मज्म 'उल् बह्रैन
मज्म'उल बह्रैन
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर्रहीम
ब-नाम-ए-आँ कि ऊ नामे न-दारद
ब-हर नामे कि ख़्वानी सर बर-आरद
हम्द-ए-मौफ़ूर यगानः-ए-रा कि दो ज़ुल्फ़-ए-कुफ़्र-ओ-इस्लाम कि नुक़्तए-मुक़ाबिल बहम अंद,बर चेहरः-ए-ज़ेबा-ए-बे-मिस्ल-ओ-नज़ीर-ए-ख़्वेश ज़ाहिर गर्दानीद व हेच यके रा अज़ आँ हा हिजाब-ए-रुख़-ए-निको-ए-ख़ुद न-साख़्तः।
नज़्म
कुफ़्र-ओ-इस्लाम दर रहश पोयाँ
वह्दहू ला-शरी-क लहु गोयाँ
दर हमः ऊस्त ज़ाहिर-ओ-हमः अज़ूस्त जल्व:गर अव्वल ऊस्त-ओ-आख़िर ऊस्त-ओ-ग़ैरे ऊ मौजूद न-बाशद।
रुबाई’
हमसायः-ओ-हमनशीं-ओ-हमरह हमः ऊस्त
दर दल्क़-ए-गदा-ओ-अत्लस-ए-शह हमः ऊस्त
दर अंजुमन-ए-फ़र्क़-ओ-निहाँ ख़ानः-ए-जम्अ'
बिल्लः हमः ऊस्त सुम्म बिल्लः हमः ऊस्त
व दुरूद-ए-ना-मह्दूद बर मज़्हर-ए-अतम बाइ’स-ए-ईजाद-ए-आ’लम, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम-ओ- बर आल-ए-किराम-ओ-बर अस्हाब-ए-इ’ज़ाम-ए-ऊ बाद।अम्मा बा'द मी-गोयद फ़क़ीर-ए-बे-हुज़्न-ओ-अंदोह मुहम्मद दारा शुकोह कि बा'द अज़ दर्याफ़्त-ए-हक़ीक़तुल्-हक़ायक़-ओ-तहक़ीक़-ए-रुमूज़-ओ-दक़ाइक़-ए-मज़हब बर हक्क़-ए-सूफ़ियः-ओ-फ़ाइज़ गश्तन बईं-अ'तीय्यः-ए-ऊ’ज़मा दर मदद-ए-आँ शुद कि दर्क कुनद मश्रब-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द व या बा-बा'ज़े अज़ मुहक्क़िक़ान-ए-ईं क़ौम-ओ-कामिलान-ए-ईशां कि ब-निहायत-ए-रियाज़त-ओ-इदराक-ओ-फ़ह्मीदगी-ओ-ग़ायत-ए-तसव्वुफ़-ओ-ख़ुदायाबी रसीदः बूदंद मुकर्रर सोहबतहा दाश्तः-ओ-गुफ़्तुगू नमूदः।जुज़ इख़्तिलाफ़-ए-लफ़्ज़ी दर दर्याफ़्त-ओ-शिनख़्त-ए-हक़ तफ़ावते न-दीद।अज़ीं जिहत सुख़नान-ए-फ़रीक़ैन रा बाहम तत्बीक़ दादः-ओ-बा’ज़े अज़ सुख़नान कि तालिबान-ए-हक़ रा दानिस्तन-ए-आँ ना-गुज़ीर-ओ-सूदमंद अस्त फ़राहम आवुर्दः रिसालःए तर्तीब दाद:।व चूं मजमूअ'-ए-हक़ाइक़-ओ-मआ'रिफ़-ए-दो ताइफ़ः-ए-हक़-शनास बूद लिहाज़ा मज्म’उल्-बह्रैन मौसूम गर्दानीद ब-मूजिब क़ौल-ए-अकाबिर कि “अत्तसव्वुफ़ु हुवल इन्साफ़ु वत्तसव्वुफ़ु तर्कुत्तक्लीफ़”
पस हर कि इन्साफ़ दारद-ओ-अज़ अह्ल-ए-इद्राक अस्त दर मी-याबद कि दर तहक़ीक़-ए-ईं मरातिब चे ग़ौर रफ़्तः व यक़ीन कि फ़हमीदगान-ए-साहिब-ए-इदराक हज़्ज़-ए-वाफ़िर अज़ीं रिसालः रव्व़ाहंद बुर्द व कुंद-फ़हमान-ए- तरफ़ैन रा नसीबःए अज़ फ़वाइद न-रव्व़ाहद शुद। व ईं तहक़ीक़ रा मुवाफ़िक़-ए-कश्फ़-ओ-ज़ौक़-ए-ख़ुद बराए अह्ल-ए- बैत-ए-ख़ुद नविश्तः-अम व मरा बा अ'वाम-ए-हर-दो-क़ौम कारे नीस्त।चुनांचे ख़्वाज़: अ’ब्दुल्लाह अहरार कुद्दि-स सिर्रहु फ़र्मूदः कि अगर दानम कि काफ़िरे पुर-ख़ता ज़मज़मः-ए-तौहीद ब-हंजारे मी-सरायद मी-रवम-ओ-अज़ वै मी-शनवम व मिन्नतदार मी-शवम व मिनल्लाहित्तौफ़ीक़ वल् –इस्तेआ’नः।
1. बायन-ए-अ'नासिर
बदां कि अ'नासिर पंज अंद व माद्द:-ए-जमीअ'-ए-मख़्लूक़ात-ए-नासूती हमीं पंज अंद। अव्वल उ'न्सुर-ए-आ'ज़म कि आँ रा अह्ल-ए-शरअ’ अ’र्श-ए-अक्बर’ मी-गोयंद। दोउम बाद, सेउम आतश, चहारुम आब व पंजुम ख़ाक व ईं रा ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए-हिन्द ‘पांच भूत’ मी-नामंद- अकास व बाइ व तेज व जल व पिर्थी। व आकास सेह अंद, भूत आकास, मन आकास व चिद् आकास। आँचे मुहीत-ए-अ'नासिर बाशद आँ रा भूत आकास गोयंद, व आँचे मुहीत-ए- मौजूदात अस्त आँ रा मन आकास नामंद व आँचे बर हम: मुहीत व दर हम: जा बाशद आँ रा चिद् आकास रव्व़ानंद, व चिद् आकास बर हक़ अस्त या’नी हादिस नीस्त, व बर हुदूस-ओ-फ़ना-ए-आँ हेच आय:-ए-क़ुरआनी व बेद कि किताब-ए-आस्मानी बाशद दलालत नमी-कुनद। अज़ चिद् आकास अव्वल चीज़े कि बहम रसीद “इ’श्क़” बूद कि आँ रा ब-ज़ुबान-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द ‘माया’ गोयंद व कुन्तु कंज़न मख़्फीयन् फ़-अह्बब्तु अन्उर्रेफ़ा फ़-ख़-लक़तुल ख़ल्क़ बरीं दाल अस्त, या’नी बूदम मन गंज-ए-पिन्हाँ पस दोस्त दाश्तम कि शिनाख़्तः शवम पस ज़ाहिर कर्दम ख़ल्क़ रा बराए शिनाख़्त-ए-ख़ुद। व अज़ ‘इ’श्क़’ रूह-ए-आ’ज़म या’नी जीव आत्मा पैदा शुद कि आँ रा हक़ीक़त-ए- मुहम्मदी गोयंद व आँ इशारः ब-रूह-ए-कुल्लिय:-ए-आँ सरवर सलातुल्लाहि व सलामुहू अ’लैहि अस्त। व मुवह्हिदान-ए-हिन्द आँ रा ‘हिरन गर्भ’ व अवस्थात आत्मां नामंद कि इशारः ब-मर्तबः-ए-आ’ज़मीयत अस्त।व बा'द अजां उ’न्सुर-ए-बाद अस्त, कि आँ रा नफ़सुर्रहमान गोयंद व अज़ां नफ़्स बाद पैदा शुद। व चूं आँ नफ़्स ब-जिहत-ए-हब्स दर हज़रत-ए-वजूद कि दर हंगाम-ए-नफ़्ख़ीयत बराए ज़ुहूर दाश्त गर्म बरामद व अज़ बाद आतश पैदा शुद व चूं दर हमां नफ़्स सिफ़त-ए-रहमानियत व इत्तिहाद बूद सर्द शुद व अज़ आतश आब पैदा शुद।अम्मा चूं उ’न्सुर-ए-बाद-ओ- आतश अज़ ग़ायत-ए-लताफ़त महसूस नीस्तंद व आब ब निस्बत-ए-आँ हर दो मह्सूस अस्त, ब जिहत-ए-मह्सूस बूदन-ए-आँ बा'ज़े गुफ़्तः-अंद कि अव्वल आब पैदा शुद व बा'द अज़ां उ'न्सुर-ए-ख़ाक, व ईं ख़ाक ब-मंजिल:-ए-कफ़-ए-आँ आब अस्त, चूं शीरे कि दर ज़ेर-ए आँ आतश बाशद व ब-जोश आयद व कफ़ कुनद।
बैत,
चे दानिस्तम कि ईं दरिया-ए-बे-पायां चुनीं बाशद
बुख़ारश आस्मां गर्दद कफ़-ए- दरिया ज़मीं बाशद
दीगर,
यक क़तर:-ए- चू बैज़ः जोशीदः गश्त दरिया
कफ़ कर्द-ओ-कफ़ ज़मीं शुद वज़ दूद-ए-ऊ समा शुद
व बर-अ'क्स-ए- ईं दर क़यामत-ए-कुबरा कि आँ रा ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए-हिन्द ‘महा-परली’ गोयंद अव्वल फ़ना-ए-ख़ाक रव्व़ाहद शुद व आँ रा आब फ़रो रव्व़ाहद बुर्द व आब रा आतश ख़ुश्क रव्व़ाहद साख़्त व आतश रा बाद फ़रो रव्व़ाहद निशांद व बाद बा रूह-ए-आ’ज़म दर ‘महा आकास’ फ़रो रव्व़ाहद रफ़्त। कुल्लु शैइऩ् हालिकुऩ् इल्ला वज्-हुहू1या’नी हमः चीज़ फ़ानी रव्व़ाहद शुद मगर रू-ए- ख़ुदा-ए-तआ'ला कि महा आकास बाशद। कुल्लु मन् अलैहा फ़ानिव् व यब्क़ा वज्हु रब्बि-क ज़ुल्जलालि वल-इक्राम2, या’नी हमः आँचे कि बर रु-ए-ज़मीं बुवद फ़ानी रव्व़ाहद शुद व बाक़ी मानद, रू-ए-परवर्दिगार-ए-तू कि साहिब-ए-जलाल व इकराम अस्त। पस दरीं दो आय:-ए-करीमः कि बराए फ़ना-ए-जमीअ'-ए-अशियास्त क़ैद-ए-वज्ह कि रफ़्तः मुराद महा आकास अस्त कि आँ फ़ना पज़ीर नीस्त व इल्लाह मी-नफ़र्मूदे कुल्लु शैइऩ् हालिकुऩ् इल्ला वज्-हुहू2 या’नी हमः चीज़ फ़ानी रव्व़ाहद शुद मगर ज़ात-ए-ऊ। व क़ैद-ए-रू बराए महा आकास बाशद चे महा आकास ब-मंज़िल:-ए-बदन-ए-लतीफ़-ए-आँ ज़ात-ए-मुक़द्दस अस्त।व ख़ाक रा ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए- हिन्द देवी नामंद कि हमः चीज़ अज़ू पैदा शुदः अस्त व बाज़ हमः चीज़ दरू फ़रो मी-रवद ब-मूजिब-ए-आय:ए करीमः मिन्हा ख़-लक़्नाकुम् व फ़ीहा नुई'दुक़ुम् व मिन्हा नुख़्रिजुकुम् ता-र-तन् उख़्रा4 या’नी अज़ ख़ाक ख़ल्क़ कर्देम शुमा रा व दर आँ ख़ाक बाज़ रव्व़ाहेम बुर्द शुमा रा व अज़ां ख़ाक बेरूं मी-आरेम शुमा रा बारे दीगर।
1.क़ुरआन 28-88, 2.क़ुरआन 55-26,27 3.क़ुरआन 28-88, 4. क़ुरआन 20-55।
2. बयान-ए- हवास
मुवाफ़िक़-ए-ईं पंज अ'नासिर पंज हवास अंद कि ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए-हिन्द आँ रा पंज इन्द्री गोयंद, शाम्मः, ज़ायक़ः बासिरः, सामि’अः व लामिसः कि आँ रा ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए-हिन्द घिरान, रसना, चच्छा, स्रोत्र व त्वक् मी-गोयंद व मह्सूसात-ए-आँ रा गंध, रस, रूप, सब्द व स्पर्स नामंद। व हर यके अज़ीं हवास-ए-पंजगानः अज़ जिंस यके अज़ीं अ'नासिर बाशद व मंसूब ब-आँ। शाम्मः मंसूब अस्त ब-ख़ाक चे हेच यके अज़ अ'नासिर बूए न-दारद इल्ला ख़ाक व एह्सास-ए-बू-ए-शाम्मः मी-कुनद। व जायक़ः मंसूब अस्त ब-आब चुनांचे आब ज़ाहिर अस्त दर ज़ुबान। व बासिरः मुनासिबत दारद ब-आतश चुनांचे दर्क-ए-रंगहा ब-चश्म अस्त व नूरानियत दर हर दो ज़ाहिर अस्त। व लामिसः रा निस्बत अस्त ब-बाद चेरा कि सबब-ए-एह्सास-ए-मलमूसात बाद अस्त। व सामि’अः मंसूब अस्त ब-उ'न्सुर-ए-आ’ज़म कि महाआकास बाशद कि सबब-ए-इद्राक-ए-अस्वात अस्त। व अज़ राह-ए-सम्अ’ हक़ीक़त-ए-महाआकास बर अह्ल-ए- दिल ज़ाहिर मी-शवद व दीगरे बर आँ मुत्तला’ नीस्त। व ईं शग़्लेस्त मुश्तरक दर्मियान-ए-सूफ़ियः व मुवह्हिदान-ए- हिन्द कि सूफ़ियः ईं रा ‘शग़ल-ए-पास-ए-अनफ़ास’ मी-गोयंद व ईशां दर इस्तलाह-ए-ख़ुद ‘धुन’ मी-नामंद।
