शबद
गोरख नाथ की 'सबदि' को बाद के संत शाइरों ने 'सबद' बनाया था। संतों की ख़ुद-शनासी को 'सबद' कहते हैं। सबद गीत हैं और रागों और रागनियों में बंधे हुए होते हैं। 'सबद' का इस्तिमाल अंदरूनी तजुर्बे के इज़हार के लिए होता है ।
पंजाब के मा’रूफ़ सूफ़ी शाइ’र जिनके अशआ’र से आज भी एक ख़ास रंग पैदा होता है और रूह को तस्कीन मिलती है
गुलाल साहिब के मुरीद और जां-नशीन जिनके कई ग्रंथ हैं जिनमें से एक राम जहाज़ है जो एक ज़ख़ीम किताब है