय होय अभय पद चीन्हा नाथ निरंजन गाया
'घीसा' सन्त पै कृपा हो रही सहजै सहज समाया
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