अम्मा हवास-ए-बातिन नीज़ पंज अंद- हिस्स-ए-मुश्तरक, मुतख़य्यिलः, मुतफ़क्किरः, हाफ़िज़ः व वाहिमः व नज़्द-ए-अह्ल-ए-हिन्द चहार अंद-बुध व मन व अहंकार व चित व मज्मूअ'-ए-ईं चहार रा ‘अन्तः करन’ गोयंद कि ब-मंज़िल-ए-पंजुम-ए-आँहा अस्त। चित यक आ’दत दारद कि आँ रा ‘सत परकिरत’ गोयंद व ईं आ'दत ब-मंज़िला-ए-पाये ऊस्त कि अगर आँ मुन्क़तेअ' शवद चित अज़ दवीदन बाज़ मानद। अव्वल बुध या'नी अक़्ल, व बुध आँस्त कि तरफ़े ख़ैर रवद व तरफ़े शर न-रवद, दुउम ‘मन’ कि इ’बारत अज़ दिल अस्त व आँ दो क़ुव्वत दारद-संकल्प-बिकल्प या’नी अ’ज़ीमत व फ़स्ख़, सेउम ‘चित’ कि पैक-ए-दिल अस्त व कार-ए-ऊ दवीदन बाशद ब-हरसू व तमीज़ मियान-ए--ख़ैर-ओ-शर न-कुनद, चहारुम ‘अहंकार’ या’नी निस्बत देहिंद:-ए-चीज़हा ब-ख़ुद, व ‘अहंकार’ सिफ़त-ए-‘परम आत्मा’ अस्त ब-सबब-ए-माया, व माया ब-ज़ुबान-ए-ईशां ‘इ’श्क़’ अस्त। व अहंकार सेह क़िस्म अस्त-सातक व राजस व तामस। अहंकार सातक या'नी ग्यान सरुप कि मर्तब:-ए-आ'ला अस्त आँ अस्त कि परम आत्मा ब-गोयद कि हर चे हस्त हम: मानव व ईं मर्तब:-ए-इहात:-ए-कुल्ली अस्त। हमः अश्या रा अला इन-नहु बिकुल्लि शैइम्-मुहीत1 या’नी दाना व आगाह बाश बदुरुस्ती कि ऊस्त हमः चीज़ रा इहातः कुनिन्दः। दीगर आँ कि हुवल-अव्वलु वल-आख़िरु वज़्ज़ाहिरु वल्बातिऩु2 या’नी ऊस्त अव्वल व ऊस्त आख़िर व ऊस्त ज़ाहिर व ऊस्त बातिन। व ‘अहंकार राजस’ मद्धम अस्त कि औसत बाशद व ईं आनस्त कि नज़र बर ‘जीव आत्मा’, दाश्तः ब-गोयद कि ज़ात-ए-मन अज़ बदन-ओ-अ'नासिर मुनज्ज़ः अस्त व जिस्मानियत ब-मन निस्बत न-दारद, लै-स कमिस्ललेही शैउऩ्3 या’नी नीस्त मानिन्द-ए-ऊ चीज़े फ़-इन्नल्ला-ह ग़निय्युऩ् अ’निल्आ'लमीन4 या’नी ख़ुदाए तआ'ला बे-नियाज़ अस्त अज़ ज़ुहूर-ए-आ'लम। व ‘अहंकार तामस’ अद्धम अस्त कि अदना बाशद व ईं अविद्यास्त या’नी मर्तब:-ए-उ'बूदियत-ए- हज़रत-ए-वजूद। वअद्ना बूदन अज़ जिहत आँ अस्त कि अज़ निहायत-ए-तनज़्ज़ुल व तक़य्युद व तअ'य्युन-ए- नादानी व जेह्ल व ग़फ़लत रा ब-ख़ुद निस्बत मी-कुनद व नज़र बर हयात-ए-मह्सूस-ए-ख़ुद नमूदः मी-गोयद कि ‘मन’ व ‘तू’ अज़ मर्तबः-ए-यगानगी दूर मी-उफ़्तद। क़ुल् इन्नमा अना ब-शरुम्-मिस्लुकुम5 या’नी बगो ऐ मुहम्मद कि जुज़ ईं नीस्त कि मनम बशरे मानिन्द-ए-शुमा।चुनांचे बशिश्त मी-गोयद कि चूं हज़रत-ए-वजूद ख़्वास्त कि मुतअ’य्यन शवद ब-मुजर्रद-ए-ईं इरादः परम आत्मा शुद व चूं ईं तक़य्युद ज़्यादः शुद ‘अहंकार’ बहम रसीद व चूं तक़य्युद-ए-दीगर बर आँ अफ़्जूद ‘महातत’ कि अ’क़्ल-ए-कुल बाशद नाम याफ़्त, व अज़ ‘संकल्प ’ व ' महातत' 'मन' या'नी क़ल्ब पैदा शुद कि आँ रा 'परकिरत' नीज़ गोयन्द व अज़ 'संकल्प मन' 'पंज गयान इंद्री' कि शाम्म: व लामिस: व बासिर: व सामिअ: व ज़ायक: बाशंद ब-ज़ुहूर आमद व अज़ 'संकल्प' व ईं पंज ‘ग्यान इन्द्री’ आ’ज़ा व अज्साम बहम रसीद व ईं मज्मूअः रा ‘बदन’ गोयंद-पस ‘परम आत्मा’ कि अबुल अर्वाह बाशद (कि ज़ुहूर-ए-अव्वल-ए- ऊ हक़ीक़त-ए-मुहम्मदी व सानी-ए-ऊ रुहुल-क़ुद्स कि जिब्रील-ए-अमीन बाशद अस्त) ईं हमः तक़य्युदात रा अज़ ख़ुद पैदा कर्दः व ख़ुद रा ब-आँ बस्तः गर्दानीदः। चुनांचे किर्मपीलः तारहा-ए-अब्रेशम अज़ लुआ'ब-ए-ख़ुद बर आवुर्दः ख़ुद रा दर आँ बस्तः अस्त हमचुनां हज़रत-ए-वाजिबुल वजूद ईं हमः क़ुयूद-ए-वह्मी रा अज़ ख़ुद बर आवुर्दः व ख़ुद रा दर ऊ दर आवुर्दः अस्त मिस्ल-ए-तुख़्म-ए-दरख़्त कि दरख़्त रा अज़ खुद बर आवुर्दः व ख़ुद दर दरख़्त दर मी-आयद। दर बंद-ए-शाख़हा व बर्गहा व गुलहा मी-शवद। पस बदाँ व होश दार कि पेश अज़ ज़ुहूर-ए-ईं आ'लम दर ज़ात पिन्हाँ बूद व अलहाल ज़ात-ए-मुक़द्दस-ए-ऊ दर आ'लम पिन्हाँ अस्त।
1.क़ुरआन 41-54, 2. क़ुरआन 57-3, 3. क़ुरआन 42-11, 4. क़ुरआन 3-97, 5. क़ुरआन 18-110।
3. बयान-ए-शग़्ल
शग़्ल नज़्द-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द अगर्चे अक़्साम अस्त अम्मा बेहतरीन शग़्लहा अजपा रा मी-दानंद व आँ शग़्लेस्त कि चे दर ख़्वाब व चे दर बेदारी बे-क़स्द व बे-इख़्तियार अज़ जमीअ’-ए-ज़ी नुफ़ूस हमेशः व हर आँ सादिर मी-गर्दद।चुनांचे दर आय:-ए-करीमः व इम्मिन् शैइऩ् इल्ला युसब्बिहु बिहम्दिही व लाकिल्ला तफ़्क़हू-न तस्बीहहुम्1 इशारः ब-हमीं अस्त व आँ दरूं रफ़्तन व बेरूं आमदन-ए-दम रा ब-दो लफ़्ज़ ता’बीर कर्दः अन्द, नफ़से कि बाला मी-रवद ‘ओ’ मी-गोयंद व नफ़से कि दरुं मी-आयद ‘मन्’ मी-नामंद या’नी उ मनम व सूफ़ियः मश्ग़ूली-ए-ईं दो लफ़्ज़ रा ‘हुवल्लाह’ मी-दानंद कि दर बाला रफ़्तन-ए-नफ़स ‘हु’ व दर बेरूं आमदन ‘अल्लाह’ ज़ाहिर मी-शवद, व ईं दो लफ़्ज़ अज़ हर ज़ी-हयात जारीस्त व ऊ बे-ख़बर अस्त।
1.क़ुरआन 17-44।
4.बयान-ए-सिफ़ात-ए-अल्लाह तआ'ला
नज़्द-ए-सूफ़ियः दो सिफ़त अस्त, ‘जमाल’ व ‘जलाल’ कि जमीअ'-ए-आफ़रीनिश अज़ तहत-ए-ईं दो सिफ़त बेरूं नीस्त। व नज़्द-ए-फ़ुक़रा-ए-हिन्द सेह सिफ़ात अंद कि आँ रा ‘तिर्गुन’ मी-गोयंद, ‘सत’ व ‘तम’, सत या’नी ईजाद, व रज या’नी इब्क़ा व तम या’नी इफ़्ना। व सूफ़ियः सिफ़त-ए-इब्क़ा रा दर ज़िम्न-ए-सिफ़त-ए-जमाल दीदः व ए'तिबार कर्दः अंद। चूं हर यके अजीं सेह सिफ़त दर यक दीगर मुंदरिज अंद फ़ुक़रा-ए-हिन्द ईं सेह सिफ़त रा ‘तिर्मूरत’ नामन्द कि ‘बरह्मा’ व ‘बिष्णु’ व ‘महेश’ बाशंद व ब-ज़ुबान-ए-सूफ़िय; ‘जिर्ब्रील’ व ‘मीकाईल’ व ‘इस्राफ़ील’ गोयंद। ब्रह्मा मुवक्किल-ए-ईजाद अस्त कि जिब्रील बाशद व ‘बिष्णु’ मुवक्किल-ए-इब्क़ा अस्त कि मीकाईल बाशद व महेश मुवक्किल-ए-इफ़्ना अस्त कि इस्राफ़ील बाशद। व आब व बाद व आतश नीज़ मन्सूब ब-ईं मुवक्किलानंद, आब ब-जिब्रील व आतश ब-मीकाईल व बाद ब-इस्राफ़ील व ईं सेह चीज़ दर जमीअ'-ए-जानदारां नीज़ ज़ाहिर अस्त,बरह्मा कि आब बाशद दर ज़ुबान, मज़्हर-ए-कलाम-ए-इलाही गश्त व नुत्क़ अज़ीं ज़ाहिर शुद, व ‘बिष्णु’ कि आतश अस्त दर चश्म, रौशनी व नूर–ओ-बीनाई अज़ू ज़ाहिर शुद व महेश कि बाद अस्त दर बीनी, दो नफ़्ख़-ए-सूर अज़ीं ज़ाहिर शुद कि दर नफ़स बाशद व चूं आँ मुनक़तेअ’ गर्दद फ़ानी शवद।
‘तिर्ग़ुन’ सेह सिफ़त-ए-हक़ बाशद कि ईजाद व इब्क़ा व इफ़्नास्त व मज़हर-ए-ईं सेह सिफ़त हम बर्हमा व ‘बिष्णु’ व महेश अंद कि सिफ़ात-ए-आँहा दर जमीअ'-ए-मख़्लूक़ात ज़ाहिर अंद। अव्वल मख़्लूक़ पैदा मी-शवद बाज़ ब-क़द्र-ए- मौऊ'द मी-मानद व बाज़ फ़ानी मी-शवद, व शकत कि क़ुदरत-ए-ईं सेह सिफ़त अस्त आँ रा ‘तिर्देवी’ गोयंद, व अज़ां ‘तिर्मूरत’ कि बर्हमा व ‘बिष्णु’ व महेश बाशंद व अज़ीं ‘तिर्देवी’ ई सेह चीज़ बर आमद कि आँ रा ‘सरस्ती’ ‘पार्बती’ व ‘लछमी’ मी-गोयंद, सरस्ती ब-‘रजोगुन’ व बर्हमा तअल्लुक़ दारद व पार्बती ब-तमोगुन व महेश, व लछमी ब-‘सत गुन’ व ‘बिष्णु’।
5.बायन-ए-रूह
रूह दो क़िस्म अस्त, यके रूह व दीगर अबुल-अर्वाह कि ब-ज़ुबान-ए-फ़ुक़रा-ए-हिन्द ईं दो रूह रा ‘आत्मा’ व ‘परम आत्मा’ गोयंद। (चूं) ज़ात-ए-बहत मुतअ'य्यन व मुक़य्यद गर्दद चे ब-लताफ़त व चे ब-कसाफ़त ब-जेहत-ए-मुजर्रद बूदन दर मर्तबः-ए-लताफ़त ऊ रा रूह व आत्मा गोयंद व दर मर्तबः-ए-कसाफ़त जसद व सरीर गोयंद व ज़ाते कि मुतअ'य्यन ब-अज़ल गश्त ‘रूह-ए-आ’ज़म’ बाशद कि बा ज़ात-ए-मज्म’उस-स्सिफ़ात मर्तबः-ए-अहदियत दारद व ज़ाते कि जमीअ’-ए-अर्वाह दर आँ मुंदरिज अंद आँ रा ‘परम आत्मा’ व अबुल-अर्वाह गोयंद। मिस्ल-ए-आब व मौज-ए-आब व मंज़िल-ए-बदन व रूह व सरीर व आत्मा अस्त, व मजमूअ'-ए-अमवाज अज़ रू-ए-कुल्लियत ब-अबुल-अर्वाह व ‘परम आत्मा’ मानद व आब सिर्फ़ ब-मंज़िल:-ए-हज़रत-ए-वजूद व ‘सुध’ व ‘चितन’ अस्त।
6.बयान-ए-बादहा
बादे कि दर बदन-ए-इन्सान हरकत मी-कुनद चूं दर पंज मौज़ा’ मी-बाशद पंज नाम दारद, ‘प्रान’, ‘अपान’, ‘सामान’, ‘उदान’ व ‘वयान’। ‘प्रान’ हरकत-ए-आँ अज़ बीनी अस्त ता ब-अंगुश्त-ए-पा, व दम ज़दन ख़ासियत-ए-ईं बाद अस्त। ‘अपान’, हरकत-ए-आँ अज़ निशस्तगाह अस्त ता ब-उ’ज़्व-ए-मख़्सूस व ईं बाद गिर्द-ए-नाफ़ हम हल्क़ः ज़दः अस्त व बाइस-ए-हयात-ए-हमां अस्त। ‘समान’ दर सीनः-ओ-नाफ़ हरकत मी-कुनद। ‘उदान’, हरकत-ए-ईं अज़ हल्क़ अस्त ता उम्मुद्दिमाग़ व ‘वयान’ कि ज़ाहिर व बातिन अज़ीं बाद पुर अस्त।
7.बयान-ए-अ'वालिम-ए-अर्बा'
अ'वालिम कि जमीअ’-ए-मख़्लूक़ात रा नाचार गुज़र बर आनस्त बतौर-ए-बा’ज़े अज़ सूफ़िअः चहार अंद, ‘नासूत’ व ‘मलकूत’ व ‘जबरूत’ व ‘लाहूत’ व बा’ज़े पंज मी-गोयंद व आ’लम-ए-मिसाल रा दाख़िल मी-कुनंद, व जम्ए' कि आ'लम-ए-मिसाल रा बा आ'लम-ए-मलकूत यके मी-अंगारंद चहार मी-गोयंद, व ब-क़ौल-ए-फ़ुक़रा-ए-हिन्द अवस्थात कि इ’बारत अज़ीं अ'वालिम-ए-अर्बा’ बाशद चहार अंद ‘जागरत’ व ‘सपन’ व ‘सुखूपत’ व ‘तुरिया’। जागरत मुनासिब अस्त ब-नासूत कि आ'लम-ए-ज़ाहिर व आ'लम-ए-बेदारी बाशद, ‘सपन’ मुवाफ़िक़ अस्त ब-मलकूत कि आ'लम-ए- अर्वाह –ओ-आ'लम-ए-ख़्वाब बाशद, सुखूपत मुवाफ़िक़ अस्त ब-जबरूत कि दर आँ नुक़ूश-ए-हर दो आ'लम –ओ-तमीज़-ए-‘मन’ व ‘तू’ न-बाशद रव्व़ाह चश्म वा कर्दः बीनी ख़्वाह पोशीदः, व बिस्यारे अज़ फ़ुक़रा-ए-हर दो क़ौम बरीं आ'लम मुत्तला' नीस्तंद चुनांचे सय्यदुत्तायफ़: उस्ताद अबुल क़ासिम जुनैद बग़दादी क़ुद्दीसल्लाहु सिर्रहू ख़बर दादः फ़र्मूदः तसव्वुफ़ आँ बुवद कि साअ'ते ब-नशीनी बेतीमार। शैख़ुल इस्लाम गुफ़्त कि बेतीमार चे बुवद। फ़र्मूद कि याफ़्त बे-जुस्तन व दीदार बे-निगरीस्तन, चे बीनिन्दः दर दीदार इ’ल्लत अस्त, पस साअ'ते बेतीमार निशस्तन हमीं अस्त कि नुक़ूश-ए-आ'लम-ए-नासूत-ओ-मलकूत दर आँ साअ’त ब-ख़ातिर न-गुज़रन्द। व नीज़ आँ चे मौलाना-ए-रूम क़ुद्दिसल्लाहु सिर्रहू फ़र्मूदः इशारः ब-हमीं मा’नी अस्त-
ख़्वाही कि ब-याबी यक लह्ज़ः मजूयश
ख़्वाही कि बदानी यक लहज़ः मदानश
चूं दर निहानश जूई दूरी जज़े आशकारश
चूं आशकार जूई मह्जूबी अज़् निहानश
चूं ज़े आशकार–ओ-पिन्हाँ बेरूं शवी ब-बुर्हाँ
पाहा दराज़ मी-कुन ख़ुश ख़ुस्प दर अमानश
व तुरया मुवाफ़िक़ अस्त ब-लाहूत कि ज़ात-ए-महज़ बाशद–ओ-मुहीत, व शामिल–ओ-जामे’–ओ-ऐ'न-ए-ईं हर सेह आ'लम। अगर सैर-ए-इन्सां अज़ नासूत ब-मलकूत व अज़ मलकूत ब-जबरूत व अज़ जबरूत ब-लाहूत बाशद ई तरक़्क़ी अज़ूस्त व अगर हज़रत-ए-हक़ीक़तुल-हक़ायक़ कि मुवह्हिदन-ए-हिन्द आँ रा ‘अवसन’ गोयंद अज़ मर्तबः-ए-लाहूत नुज़ूल फ़र्मायद व अज़ जबरूत व मलकूत सैर-ए-ऊ मुंतही ब-आ'लम-ए-नासूत मी-शवद, व ईं कि सूफ़िय: मरातिब-ए-नुज़ूल रा बा’ज़े चहार बा’ज़े पंज क़रार दादः-अंद इशारः ब-ईं मा’नी अस्त।
8.बयान-ए-आवाज़
आवाज़ अज़ हमां नफ़्सुर्रह्मान अस्त कि ब-वक़्त-ए-ईजाद ब-लफ़्ज़-ए-‘कुन’ ज़ाहिर शुद।आँ आवाज़ रा फ़ुक़रा-ए-हिन्द ‘सरस्ती’ गोयंद। व जमीअ’-ए- आवाज़हा व सौतहा व सदाहा अज़ां आवाज़ पैदा गश्तः।
हर कुजा ब-शुनवी चू नग़्मःए ऊस्त
कि शुनीद ईं चुनी सदा-ए-दराज़
व ईं आवाज़ कि नाद बाशद नज़्द-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द बर सेह क़िस्म अस्त। अव्वल ‘अनाहत’ या’नी आवाज़े कि हमेशः बूद व हस्त व रव्व़ाहदबूद व सूफ़ियः ईं आवाज़ रा आवाज़-ए-मुत्लक़ व ‘सुल्तानुल्-अज़्कार’ गोयंद कि क़दीम अस्त व एह्सासे ‘महा आकास’ अज़ीं अस्त, व ईं आवाज़ रा दर नयाबंद मगर अकाबिर-ए-आगाह-ए- हर दो क़ौम। दोउम, ‘आहत’ या’नी आवाज़े कि अज़ ज़दन-ए-चीज़े ब-चीज़-ए-बे-तरकीब अल्फ़ाज़ पैदा शवद। सेउम ‘सबद’ कि ब-तर्कीब-ए-अलफ़ाज़ पैदा शवद व आवाज़ ‘सबद’ रा ब-सरस्ती मुनासबत अस्त, व अज़ हमीं आवाज़ ‘इस्म-ए-आ'ज़म’ कि मियान-ए-अह्ल-ए-इस्लाम अस्त व कलिमा कि फ़ुक़रा-ए-हिन्द आँ रा ‘बेदमुख’ गोयंद अ-उ-म ज़ाहिर शुद, व मआ'नी-ए-ईं इस्म-ए-आ’ज़म आनस्त कि ऊस्त साहिब-ए-से सिफ़त कि ईजाद व इब्क़ा व इफ़्ना अस्त, व फ़तहः व ज़म्मः व कस्रः कि आँ रा ‘आकार’, ‘उकार’, व ‘मकार’ गोयंद अज़ हमीं ज़ाहिर शुदः, व मर ईं इस्म रा सूरत-ए-ख़ास अस्त नज़्द-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द कि ब-इस्म-ए-आ’ज़म-ए-मा मुशाबहत-ए-तमाम दारद व निशान-ए-उ'न्सुर-ए-आब व आतश व ख़ाक व बाद व ज़ात-ए- बहत नीज़ दरीं ज़ाहिर अस्त।
9.बयान-ए-नूर
नूर सेह क़िस्म अस्त। अगर ब-सिफ़त-ए-जलाल ज़ाहिर शवद या ब-रंग-ए-आफ़्ताब अस्त या ब-रंग-ए-याक़ूत या ब-रंग-ए-आतश। व अगर ब-सिफ़त-ए-जमाल ज़ाहिर शवद या ब-रंग-ए-माह अस्त या ब-रंग-ए-नुक़रः या ब-रंग-ए-मर्वारीद या ब-रंग-ए-आब, व नूर-ए-ज़ात कि मुनज़्ज़ह अस्त अज़ सिफ़ात-ए-आँ रा जुज़ औलिया-ए-ख़ुदा कि हक़ सुब्हानहु तआ'ला दर हक़्क़-ए-ईशां फ़र्मूदः यह्दिल्लाहु लिनूरिही मय्यशाउ1 दीगरे दर नमी-याबद, या’नी हिदायत मी-कुनद अल्लाह तआ'ला हर कि रा मी-रव्व़ाहद ब-नूर-ए-ख़ुद।
व आँ नूरेस्त कि चूं शख़्स दर ख़्वाब शवद बा-चश्म पोशीदः ब-नशीनद, न बचश्म बीनद व न ब-गोश शुनवद व न ब-ज़ुबान गोयद व न ब-बीनी बूयद व न ब-लामिसः एहसास कुनद, व हाल आँ कि दर रव्व़ाब हमेशः ईं हमः कारहा ब-यक चीज़ कुनद व मुहताज-ए-आ'ज़ा व हवास-ए-ज़ाहिरी व रौशनाई चराग़ न-बाशद व बासिरः व सामिअ’: व ज़ायक़ः व शाम्मः व लामिसः ऐ'न-ए-यकदीगर शवंद व यक ज़ात गर्दंद, आँ रा नूर-ए-ज़ात गोयंद, व आँ नूर-ए- ख़ुदास्त जल्ला शानुहू।
ऐ दोस्त फ़िक्र कुन कि चे गुफ़्तम कि जाए फ़रासत व फ़िक़्र अस्त व रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अ'लैहि वसल्लम दर ता’रीफ़-ए-ईं फ़िक्र फ़र्मूदः तफ़क्कुरो साअ'तिन ख़ैरून मिन इ'बादति सनतिन या’नी ईं फ़िक्रेस्त कि साअ'ते दरीं फ़िक्र बूदन बेहतर अज़ अ'मल-ए-आदमी व परीस्त। व नूरे कि अज़ आय:-ए-करीमः अल्लाहु नूरुस्समावाति वल्अर्ज़ि2, या’नी अल्लाह तआ'ला नूर-ए-आसमानहा व ज़मीनहा अस्त मफ़्हूम मी-गर्दद आँ रा फ़ुक़रा-ए-हिन्द ‘जोन सरूप’ व ‘सवा परकास’ व ‘सपन परकास’ गोयंद या’नी, ईं नूर हमेशः ख़ुद ब-ख़ुद रौशन अस्त रव्व़ाह दर आ'लम नुमायद रव्व़ाह न-नुमायद। चुनांचे सूफ़ियः नूर रा ब-मुनव्वर तफ़्सीर मी-कुनंद व ईशां (अह्ल-ए-हिन्द) नीज़ ब-मुनव्वर ता’बीर कर्दःअन्द। व तर्जुम:-ए-ईं आय:-ए-करीमः कि अल्लाहु नूरुस्समावाति वल्अर्ज़ि चुनीं अस्त कि अल्लाह तआ'ला नूर-ए-आसमानहा व जमीनहास्त, (म-सलु नूरिही कमिश्कातिऩ् फ़ीहा मिस्बाहुऩ्) व मिस्ल-ए-नूर-ए-ऊ मानिंद-ए-ताक़च: अस्त कि दरां मिसबाह बाशद, (अल-मिस्बाहु फ़ी ज़ुजाजतिन्) व आँ चराग़ दर शीशः बुवद, (अज़्-ज़ुजाजतु, क-अन्नहा कौकबुन् दुरीय्युन्) व शीशः गोया कि सितार:-ए-दरख्शंदः अस्त कि, (यूक़दो मिन् श-ज-रतिम्-मुबा-र-कतिन् ज़ैतूनतिल्ला शर्क़ीयतिव्-व व ला ग़र्ब़िय्यतिन्) अफ़रोख़्तः शुदः अस्त अज़ दरख़्त-ए-मुबारक-ए-ज़ैतून कि न शर्क़ी अस्त व न ग़र्बी व (यकादु ज़ैतुहा युज़ीउ व लौ लम् तम्सस्हु नारुनन) नज़दीक अस्त कि रोग़न-ए-आँ ज़ैतून-ए-मुबारक रौशनी बख़्शद बा आँ कि आतश ब-ऊ न-रसीदः बाशद व (नूरुन् अ’ला नूरिन्) नूरेस्त बर (यहिदल्लाहु लिनूरिही मय्यशाउ) व राह मी-नुमायद अल्लाह तआ'ला ब-नूर-ए-ख़ुद हर कि रा कि मी-ख़्वाहद।
अम्मा आँ चे कि फ़क़ीर फ़ह्मीदः ईं बाशद कि मुराद अज़ मिश्कात कि ताक़ बाशद आ'लम-ए-अज्साम अस्त व मुराद अज़ मिस्बाह कि चराग़ बाशद नूर-ए-ज़ात अस्त व मुराद अज़ शीशः रूह अस्त कि मानिंद-ए-सितार:-ए-दरख़्शिन्दः अस्त कि अज़ रौशनी-ए-आँ चराग़ ईं शीशः हम मानिंद-ए-चराग़ मी-नुमायद व ‘अफ़्रोख्तः शुदः अस्त आँ चराग़’ इ’बारत अज़ नूर-ए-वजूद अस्त व अज़ ‘शज़र-ए-मुबारक’ ज़ात-ए-हक़ सुब्हानहु तआ’ला मुराद अस्त कि मुनज़्ज़ह अस्त अज़ जिहात-ए-शर्क़ी व ग़र्बी। व मुराद अज़ ‘ज़ीत’ ‘रूह-ए-आज़म’ अस्त कि न अज़ली व न अबदी अस्त, या’नी आँ ज़ैत अज़ ग़ायत-ए-लताफ़त व सफ़ा ख़ुद ब-ख़ुद रौशन व ताबाँ अस्त व मुहताज ब-अफ़्रोख़्तन नीस्त, चुनांचे उस्ताद अबू बक्र वासिती अ’लैहिर्रहम: दर ता’रीफ़-ए-रूह मी-फ़र्मायद कि ज़जाज-ए-रूह ब-मर्तब:-ए- रौशन अस्त कि मुहताज-ए-लम्स-ए-नार-ए-नासूत व शुआ'अ' नीस्त व अज़ ग़ायत-ए-इस्ते’दाद-ए-ज़ाती नज़दीक अस्त कि ख़ुद ब-ख़ुद रौशन शवद। व ईं नूर-ए-ज़ीत ‘नूरुन अ'ला नूरी’ अस्त या’नी अज़ निहायत-ए-सफ़ा व रौशनी-ए- नूरेस्त बर नूर, व ब-ईं रौशनाई नमी-बीनद कसे ऊ रा ता ऊ ख़ुद हिदायत न-कुनद ब-नूर-ए-वहदत-ए-खु़द। पस मुराद अज़ मज्मूअ'-ए-ईं आय:-ए-करीमः आनस्त कि हक़ सुब्हानहु तआ’ला ब-नूर-ए-ज़ात-ए-ख़ुद दर पर्दःहा-ए-लतीफ़ व नूरानी ज़ाहिर अस्त व हेच ज़ुल्मते- व हिजाबे दरमियां नीस्त व नूर-ए-ज़ात दर पर्दः-ए-रुहुल-अर्वाह ज़ाहिद अस्त व रूहुल-अर्वाह दरपर्दः-ए-अर्वाह व अर्वाह दर पर्दः-ए-अज्साम। हमचुनीं ‘चराग़’ ब-आँ नूर-ए-ज़ीत दर पर्दः-ए-शीशः ताबाँ व ज़ाहिर अस्त व ‘शीशः’ दर पर्दः-ए-ताक़चः। व ईंहा इक्तिसाब-ए-नूर अज़ नूर-ए-ज़ात मी-कुनद लिहाज़ा रौशनी बर रौशनी अफ़जूदः।
1.क़ुरआन 24-35, 25. क़ुरआन 24-35
10.बयान-ए-रूयत
रूयत-ए-ख़ुदा-ए-तआ'ला रा मुवह्हिदान-ए-हिन्द ‘साछात्कार’ गोयंद या’नी दीदन-ए-ख़ुदा ब-चश्म-ए-सर। बदाँ कि दर दीदन-ए-ख़ुदा-ए-तआ'ला दर दुनिया व आख़िरत ब-चश्म-ए-ज़ाहिर व बातिन हेच यके अज़ अम्बिया अ’लैहिस्सलाम व औलिया-ए-कामिल क़ुद्दिसल्लाहु सिर्रहु शक्के व शुब्हे नेस्त व जमी’अ-ए-अह्ल-ए-किताब व कामिलान व बीनायान-ए- हर मिल्लत ब-ईं मा’नी ईमान दारंद, चे अह्ल-ए-क़ुरआन व चे अह्ल-ए-बेद व चे अह्ल-ए-तौरेत व इंजील व ज़बूर। व अज़ नाफ़हमीदगान व नाबीनायान-ए-मिल्लत-ए-ख़ुद बुवद हर कि इन्कार-ए-रूयत नुमायद, चे ज़ात-ए- मुक़द्दसे कि बर हम: चीज़ क़ादिर बाशद बर नुमूदन-ए-ख़ुद हम चरा क़ुद्रत न-दाश्तः बाशद व ईं मस्अलः रा औलिया-ए-सुन्नत-वल-जमाअ’त ख़ूब बे-पर्दः गुफ़्त अंद। अम्मा अगर ज़ात-ए-बहत रा गुफ़्तः अंद कि तवाँ दीद -ईं मुहाल अस्त चे ज़ात-ए-बहत लतीफ़ व बे-तअ’य्युन अस्त व मुतअ’य्यन न-गर्दद व दर पर्दः-ए-लताफ़त जल्व:गर ब-शवद पस न-तवाँ दीद व चुनीं रूयत मुहाल बाशद। व आँचे गुफ़्तः अंद कि दर आख़िरत तवाँ दीद व दर दुनिया न- तवाँ दीद अस्ले न-दारद ज़ेरा कि हर गाह कमाल-ए-क़ुदरत दरू हस्त हर तौर व हर जा व हर गाह कि रव्व़ाहद क़ादिर बर नमूदन-ए-ख़ुद अस्त व हर कि ईं जा न-दीद मुश्किल अस्त कि तवानद दरांजा दीद, चुनांचे ख़ुद दर आय:-ए-करीमः व मन् का-न फ़ी हाज़िही आ’मा फ़हु-व फ़िल्आख़िरति आ’मा1, या’नी हर कि दरीं दुनिया अज़ दौलत-ए-दीदार-ए-मन महरूम अस्त दर आख़िरत नीज़ महरूम रव्व़ाहद मांद अज़ ने’मत-ए-जमाल-ए-मन। व मुनकिरान-ए- रूयत कि हुक्मा-ए-‘मो’तज़लाः’ व शिअ’: बाशंद दरीं मस्अलः ख़ता-ए-अ'ज़ीम कर्दः अंद, चरा कि अगर मी-गुफ़्तंद कि दीदन-ए-ज़ात-ए-बहत मुम्किन नीस्त बहर हाल सूरते दाश्त व चूं ईशाँ जमीअ’-ए-अक़्साम-ए-रूयत रा मुन्किर शुदः अंद ईं निहायत-ए-ख़तास्त ज़ेराकि अक्सर अज़ अम्बिआ-ए-मुर्सल व औलिया-ए-अक्मल ख़ुदा रा ब-चश्म-ए-ज़ाहिर दीदः व कलाम-ए-बा-एहतराम-ए-ऊ रा बे-वास्तः शुनीदः अंद, व हर गाह कि ईशाँ शनीदन-ए-कलाम-ए-हक़ रा अज़ हमः जेहत क़ाबिल अंद चरा दीदन रा हम अज़ हमः जेहत क़ाबिल न-बाशंद। अलबत्ता बाशंद। व चुनांचे ईमान ब-ख़ुदा व मलायकः व किताबहा व अम्बिया व क़ियामत व क़ज़ा व क़द्र व ख़ैर व शर व ख़ान:हा-ए-मुतबर्रक वग़ैरः फ़र्ज़ अस्त ईमान ब-रूयत हम फ़र्ज़ व लाज़िम अस्त। व इख़्तिलाफ़े कि अज़ ना-रसीदगान-ए-उ’लमा-ए-सुन्नत वल-जमाअ’त, कर्दः-अंद दर मा’नी व लफ़्ज़-ए-ईं हदीस कि आइशः सिद्दीक़ः पुरसीद अज़ हज़रत-ए-रसूल सलअ’म कि ‘हल रऐ-त रब्बक’ या’नी अया दीदी तू पर्वर्दिगार-ए-ख़ुद रा। फ़र्मूद नूरुन् इन्नी अराहु, या’नी नूरेस्त कि मी-बीनम ऊ रा। आँ हा ईं हदीस रा नूरुन् इन्नी रआहु ख़्वांदः अंद, या’नी नूरेस्त चेगूनः बीनम ऊ रा। लाकिन ईं दलील-ए-ना-दीदन-ए-पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम नमी-शवद, अगर मआ'नी-ए-अव्वल गीरम इशारः ब-रूयत-ए-नाम-ए-ऊस्त दर पर्दः-ए-नूर, व अगर चुनीं रव्व़ांदः शवद कि नूरेस्त चेगूनः बीनम ऊ रा इशारः ब-ज़ात-ए-बहत व बे-रंग अस्त। ईं इख़्तिलाफ़-ए-इ’बारती नीस्त बल्कि एजाज़-ए-नबीस्त कि दर यक हदीस दो मस्अल: बयान तवाँ कर्द। व आयः-ए-करीमः वुजूहु ’य्यौमइज़िन् नाज़ि-र-तुन् इला रब्बिहा नाजिरः2 या’नी दर आँ रोज़े कि रूहहा तर-ओ-ताज़ः रव्व़ाहंद बूद व बीनिंदः ब-सू-ए-पर्वर्दिगार-ए-ख़ुद बुरहान-ए-ज़ाहिर अस्त बर रूयत-ए-पर्वर्दिगार जल्लशानहु। व आयः-ए-करीमः ला तुद्रिकुहुल्-अब्सारु व हु-व युद्रिकुल्-अब्सा-र व हुवल्लतीफ़ुल्-ख़बीर3। इशारः ब-बेरंगीस्त या’नी नमी-बींनद ब-सरहा दर मर्तबः-ए-इत्लाक़ व बे-रंगी व ऊ हमः रा मी-बीनद व ऊ दर निहायत-ए-लताफ़त व बे-रंगीस्त, व दरीं आय:-ए-करीमः इस्म-ए-‘हू’ कि वाक़ेअ' शुदः इशारः ब-न-दीदन-ए-ज़ात-ए-बहत अस्त। दीदन-ए-ख़ुदा-ए-तआ’ला पंज क़िस्म अस्त। क़िस्म-ए-अव्वल, दर रव्व़ाब ब-चश्म-ए-दिल, दोउम दीदन दर बेदारी ब-चश्म-ए-सर, सेउम, दर्मियान-ए-बेदारी व रव्व़ाब कि आँ बे-ख़ुदी-ए-ख़ास अस्त। चहारुम, दर यक तअ’य्युन-ए-ख़ास, पंजुम, दीदन-ए-यक ज़ात-ए-वाहिद अस्त दर कस्रत-ए-तअ’युनात-ए-अ’वालिम-ए-ज़ाहिर व बातिन, ब ईं चुनीं दीद हज़रत-ए-रसूल सलअ’म दर वक़्ते कि ख़ुद न-बूद दर्मियान व राई व मरई यके बूद, व रव्व़ाब व बेदारी व बे-ख़ुदी-ए-ऊ यके मी-नमूद व चश्म-ए-ज़ाहिर व बातिन-ए-ऊ यके शुदः बूद, मर्तब:-ए-कमाल-ए-रूयत ईं नीस्त व ईं रा दुनिया व आख़िरत दरकार नीस्त व हमः जा व हमः वक़्त मयस्सर अस्त।
1.क़ुरआन 17-72, 2.क़ुरआन 75-22, 23, 3. क़ुरआन 6-103।
11.बयान-ए-अस्मा-ए-अल्लाह तआ'ला
बदाँ कि अस्मा-ए-अल्लाह तआ'ला बे-निहायत अस्त व अज़ हद्द-ए-हस्र बेरून।ज़ात-ए-मुत्लक़ व बहत व सिर्फ़ व ग़ैबुल्ग़ैब व हज़रत-ए-वाजिबुल् वजूद रा ब-ज़ुबान-ए-फ़ुक़रा-ए-हिन्द ‘असन’ व ‘निर्गुन’ व ‘निरंकार’ व ‘निरंजन’ व ‘सत्’ व ‘चित्’ गोयंद। अगर इ'ल्म रा ब-ऊ निस्बत देहंद कि अह्ल-ए-इस्लाम ऊ रा अ'लीम मी-गोयंद फ़ुक़रा-ए-हिन्द आँ रा ‘चेतन’ नामंद व इस्मुल्हक़ रा ‘अनंत’ गोयंद, क़ादिर रा ‘समर्थ’ व समीअ' रा ‘स्रोता’ व बसीर रा ‘द्रश्ता’ रव़्व़ानंद, व अगर कलाम रा ब-आँ ज़ात-ए-मुत्लक़ निस्बत देहंद ‘वक्ता’ नामंद व अल्लाह रा ओम व हू रा ‘सः’ व फ़रिश्तः रा ब-ज़ुबान-ए-ईशाँ ‘देवता’ गोयंद, व मज़्हर-ए-अतम रा ‘अवतार’ नामंद, व ‘अवतार’ आँ बाशद कि क़ुदरत-ए-इलाही आँ चे दर ज़ाहिर शवद व अज़ वजूद-ए-ऊ ब-नज़र आयद, दर हेच यके अज़ अफ़्राद-ए-नौअ’-ए-ऊ दर आँ वक़्त ज़ाहिर न-शवद, व ‘वह्य’ रा कि बर पैग़म्बर नाज़िल शवद ‘अकासबानी’ नामंद व ‘अकासबानी’ ब-जहत-ए-आँ गोयंद कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ’लैहि व-सल्लम फ़र्मूदः कि साअ'बतरीन औक़ात बर मन बक़्त-ए-वह्य अस्त कि मी-शनवम वह्य रा मानिंद-ए-आवाज़-ए-जरस या मानिंद-ए-आवाज़-ए-ज़ंबूर, व चूं ईं आवाज़ अज़ ‘अकास’ ज़ाहिर मी-शवद ‘अकासबानी’ मी-गोयंद। व कुतुब-ए-आसमानी रा ‘बेद’ गोयंद, व ख़ूबान-ए-जिन्नियान रा कि परी बाशंद ‘नछरा’ गोयंद व बदन-ए-आँहा रा कि देव व शयातीन अंद ‘राछस’ गोयंद व आदमी रा ‘मनुख’, वली रा ‘रिखी’ व नबी रा ‘महासुध’ नामंद।
12.बयान-ए-नबूव्वत-ओ-विलायत
अम्बिया बर सेह क़िस्म अंद, यके आँ कि ख़ुदा रा दीदः बाशंद ब-चश्म, रव्व़ाह ब-चश्म-ए-ज़ाहिर, रव्व़ाह ब-चश्म-ए- बातिन। दीगर आँ कि आवाज़-ए-ख़ुदा शनीदः बाशंद रव्व़ाह आवाज़ सिर्फ़, रव्व़ाह आवाज़-ए-मुरक्कब अज़ हुरूफ़-ए- कलिम:। दीगर आँ कि फ़रिश्तः रा दीदः बाशंद या आवाज़-ए-फ़रिश्तः रा शनीदः बाशंद।व नबूव्वत व विलायत बर सेह क़िस्म अस्त, यके नबूव्वत व विलायत-ए-तंज़ीही, दोउम नबूव्वत व विलायत-ए-तश्बीही, सेउम नबूव्वत व विलायत-ए-जामिउ'त्तश्बीह वत्तन्ज़ीह।
अव्वल, नबूव्वत-ए-तंज़ीही, चूं नबूव्वत-ए-हज़रत नूह अ’लैहिस्सलाम कि ख़ुदा रा ब-तंज़ीह दीद व दा'वत कर्द व उम्मत ब-जहत-ए-तंज़ीह ईमान न-यावुर्द मगर क़लीले व हमः दर बह्र-ए-फ़ना ग़र्क़ शुदंद चूं ज़ाहिदान-ए-ज़मान-ए-मा कि ब-तंज़ीह-ए-ख़ुदा मुरीदाँ रा रव्व़ानंद व हेच कस अज़ाँ मुरीदान-ए-आ’रिफ़ न-शवद व अज़ क़ौल-ए-आँहा नफ़्ई’ न-बुरद व दर राह-ए-सुलूक व तरीक़त फ़ना व हलाक गर्दद व ब-ख़ुदा न-रसद।
दोउम, नबूव्वत-ए-तश्बीही चूं नबूव्वत-ए-मूसा अस्त अ’लैहिस्सलाम कि ख़ुद ख़ुदा रा दर आतश-ए-दरख़्त दीद व अज़ अब्र सुख़न-ए-हक़ शुनीद व अ’क्सर-ए-उम्मत अज़ तक़्लीद-ए-मूसा दर तशब्बुह उफ़्तादः गोसालः परस्त शुदंद व इ'स्यान वर्ज़ीदंद व इम्रोज़ बा’ज़े अज़ मुक़ल्लिदान-ए-ज़मान-ए-मा आँ कि महज़ तक़्लीद-ए-कामलान पेशः कर्दः-अंद व बरीं ज़िन्दगानी कुनंद अज़ तंज़ीह दूर उफ़्तादः दर तशब्बुह फ़रो रफ़्तंद व ब-दीदन-ए-सूरतहा-ए-ख़ूब व मर्ग़ूब दर लह्व व लइ'ब गिरफ़्तार अंद व पैरवी-ए-ईशाँ न-शायद।
हर सूरत-ए-दिलकश कि तुरा रूए नमूद
रव्व़ाहद फ़लक़ अज़ चश्म-ए-तु अश ज़ूद रुबूद
रौ दिल ब कसे देह् कि दर अतवार-ए-वजूद
बूद अस्त व हमेशः बा तू रव्व़ाहद बूद
सेउम नबूव्वत-ए-जामे’उ'त्तंजीह व त्तश्बीह्, या’नी जम्अ' कुनंद:-ए-तंजीह व तश्बीह व आँ नबूव्वत-ए-मुहम्मदीस्त सल्लल्लाहो अ’लैहि वसल्लम कि मुत्लक़ व मुक़य्यद रंग व बे-रंग व नज़्दीक व दूर रा यकजा कर्दः, व इशारः ब-ईं मर्तबः अस्त दरीं आय:-ए-करीमः कि लै-स कमिस्लिही शैउन् व हुवस्समीउल् बसीर1, या’नी नीस्त मिस्ल-ए-ऊ चीज़े व ईं इशारः ब-मर्तबः-ए-तंज़ीह अस्त व शुनवाई व बीनाई इशारः ब-तश्बीह बूद। ब-ईं मर्तबः-ए-बुलंदतरीं व आ'लातरीं मर्तबः-ए-जामिईयत व रव़ातमत अस्त कि मख़्सूस ब-ज़ात-ए-आँ सरवर सलअ'म अस्त, पस रसूल-ए-मा हमः आ'लम रा अज़ शर्क़ ता ग़र्ब फ़रो गिरफ़्तः। व नबूव्वत-ए-तंजीही महरुम अस्त अज़ नबूव्वत-ए-तश्बीही व नबूव्वत-ए- तश्बीही आ'रीस्त अज़ नबूव्वत-ए-तंज़ीही, व नबूव्वत-ए-जामिअ' शामिल-ए-तंज़ीह-ओ-तश्बीह अस्त चूं हुवल-अव्वलु वल्-आख़िरु वज़्ज़ाहिरो वल्बातिनु2, हमचुनीं विलायत मख़्सूस अस्त ब-कामिलान-ए-ईं उम्मत कि हक़ तआ'ला दर वस्फ़-ए-ईशाँ फ़र्मूदः कुन्तुम् ख़ै-र उम्मतिऩ् उख़रिजत् लिन्नासि3 या’नी बेह्तरीन उम्मतियान ईशानंद कि जम्अ कुनन्द:-ए-तश्बीह व तंजीह अंद। चुनांचे दर ज़मान-ए-पैग़म्बर-ए-मा सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम अज़ औलिया अबू बक्र व उ'मर व उ'स्मान व अ'ली व हसन व हुसैन व सित्त:-ए-बाक़िया व अ’शर:-ए-मुबश्शरः, व अकाबिर-ए-मुहाजिर व अनसार व अह्ल-ए-सूफ़ियः बूदंद।व अज़ आँ जुमलः दर ताबिई’न चूं उवैस क़रनी वग़ैरः। व दर ज़मान-ए-दीगर चूं ज़ुन्नून-ए-मिस्री व फ़ुज़ैल अयाज़ व मा’रूफ़ कर्ख़ी व इब्राहीम अद्हम व बिश्र हाफ़ी व सिर्रि अस्सक़ती व बायज़ीद बिस्तामी व उस्ताद अबुल क़ासिम जुनैदी व सह्ल बिन अ’ब्दुल्लाह अत्तुस्तरी व अबू सई'द ख़र्राज़ व रुवैम व अबुल हसन अन्नुरी व इब्राहीम ख़वास व अबू बक्र शिब्ली व अबू बक्र वासिती व अम्साले ईशां। व दर ज़मान-ए-दीगर चूं अबू सई’द अबुल ख़ैर व शैख़ुल इस्लाम ख़्वाजः अ’ब्दुल्लाह अंसारी व शैख़ अहमद जाम व मुहम्मद मा’शूक तूसी व अहमद ग़ज़ाली व अबुल क़ासिम गुरगानी। व दर ज़मान-ए-दीगर चूं पीर-ए-मन शैख़ मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी व अबू मदीनुल मग़्रिबी व शैख़ मुहीउद्दीन इब्नुल अ'रबी व शैख़ नज्मुद्दीन कुब्रा व शैख़ फ़रीदुद्दीन अ'त्तार व मौलाना जलालुद्दीन रूमी। व दर ज़मान-ए-दीगर चूं ख़्वाजः मुईनुद्दीन चिश्ती व ख़्वाजः बहाउद्दीन नक़्शबंद व ख़्वाजः अहरार व मौलाना अ’ब्दुर्रहमान जामी। व दर ज़मान-ए-दीगर चूं शैख़-ए-मन जुनैद सानी शाह मीर व उस्ताद-ए-मन मियां बारी व मुर्शिद-ए-मन मुल्ला शाह व शाह मुहम्मद दिलरुबा व शैख़ तय्यब सरहिंदी व बाबा लाल बैरागी।
1.क़ुरआन 42-11, 2. क़ुरआन 57-3, 3. क़ुरआन 3-110
13.बयान-ए-बर्ह्मांद
मुराद अज़ बर्ह्मांद ‘कुल’ व तक़य्यद-ए-ज़ुहूर-ए-हज़रत-ए-वजूद अस्त ब-सूरत-ए-कुर्रः-ए-मुदव्वर व चूं ऊ रा ब-हेच तरफ़ मैल व तअ’ल्लुक़ नीस्त व निस्बत-ए-ऊ बा हमः बराबर अस्त व हमः पैदाइश व नुमाइश दर्मियाने ईंस्त लिहाज़ा मुवह्हिदान-ए-हिन्द ईं रा ‘बर्ह्मांद’ गोयंद।
14.बयान-ए-जिहात
मुवह्दिदान-ए-इस्लाम हर यक अज़ मश्रिक़ व मग़्रिब व शिमाल व जुनूब व फ़ौक़ व तहत रा जिहत-ए-ए’तबार नमूद: शश जिहत गुफ्तः-अंद व मुवह्दिदान-ए-हिन्द जिहात रा दिह मी-गोयंद या’नी माबैन-ए-मश्रिक़ व मग़्रिब व शिमाल व जुनूब रा नीज़ जिहत-ए-ए’तबार नमूदः ‘दिह दिशा’ मी-नामंद।
15.बयान-ए-आस्मानहा
आस्मानहा कि आँ रा ‘अकन’ (गगन) मी-गोयंद बतौर-ए-अह्ल-ए-हिन्द हश्त अस्त, हफ़्त अज़ाँ मक़र्र-ए-हफ़्त कवाकिब-ए-सय्यारः अस्त कि ज़ुह्ल व मुश्तरी व मिर्रीख़ व शम्स व ज़ुहरा व उ’तारिद व क़मर बाशंद व बज़ुबान-ए-अह्ल-ए-हिन्द ईं हफ़्त सितारः रा हफ़्त ‘नछत्र’ या’नी ‘सनीचर’ व ‘ब्रस्पत’ व ‘मंगल’ व ‘सूरज’ व ‘सुक्र’ व ‘बुध’ ‘चंद्रमास’ मी-गोयंद। व आस्माने कि जमी’अ-ए-सवाबित दर आँ अंद आँ रा हश्तुम मी-दानंद व हमीं आस्मान रा हुकमा फ़लक-ए-हश्तुम व फ़लक-ए-सवाबित मी-गोयंद कि ब-ज़ुबान-ए-अह्ल-ए-शरअ' कुर्सी अस्त व-सि-अ’ कुर्सिय्युहुस्समावाति वल्अर्ज़1 या’नी आस्मानहा व ज़मीनहा दर ‘कुर्सी’ मी-गंजनद व ‘नहुम’ कि आँ रा ‘महा अकास’ मी-गोयंद दाख़िल-ए-आस्मानहा न-कर्दः-अंद जिहत-ए-आँ कि आँ मुहीत-ए-हमः अस्त व कुर्सी व आस्मानहा व ज़मीनहा रा इहातः कर्दः- अस्त।
1.क़ुरआन 2-255।
16.बयान-ए-ज़मीन
ज़मीन नज़्द-ए-अह्ल-ए-हिन्द हफ़्त तब्क़ः अस्त कि आँ रा ‘सप्त ताल’ मी-गोयंद व हर तब्क़ः-ए-ईं यक नाम दारद, ‘अतल’, ‘बतल’, ‘सुतल’, ‘तलातल’, ‘महातल’, ‘रसातल’ व ‘पाताल’। बतौर-ए-अह्ल-ए-इस्लाम नीज़ ज़मीन हफ़्त अस्त ब-मूजिब-ए-आय:-ए-करीमः अल्लाहुल्लज़ी ख़-ल-क़ सब्-अ' समावातिव्-व मिनल् अर्ज़ि मिस्-लहुन-न1 या’नी अल्लाह तआ'ला आँ ख़ुदाईस्त कि ख़ल्क़ गर्दानीद हफ़्त आस्मानहा रा व अज़ ज़मीन हम मानिंद-ए-आँ आस्मानहा।
1.क़ुरआन 65-12।
17.बयान-ए-क़िस्मत-ए-ज़मीन
रुब्अ’-ए-मस्कून रा हुकमा ब-हफ़्त तब्क़ः क़िस्मत कर्दः-अंद व हफ़्त इक़्लीम मी-गोयंद व अह्ल-ए-हिन्द आँ रा ‘सप्तदीप’ मी-नामंद व ईं हफ़्त तबक़:-ए-ज़मीन रा बर रू-ए-ज़मीन हम मिस्ल-ए-पोस्त-ए-प्याज़ नमी-दानंद बल्क़ि ब-मरातिब मिस्ल-ए-पायःहा-ए-नर्दबान तसव्वुर मी-कुनंद। व हफ़्त कोह रा कि अह्ल-ए-हिन्द आँ-हा रा ‘सप्त कुलाचल’ गोयंद बर गिर्द-ए-हर ज़मीने कोहे रा मुहीत मी-दानंद व नाम-ए-कोहहा ईंस्त, अव्वल ‘सुमेरु’ दोउम ‘समूपत’, सेउम ‘हिमकूत’, चहारुम ‘हिमवन’, पंजुम ‘मकदा’, शशुम ‘पारजात्र’, हफ़्मतु ‘कैलास’। चुनांचे दर आय:-ए-करीमः वल्जिबा-ल औतादन्2 वाक़ेअ' अस्त या’नी (गर्दानीदेम) कोह-हा रा मेख़हा-ए-ज़मीन। व बर गिर्द-ए-हर यके अज़ आँ हफ़्त कोह हफ़्त दरिया अंद कि मुहीत-ए-हर कोह अंद व आँ रा ‘सप्त समुंदर’ मी-गोयंद व नामहा-ए-ईं हफ़्त दरिया ईं अंद अव्वल ‘लोन समुंदर’ या’नी दरिया-ए-शोर, दोउम ‘उंछ रस समुंदर’ या’नी दरिया-ए-आब-ए-नैशकर, सेउम ‘सुरा समुंदर’ या’नी दरिया-ए-शराब, चहारुम ‘घृत समुंदर’ या’नी दरिया-ए-रौग़न-ए-ज़र्द,पंजुम ‘दद्ध समुंदर’ या’नी दरिया-ए-जुग़रात, शशुम ‘खीर समुंदर’ या’नी दरिया-ए-शीर, हफ़्तुम ‘स्वाद जल’ या’नी दरिया-ए-आब-ए-ज़ुलाल। व बूदन-ए-दरिया ब- अ'दद-ए-हफ़्त अज़ीं आयः मा’लूम मी-शवाद। व लौ अन्-न मा फ़िल्अर्ज़ि मिन् श-जा-रतिऩ् अक़लामुव्वल्बह्रु यमुद्दुहू मिम्बअ-दिही सब-अतु अब्हुरिम-मा नफ़िदत् कलिमातुल्लाहि2 या’नी ब-दुरुस्ती कि अज़ दरख्ताँ कि बर ज़मीन अंद क़लमहा शवद व आँ हफ़्त दरियाहा स्याही शवंद तमाम नमी-शवद कलिमात-ए-ख़ुदा या’नी मुक़द्दरात-ए-ख़ुदा व दर हर ज़मीने व कोहे व दरिया-ए-अक़्साम-ए-मख़्लूक़ात हस्तंद। व ज़मीन व कोह व दरिया कि फ़ौक़-ए-हमः ज़मीनहा व कोहहा व दरियाहा अस्त बतौर-ए-मुहक़्क़िकान-ए-हिन्द आँ रा ‘स्वर्ग’ रव्व़ानंद कि बिहिश्त व जन्नत बाशद। व ज़मीन व दरिया कि तहत-ए-हमः ज़मीनहा व कोहहा व दरियाहास्त आँ रा ‘नरक’ गोयंद कि इ’बारत अज़ दोज़ख़ अस्त व जहन्नम। व तह्क़ीक़-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द अस्त कि बिहिश्त व दोज़ख़ अज़ हमीं आ'लम कि आँ रा ‘बर्हमांद’ गोयंद ख़ारिज नीस्त, व ईं हफ़्त आस्मान रा कि मक़र्र-ए-ईं हफ़्त सितारः अंद, मी-गोयंद कि, बर गिर्दे बिहिश्त मी-गर्दंद न बर बाला-ए-बिहिश्त। व सक़्फ-ए-बिहिश्त रा ‘मन आकास’ मी-दानंद कि अ’र्श बाशद व ज़मीन-ए-बिहिश्त रा कुर्सी।
1.क़ुरआन 78-7, 2. क़ुरआन 31-27।
18.बयान-ए-आ'लम-ए-बर्ज़ख़
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम फ़र्मूदः मन मा-त फ़क़द क़ा-म क़या-म-तुहू या’नी शख़्से कि मुर्द पस तह्क़ीक़ कि क़ायम शुद क़ियामत-ए-ऊ। व बा’द अज़ मौत ‘आत्मा’ की रूह बाशद अज़ बदन-ए-उं’सुरी मुफ़ारक़त नमूदः बे-तख़ल्लुल-ए-ज़माँ ब-बदने ‘मुक्त’ कि आँ रा ‘सूछम-सरीर’ गोयंद दर मी-आयद व आँ बदन-ए-लतीफ़ अस्त कि अज़ अ'मल सूरत गिरफ़्तः बाशद। अ'मले नेक रा सूरत-ए-नेक व अ'मल-ए-बद रा सूरत-ए-बद। व बा’द अज़ सवाल व जवाब बे-दरंग व बे-तवक़्क़ुफ़ अह्ल-ए-बिहिश्त रा ब-बिहिश्त व अह्ल-ए-दोज़ख़ रा ब-दोज़ख़ मी-बुरंद, मुवाफ़िक़-ए-ईं आय:-ए-करीमः फ़-अम्मल्लज़ी-न शक़ू फ़फ़िन्नारि लहुम् फ़ीहा ज़फ़ीरुन-व शहीक़ुन ख़ालिदी-न फ़ीहा मा दामतिस्-समावातु वल्अरज़ु इल्ला मा शा-अ रब्बु-क इन् रव्ब-क फ़अ'-आ'लुल्लिमा युरीद व अम्मल्लज़ी-न -सुईदू फ़फ़िल्जन्नति ख़ालिदी-न फ़ीहा मा दामतिस्-समावातु वल्-अर्ज़ु इल्ला मा शा-अरब्बु-क अत़ा-अन् ग़ै-र महदूद1 या’नी आनाँ कि बदबख़्त शुदः अंद दर आतश अंद मर ईशाँ रा दर आतश फ़रियाद व नालः व ज़ारी-ए-जाविदाँ बाशद दर आँ आतश ता हंगामे कि आस्मानहा व ज़मीनहास्त मगर आँ चे ख़्वाहद पर्वर्दिगार-ए-तू। ब-दुरुस्ती कि पर्वर्दिगार-ए- तू कुनंदः अस्त हर चीज़े रा कि रव्व़ाहद व आनाँ कि नेक-बख़्त दर बिहिश्त अंद हमेशः ता हंगामे कि बाशंद आस्मानहा व ज़मीनहा मगर ता वक़्ते कि रव्व़ाहद पर्वर्दिगार-ए-तू कि आँहा रा अज़ आँजा बर आरद व बख़्शिश-ए- ऊ बे-निहायत अस्त। बर आवुर्दन अज़ दोज़ख़ आँ बाशद कि पेश अज़ बर तरफ़ शुदन-ए-आस्मानहा व ज़मीनहा अगर रव्व़ाहद अज़ दोज़ख़ बर आवुर्दः ब-बिहिश्त बुरद व इब्न-ए-मसऊ’द रज़िअल्लाहु अ'नहु दर तफ़्सीर-ए-ई आयः फ़र्मूदः बिहिश्त बुरद व इब्न-ए-मसऊ’द रज़िअल्लाहु अ’नहु दर तफ़्सीर-ए-ई आयः फ़र्मूदः कि ल-आतियन्ना अ’ला जहन्न-म ज़मानुन लै-स फ़ीहा अहदुन व ज़ालिका बा’दा मा यमसकू-न फ़ीहा अहक़ाबा या’नी मी-आयद बर दोज़ख़-ए- ज़मीनी कि न-बाशद हेच कस अज़ दोज़ख़ियान दर आँ बा’द अज़ आँ कि मुद्दत-ए-तवील दर आँ मांदः बाशंद। व बर आवुर्दन-ए-अह्ल-ए-बिहिश्त रा अज़ बिहिश्त आँ बाशद कि पेश अज़ बरतरफ़ शुदन-ए-आस्मानहा व ज़मीनहा अगर ख़ुदा रव्व़ाहद ईशां रा दर फ़िर्दोस-ए-आ'ला दर आरद कि अ'ता-ए-ऊ बे-निहायत अस्त व नीज़ अज़ीं आय:-ए- करीमः साबित शुदः, मिनल्लाहि अक्बरु ज़ालि-क हुवल्-फौज़ुल-अ’ज़ीम2 या’नी अल्लाह तआ'ला रा बिहिश्ते अस्त बुज़ुर्गतर अज़ बिहिश्तहा कि अह्ल-ए-हिन्द आँ रा ‘बेकुण्ठ’ गोयंद व ईं बुज़ुर्ग़तरीन रुस्तगारीस्त बतौर-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द।
1.क़ुरआन 11-106,7,8, 2.क़ुरआन 9-72।
19.बयान-ए-क़ियामत
बतौर-ए-मुवह्हिदान-ए-हिन्द ईंस्त कि बा’द अज़ बुर्दन दर दोज़ख़ व बिहिश्त चूं मुद्दतहा-ए-तवील ब-गुज़रद ‘महा पर्ली’ शवद कि इ'बारत अज़ क़ियामत-ए-कुब्रा अस्त कि अज़ आय:-ए-करीमः फ़-इज़ा जा-अतित्-ताम्मतुल-कुब्रा1 या’नी ब-वक़्ते कि बियायद क़ियामत-ए-कुब्रा मफ़्हूम मी-शवद व अज़ीं आयः नीज़ मा’लूम मी-शवद व नुफ़ि-ख फ़िस्सूरि फ़-स-इ’-क़ मन् फ़िस्-समावाति व मन् फ़िल्अर्ज़ि इल्ला मन् शा-अल्लाहु2 या’नी वक़्ते कि दमीदः मी-शवद सूर पस बेहोश मी-शवद हर कि दर आस्मानहा व ज़मीनहा अस्त मगर शख़्शे रा कि रव्व़ास्तः बाशद ख़ुदा-ए- तआ'ला अज़ बेहोश शुदन निगाह दारद व आँ जमाअ'त-ए-आ’रिफ़ान बाशद कि मह्फ़ूज़ अंद अज़ बे-होशी व बे-ख़बरी हम दर दुनिया व हम दर आख़िरत। व बा’द अज़ बर तरफ़ शुदन-ए-आस्मानहा व ज़मीनहा व फ़ानी शुदन-ए- दोज़ख़हा व बिहिश्तहा व तमाम शुदन-ए-मुद्दत-ए-उ'म्र-ए-‘बर्ह्मांद’ व न-बुर्दन-ए-‘बर्ह्मांद’ अह्ल-ए-बिहिश्त व दोज़ख़ रा ‘मुक्त’ रव्व़ाहद शुद, या’नी हर दो दर हज़रत-ए-ज़ात मुस्तह्लक़ व मह्व शवंद। ब-मूजिब-ए-ई आयः कुल्लु मन् अ’लैहा फ़ानि-व् व यब्क़ा वज्हु रब्बि-क ज़ुल्जलालि वल-इक़रामि।3
1.क़ुरआन 79-34, 2. क़ुरआन 39-68, 3. क़ुरआन 9-72।
20.बयान-ए-मुक्त
‘मुक्त’ इ’बारत अज़ इस्तेहलाक व मह्व शुदन-ए-तअ'य्युनात बाशद दर हज़रत-ए-ज़ात कि अज़ आय:-ए-करीमः व रिज़वानुम्-मिनल्लाहि अकबर ज़ालि-क हुवल-फ़ौजुल्-अ'ज़ीमु1 ज़ाहिर मी-शवद व दाख़िल शुदन दर रिज़वान-ए- अकबर कि फ़िर्दौस-ए-आ’ला बाशद रुस्तगारी-ए-बुज़ुर्ग अस्त कि ‘मुक्त’ बाशद व ‘मुक्त’ बर सेह क़िस्म अस्त। अव्वल ‘जीवन मुक्त’ या’नी रुस्तगारी दर ज़िन्दगानी व ‘जीवन मुक्त’ नज़्द-ए-ईशां आनस्त कि दर अय्याम-ए-हयात-ए- ख़ुद ब-दौलत-ए-इर्फ़ान व शनासाइ-ए-हक़ तआ'ला रुस्तगार व ख़लास बाशद व दर हमीं जहाँ हमः चीज़ रा यके बीनद व यके दानद व आ'माल व अफ़्आल व हर्कात व सकनात व नेक व बद रा निस्बत ब-ख़ुद व ब-ग़ैर न-कुनद व खुद रा बा जमीअ'-ए-अश्या-ए-मौजूदः ऐ'न-ए-हक़ शनासद व दर हमः मरातिब-ए-हक़ रा जल्वःगर दानद व तमाम ‘बर्ह्मांद’ रा कि सूफ़िया-ए-कराम आँ रा आ'लम-ए-कुब्रा गुफ़्तः अंद व सूरत-ए-कुल्लियात-ए-ख़ुदास्त ब-मंज़िलः-ए-बदन-ए-ज़िस्मानी-ए-खुदा गर्दानद। ‘उन्सुर-ए-आज़म’ कि ‘महाअकास’ बाशद ब-मंज़िलः-ए-‘सूछम सरीर’, या’नी बदन-ए- लतीफ़-ए-ख़ुदा, व ज़ात-ए-ख़ुदा ब-मंज़िलः-ए-रूह-ए-आँ बदन, व आँ रा यक शख़्स-ए-मुअ'य्यन दानिस्तः अज़ ज़र्र: ता ब-कोह बा अ'वालिम-ए-ज़ाहिर व बातिन सू-ए-ज़ात-ए-आँ यगान:-ए-बेहमता न-बीनद व न-दानद। चुनाँ कि यक इन्सान कि ऊ रा आ'लम-ए-सग़ीर गुफ़्तः अंद ब-इख़्तलाफ़-ए-उज़्वहा-ए-मुख़्तलिफ़:-ए-मुतकस्सिरः यक फ़र्द अस्त व ब-कस्रत-ए-आ'ज़ा-ए-ज़ात-ए-ऊ मुतअद्दिद नीस्त, आँ ज़ात-ए-वाहिद रा नीज़ ब-कस्रत-ए-तअ'य्युनात-ए-मुतअद्दिद न- शनासद।
बैत:
जहाँ यकसर चे अर्वाहो चे अज्साम
बुवद शख़्स-ए-मुअ'य्यन आ'लमश नाम
पस हक़ सुब्हानहू तआ'ला रा रूह व जान-ए-ईं शख़्स-ए-मुअ'य्यन दानद कि अज़ हेच सर-ए-मूए जुदा नीस्त। चुनांचे शैख़ सा'दुद्दीन हम्वी फ़र्मायद, रुबाई '
हक़ जान-ए-जहानस्त-ओ-जहाँ जुम्ल: बदन
अर्वाह-ओ-मलायक-ओ-हवास ईं हमः तन
अफ़्लाक-ओ-अ'नासिर-ओ-मवालीद-ओ-आ'ज़ा
तौहीद हमीनस्त-ओ-दिगर शेवः-ओ-फ़न
व हमचुनीं मुवह्हिदान-ए-हिन्द मिस्ल ‘ब्यास’ वग़ैर: तमाम ‘बर्ह्मांद’ रा कि आ'लम-ए-कबीर अस्त शख़्स-ए-वाहिद दानिस्तः उज़्वहा-ए-बदन-ए-ऊ रा चुनीं बयान नमूदः अंद ब-जहत आँ कि सूफ़ी-ए-साफ़ी दर हर वक़्त बर हर चे नज़र कुनद ब-दानद कि बर फलाँ अज़्व-ए-‘महापुरस’ कि ईंजा इ’बारत अज़ ज़ात-ए-हक़ सुब्हानहू तआ'ला अस्त नज़र दाश्तम।
‘पाताल’ कि तब्क़:-ए-हफ़्तुम-ए-ज़मीन बाशद क़फ़-ए-पा-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘रसतल’ कि तब्क़:-ए-शशुम-ए-ज़मीन बाशद पुश्त-ए-पा-ए-‘महापुरस’ अस्त, व शयातीन अंगुश्तहा-ए-पा-ए-‘महापुरस’ अंद व जानवरान-ए-सवारी-ए-शैतान नाख़ुनहा-ए- पा-ए-‘महापुरस’ अंद। ‘महातल’ कि तब्क़:-ए-पंजुम-ए-ज़मीन अस्त शितालंग-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘तलातल’ कि तब्क़:-ए-चहारुम-ए-ज़मीन बुवद साक़-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘सुतल’ कि तबक़:-ए-सेउम-ए-ज़मीन बाशद ज़ानू-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘बतल’ कि तब्क़:-ए दोउम-ए-ज़मीन अस्त रान-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘अतल’ कि तब्क़:-ए-अव्वल-ए-ज़मीन अस्त उज़्व-ए-मख़्सूस-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘काल’ या’नी ज़मानःरफ़्तार-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘परजांत’ देवता कि बाइ’स-ए- तवालुद व तनासुल-ए-तमाम आ'लम अस्त अ'लामत-ए-मर्दी व क़ुव्वत-ए-रुजूलियत-ए-‘महापुरस’ अस्त। बाराँ नुत्फ़:-ए- ‘महापुरस’ अस्त। ‘भूलोक’ या’नी अज़ ज़मीन ता आस्मान पाईन-ए-नाफ़-ए-‘महापुरस’ अस्त। सेह कोह-ए-जुनूबी दस्त-ए-रास्त-ए-‘महापुरस’ अस्त व सेह कोह-ए-शिमाली दस्त-ए-चप-ए-‘महापुरस’ अस्त व ‘सुमेर परत’ सुरीन-ए-‘महापुरस’ अस्त। रौशनी-ए-सुब्ह-ए-काज़िब तार-ए-मग़्ज़ि-ए-जाम:-ए-‘महापुरस’ अस्त व, रौशनी-ए-सुब्ह-ए-सादिक़ रंग-ए-सफ़ेद-ए- जाम:-ए-चादर-ए-‘महापुरस’ अस्त (कि अल् किबरिआओ रिदाई इशारः ब-आँ मीकुनद) व वक़्त-ए-शाम कि रंग-ए- शफ़क़ दारद पारच:-ए-सतर-ए-औरत-ए-‘महापुरस’ अस्त (कि अल्अ'ज़मतो एज़ारी किनायः बआँ मी-कुनद)। समुंदर या’नी बह्र-ए-मुहीत हल्क़ः व उम्क़-ए-नाफ़-ए-‘महापुरस’ अस्त। व ‘बदवानल’ मकान-ए-आतशेस्त कि आब-ए-हफ़्त दरिया रा हाला हम जज़्ब मी-कुनद व तुग़्यान शुदन नमी-देहद व दर क़ियामत-ए-कुब्रा तमाम आब रा ख़ुश्क़ रव्व़ाहद कर्द व ईं हरारत व गर्मी-ए-माद्द:-ए-‘महापुरस’ अस्त, व दरियाहा-ए-दीगर रगहा-ए-‘महापुरस’ अस्तः, व चुनाँ कि हमः रगहा ब-नाफ़ मी-रसद हमः दरियाहा ब-समुन्दर मुन्तही मी-गर्दद। ‘गंगा’ व ‘जमुना’ व ‘सरस्ती’ शहरग-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘इंकला’ जमनान ‘बेकला’ ‘जमूना’, ‘सुखुम्ना’ ‘सरस्ती’ ‘भूलोक’ कि बाला-ए-‘भूलोक’ अस्त व देवतहा-ए-‘गंध्रप’ आँ जा मी-बाशंद व आवाज़ अज़ आँ जा बर मी-ख़ेज़द शिकम-ए-‘महापुरस’ अस्त। आतश-ए-क़ियामत-ए-सुग़रा इश्तिहा-ए- हाज़िरी-ए-‘महापुरस’ अस्त, व ख़ुश्क़ शुदन-ए-आबहा दर क़ियामत-ए-सुग़रा तिश्नगी (व आब ख़ुर्दने) ‘महापुरस’ अस्त। ‘सर्ग लोक’ कि बाला-ए-‘भूलोक’ अस्त व तब्क़:-ए-इस्त अज़ तब्क़ात-ए-बिहिश्त सीन:-ए-‘महापुरस’ अस्त कि हमेशः शादी व ख़ुशहाली व आराम दरूस्त। व जमीअ'-ए-सितारहा अज़ अक़्साम-ए-जवाहिर-ए-‘महापुरस’ अस्त। बख़्शिश-ए-पेश अज़ सवाल कि जूद व फ़ज़्ल अस्त पिस्तान-ए-रास्त व बख़्शिश बा’द अज़ सवाल कि अ'तास्त पिस्तान-ए-चप-ए-‘महापुरस’ अस्त। व ए'तदाल कि ‘रजोगुन’ व ‘सतोगुन’ व ‘तमोगुन’ बाशंद व आँ रा ‘परकरत’ गोयंद दिल-ए-‘महापुरस’ अस्त। व चुनांकि कंवल से ह रंग दारद, सफ़ेद व सुर्ख़ व बनफ़्श, दिल हम कि ब-सूरत-ए-कंवल अस्त सेह सिफ़त दारद, व ईं अज़ सेह रंग-ए-ज़ुहूर अस्त, कि ‘बर्ह्मा’ व ‘बिष्णु’ व ‘महेश’ बाशंद। ‘बर्म्हा’ कि ‘मन’ हम नाम दारद हरकत व इराद:-ए-दिल-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘बिष्णु’रहम व मेह्र-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘महेश’ क़हर व ग़ज़ब-ए-‘महापुरस’ अस्त। माह तबस्सुम व ख़ुशहाली-ए-‘महापुरस’ अस्त कि हरारत-ए-अलम व अंदोह रा बर तरफ़ मी-साज़द व शब कमान-ए-‘महापुरस’ अस्त। कोह 'सुमेर परत'उस्तुरव्व़ान-ए-मियान-ए-पुश्त-ए-'महापुरस' अस्त । व कोहहा-ए-दस्त-ए-रास्त व चप-ए-समर उस्तुरव्व़ान-ए-फ्रअ्हा या’नी पसलीहा-ए-‘महापुरस’अस्त, व हश्त फ़िरिश्तः कि कोतवाल अंद व ‘इन्दर’ कि सरदार-ए-आँहास्त व कमाल-ए-क़ुव्वत दारद व बख़्शीदन व बारीदन न-बख़्शीदन व न-बारीदन मुतअ’ल्लिक़ ब-ऊस्त हर दो दस्त-ए-‘महापुरस’ अंद, दस्ते रास्त बख़्शिश व बारिश व दस्त-ए-चप इमसाक-ए- बख़्शिश-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘अमछरा’ कि हूरान-ए-बहिश्त अंद ख़ुतूत-ए-कफ़-ए-दस्त-ए-‘महापुरस’ अस्त व फ़रिश्तहा कि आँ रा ‘चच्छा’ मी-नामंद नाख़ुनहा-ए-दस्त-ए-‘महापुरस’ अस्त। सेह फ़रिश्त:-ए-‘लोकपाल’ दस्त-ए-रास्त-ए- ‘महापुरस’ अस्त, (अज़ बंद दस्त ता अंज अगन नाम फ़िरिश्तः) व ‘जम’ फ़िरिश्तः बाजू-ए-‘महापुरस’ अस्त व ‘लोकपाल’ फ़िरिश्तः दस्त-ए-चप-ए-महापुरस अस्त, ‘कुबेर’ फ़रिश्तःज़ानू-ए-पा-ए-‘महापुरस’ अस्त।व ‘कल्प ब्रछ’ कि तूबा बाशद अता-ए-‘महापुरस’ अस्त। क़ुत्ब-ए-जुनूबी कत्फ़-ए-रास्त व क़ुत्ब-ए शिमाली कत्फ़-ए-चप-ए-‘महापुरस’ अस्त व ‘बरुन’ नाम फ़िरिश्त:-ए-लोकपाल कि मुवक्किल-ए-आब अस्त व दर सम्त-ए-मग़्रिब मी-बाशद मुह्र:-ए-गर्दन-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘अनाहत’ कि सुल्तानुल्-अज़कार अस्त आवाज़-ए-बारीक-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘महर्लोक’ कि बाला-ए- ‘सर्गलोक’ अस्त गुलू व गर्दन-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘जनलोक’ कि बाला-ए-‘महर्लोक’ अस्त रू-ए-मुबारक-ए-‘महापुरस’ अस्त, रव्व़ाहिश-ए-आ’लम ज़नख़-ए-महापुरस’ अस्त। ‘तमा’ कि दर आ'लम अस्त लब-ए-पाईन-ए-‘महापुरस’ अस्त शर्म व हया लब-ए-बाला-ए-‘महापुरस’ अस्त, सीनःया’नी मुहब्बत व उल्फ़त-ए-बुन-ए-दंदानहा-ए-‘महापुरस’अस्त व ख़ुरिश-ए-हमः आ'लम ख़ुराक-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘सरस्ती’ क़ुव्वत-ए-नातिक़:-ए-‘महापुरस’ व चार ‘बेद’ या’नी चार किताब-ए- सिद्क़ व रास्ती गुफ़्तार-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘माया’ या’नी इश्क़ कि बाइस-ए-ईजाद-ए-आ'लम अस्त खंदः व ख़ुश तबई-ए-‘महापुरस’ अस्त व हश्त जेहत-ए-आ'लम हर दो गोश-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘अशनी कुमार’ कि दो फ़रिश्तः दर कमाल-ए-हुस्न अंद हर दो पर्र:-ए-बीनी-ए-‘महापुरस’ अंद, ‘गंध’ तन्मातर या’नी उ'न्सुर-ए-ख़ाक क़ुव्वत-ए-शाम्म:-ए- ‘महापुरस’ अस्त।उ'न्सुर-ए-बाद नफ़स ज़दन-ए-‘महापुरस’ अस्त, मियान-ए-‘जनलोक’ व ‘तपलोक’ कि तब्क़ह:-ए-पंजुम व शशुम-ए-बिहिश्त अस्त व अज़ नूर-ए-ज़ात पुर अस्त निस्फ़ जुनूबी-ए-आँ चश्म-ए-रास्त व निस्फ़ शिमाली-ए-आँ चश्म-ए-चप-ए-‘महापुरस’ अस्त। व अस्ल-ए-नूर कि आँ रा आफ़्ताब-ए-अज़ली गोयंद क़ुव्वत-ए-बीनाई-ए-‘महापुरस’ अस्त। तमाम-ए-आफ़रीनश निगाह-ए-लुत्फ़-ए-‘महापुरस’ अस्त, रोज़ व शब-ए-आ'लम चश्म-ए-बरहम ज़दन-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘मितर’ नाम फ़िरिश्तः कि मुवक्किल-ए-दोस्ती व मुहब्बत अस्त व ‘तुस्ता’ नाम फ़िरिश्तः कि मुवक्किल-ए- क़हर व ग़ज़ब अस्त, हर दो अब्रू-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘मितर’ नाम फ़िरिश्तः कि मवक़्क़िल दोस्ती व मुहब्बत अस्त व ‘तुस्ता’ नाम फ़िरिश्तः कि मवक़्क़िल क़हर व ग़ज़ब अस्त, हर दो अब्रू-ए-‘महापुरस’ अस्त। ‘पित लोक’ कि बाला-ए-‘जनलोक’ अस्त पेशानी-ए-‘महापुरस’ अस्त। व ‘लोक’ कि बाला-ए-हमः लोकहास्त कास:-ए-सर-ए-‘महापुरस’ अस्त। आयात-ए-तौहीद व किताबुल्लाह उम्मुल्दिमाग़-ए-‘महापुरस’ अस्त। अब्रहा-ए-स्याह कि बारान-ए-‘महा पर्ली’ दारद मू-ए- सर-ए-‘महापुरस’ अस्त,व नबातात-ए-हमः कोहहा मू-ए-बदन-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘लछमी’ कि दौलत व ख़ूबी-ए-आ'लम अस्त हुस्न-ए-‘महापुरस’ अस्त। आफ़्ताब-ए-दरख़्शां सफ़ा-ए-बदन-ए-‘महापुरस’ अस्त, ‘भूत अकास’ मसामात बदन-ए-‘महापुरस’ अस्त, चिद अकास रूह-ए-बदन-ए-‘महापुरस’ अस्त, सूरत-ए-हर फ़र्द-ए-इंसान ख़ान:-ए-‘महापुरस’ अस्त, इंसान-ए-कामिल ख़ल्वतख़ानः व महल्ल-ए-ख़ास-ए-‘महापुरस’ अस्त, चुनांचे ब-फ़र्मूद ब-दाऊद अलैहिस्सलाम कि ऐ दाऊद, बरा-ए-मन ख़ान:-ए ब-साज़ गुफ़्त ख़ुदावंदा तू मुनज़्ज़ही अज़ ख़ानः ,फ़र्मूद ख़ान:-ए-मन तू-ए-दिल रा अज़ ग़ैर ख़ाली कुन। व हर चे दरीं ‘बर्ह्मांद’ बर सबील-ए-तफ़्सील अस्त दर इन्सान कि नुस्ख़:-ए-आ'लम-ए-कबीर अस्त ब-तरीक़-ए-इज्माल हम: मौजूद अस्त, कसे कि चुनीं दानद व बीनद ऊरास्त ‘जीवन्मुक्त’ व दर हक़्क़-ए-ऊस्त आय:-ए-करीमः फ़रिही-न बिमा आ'ताहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही2 या’नी ख़ुशहाल अंद आँ जमाअ'त ब-आँ चे दादः अस्त ईशाँ रा ख़ुदा-ए-तआ'ला अज़ फ़ज़्ल-ए-ख़ुद।
दोउम ‘सर्बमुक्त’ या’नी रुस्तगारी-ए-हमः व आँ इस्तेहलाक दर ज़ातस्त व आँ शामिल-ए-हमः मौजूदात अस्त व बा’द अज़ क़ियामत-ए-कुब्रा व फ़ना-ए-आस्माँ व ज़मीन व बिहिश्त व दोज़ख़ व न-बूदन-ए-‘बर्ह्मांद’ व न-बूदन-ए-रोज़ व शब अज़ महव्वियत दर ज़ात-ए-रुस्तगार व ख़लास बाशंद व आय:-ए-करीमः 'व रिज़्वानुम्-मिनल्लाहि अक्बरु ज़ालि-क हुवल्-फ़ौज़ुल-अ’ज़ीम'3, अला इन्-न औलिया-अल्लाहि ला ख़ौफ़ुन् अलैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून।4 या’नी ब-दुरुस्ती कि आ’रिफ़ान-ए-ख़ुदा रा नीस्त तरसे व नीस्तंद आँहा अंदोहगीं इशारः ब-हमीं मुक्त अस्त।
सेउम- ‘सर्बदा मुक्त’ या’नी रुस्तगारी-ए-पस। ‘सर्बदा मुक्त’ आँ बाशद कि दर हर मर्तबः कि सैर कुनद रव्व़ाह दर रोज़ रव्व़ाह दर शब रव्व़ाह दर आ'लम-ए-बातिन रव्वाह दर आ'लम-ए-ज़ाहिर रव्व़ाह ‘बर्ह्मांद’ नुमायद रव्व़ाह न-नुमायद व रव्व़ाह दर माज़ी रव्वाह हाल व रव्व़ाह दर मुस्तक़्बिल की ‘भूत भविष्य बर्तमान’ गोयंद आ'रिफ़ व रुस्तगार व ख़लास बाशद। व हर जा कि दर आयात-ए-क़ुरआनी दर बाब-ए-बूदन दर जन्नत ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-ब-दऩ्5 वाक़े’ शुदः या’नी हमेशः रव्व़ाहंद बूद दर आँ बहिश्त मुराद अज़ जन्नत मा’रिफ़त अस्त व मुराद अज़ लफ़्ज अबदा अबदिय्यत-ए-ईं मुक्त अस्त, चे दर हर नश्अ कि बाशद ईस्ते’दाद-ए-मारिफ़त-ए-इ’नायात-ए-अज़ली दरकार अस्त। चुनांचे ईं दो आय:-ए-करीमः दर बाब-ए-ईं चुनीं जमाअ'त वारिद अस्त युबश्शिरुहुम् रब्बुहुम् बिरह्मतिंम्मिन्हु व रिज़्वानिव्-व जन्नातिललहुम् फ़ीहा नईमुम्मुक़ीम ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-ब-दन् इन्नल्ला-ह इ'न्दहू अज्रुऩ अ'ज़ीम6 या’नी मुज़दः मी-दहद ईशाँ रा पर्वर्दिगार-ए-ईशाँ ब-रहमती अज़ ख़ुद व मुज़्दः मी-दहद ब-फ़िर्दौस-ए-आ’ला व बिहिश्तहा कि मर ईशाँ रास्त दराँ बिहिश्तहा ने’मतहा-ए-दायमी व रुस्तगारी-ए-बे-इन्क़िता’ अज़ नज़दीक-ए-हक़ तआ'ला ब-दुरुस्ती कि मुज़्देस्त बुज़ुर्ग। व नीज़ आय:-ए-करीम:-ए-दीगर व युबश्शिरल्-मुमिनीनल्लज़ी-न यअ'-मलूनस-सालिहाति अन्-न लहुम् अज्-रन् ह-स-नम् माकिसी-न फ़ीहि अ-ब-दन7 या’नी मुज़दः ब-दहेद (पैग़म्बर सल्ल.) मोमिनां रा कि अ'मल मी-कुनंद नेक कि हुसूल मा’रिफ़त-ए-हक़ सुन्बानहू तआ'ला बाशद व ब-दुरुस्ती कि मर आ'रिफ़ानरा अस्त मुज़्दि:-ए-नेको कि फ़िर्दोस-ए-आ’ला बाशद व दरंग कुनंदगान बाशंद व हमेशः माँदगान अन्दर आँ फ़िर्दौस-ए-आ’ला।
21.बयान-ए-रोज़-ओ-शब
उलूहिय्यत-ए-ज़ुहूर व बुतून। बतौर-ए-मुवह्दिदान-ए-हिन्द उम्र ‘बर्ह्मा’ कि जिब्रील बाशद व फ़ना-ए-‘बर्ह्मांद’ व तमाम-ए-रोज़-ए-ज़ुहूर कि रोज़-ए-उलूहिय्यत बाशद हिज़्दः आँज-ए-साल-ए-दुनिया अस्त कि हर ‘अंज’ हज़ार साल-ए-दुनिया बाशद ब-मूज़िब-ए-ईं दो आय:-ए-करीमः व इन्-न यौमन् ईन्-द रब्बि-क क-अल्फ़ि स-नतिम्-मा त-उ’द्दून या’नी ब-दुरुस्ती कि रोज़े अस्त नज़्द-ए-पर्वदिगार-ए-तू मानिंद-ए-हज़ार साल कि मी-शुमारंद अह्ल-ए-दुनिया व आय:-ए- करीमः वर्रूहु इलैहि फ़ी यौमिऩ का-न मिक़्दारुहू ख़म्सी-न अल्-फ़ सनतिन् या’नी राज़े मी-शवंद ब-सू-ए-पर्वर्दिगार-ए- ख़ुद फ़रिश्तगान व रूह कि इ'बारत अज़ जिब्रील व ‘बर्ह्मा’ अस्त दर रोज़े कि मिक़्दार-ए-आँ रोज़ पंजाह हज़ार साल व हर रोज़ अज़ीं पंजाह हज़ार अज़ हज़ार साल मुतआ'रिफ़ अस्त कि दर कि दर आय:-ए-अव्वल ब-आँ तस्रीह शुद: । पस मुद्दत-ए-उ’म्र-ए-जिब्रील व मुद्दत-ए-उ’म्र-ए-रोज़ व उ’म्र-ए-तमामी-ए-आ'लम कि ‘बर्ह्मांद’ बाशद हिसाब मी-कुनम हिजदह अंज साल-ए-दुनिया बाशद व हर अंज हज़ार साल बाशद बे-कम व ज़्याद, मुताबिक़-ए-हिसाब-ए-मुवह्दिदान-ए-हिंद। व बदाँ कि ख़ुसूसियत-ए-आ'दाद-ए-हिज्दः नज़्द-ए-ईशाँ मुन्हसिर बर हश्त दह अस्त व अज़ीं बालातर मर्तबः-ए-शुमार क़रार न दादः-अंद व क़ियामतहा-ए-सुग़्रा कि दरीं मियान गुज़श्तः अंद व रव्व़ाहंद गुज़श्त आँ क़ियामतहा रा ‘खंदा पर्ली’ मी-गोयंद मिस्ल-ए-तूफ़ान-ए-आब या तूफ़ान-ए-आतश या तूफ़ान-ए-बाद, व चूं ईं मुद्दत तमाम गर्दद ईं रोज़ शाम शवद व क़ियामत-ए-कुब्रा रव्व़ाहद शुद कि आँ रा ‘महापर्ली’ गोयंद ब-हुक्म-ए-ईं दो आयत-ए-करीमः यौ-म तुबद्दलुल्-अरज़ु ग़ैरल् अर्ज़ि या’नी रोज़े कि बदल कर्दः शवद ज़मीं रा ब-ग़ैर ज़मीन व यौ-म नत्विस्-समा-अ क-तय्यिस्-सिजिल्लि लिल्कुतुबि या’नी रोज़े कि पेचेम आस्माँ रा मानिंद-ए-काग़ज़ बराए किताबत। व बा'द अज़ क़ियामत-ए-कुब्रा दर शब-ए-बुतून कि दर बराबर-ए-रोज़-ए-ज़ुहूर अस्त व इस्तेहलाक-ए-जमीअ'-ए- तअ'य्युनात दर हज़रत-ए-ज़ात रव्व़ाहद शुद नीज़ हिज्दः साल अंज दुनिया अस्त। ‘अवस्थानम’ कि इ'बारत अज़ ‘सुखूपत’ व जबरूत अस्त, मुद्दत-ए-ई सुखूपत हज़रत-ए-ज़ात-ए-अस्ल कि ऊ रा फ़राग़ अस्त अज़ ईजाद-ए-ख़ल्क़ व ए'दाम-ए-आ'लम व आय:-ए-करीमः स-नफ़्रुगु लकुम् अय्यु-हस्स-क़लानि या’नी ज़ूद अस्त कि फ़ारिग़ मी-शवेम अज़ शुमा ऐ जिन व इंस इशारः ब-ईं ‘सुखूपत’ अस्त, व हज़्रत-ए-ज़ात दर अय्याम-ए-ज़ुहूर-ए-आ'लम दर मक़ाम-ए-‘नासूत’ अस्त व दर क़ियामतहा-ए-सुग़्रा दर मक़ाम-ए-मलकूत व बा’द अज़ क़ियामत-ए-कुब्रा दर मक़ाम-ए-जबरूत।
ऐ अ’ज़ीज़ आँचे दरीं बाब नविश्तः शुदः बा’द अज़ दिक्क़त-ए-तमाम व तहक़ीक़-ए-बिस्यार मुताबिक़-ए-कश्फ़-ए-ख़ुद अस्त व ईं कश्फ़ ब-ईं दो आय:-ए-करीमः मुताबिक़ उफ़्ताद व ब आँ कि तू दर हेच किताबे न-दीदः व अज़ हेचकस न शनीदःई। अगर बर गोश-ए-बा’ज़े अज़ नाक़िसान गराँ आयद मा रा अज़ीं मा’नी बाके नेस्त फ़ इन्नल्ला-ह ग़निय्युन् अनिल् आ'लमीन।
22.बयान-ए-बे-निहायती-ए-अदवार
नज़्द-ए-मुहक़्किक़ान-ए-अह्ल-ए-हिन्द हक़ तआ'ला रा न हमीं यक शब अस्त व यक रोज़ बल्कि ई शब कि तमाम शवद बाज़ रोज़ मी-शवद व रोज़ कि आख़िर शवद शब मी-आयद।
एला ग़ैरिन् निहायता । व ईं रा ‘अनाद परवाह’ मी-गोयंद। रव्व़ाजः हाफ़िज़ अलैह रहम: इशारः ब-हमीं बे-निहायती-ए- अदवार नमूदः गुफ़्तः अस्त,
माजरा-ए-मन-ओ-मा’शूक़-ए-मरा पायान नीस्त
हर चे आग़ाज़ न-दारद न-पिज़ीरद अंजाम
व हरचि अज़ ख़ुसूसियत-ए ज़ुहूर-ए-ज़ात व मरिव़्फ़यात दर रोज़ व शब पेशीं शुदः बे कम व बेश दर रोज़ व शबे दीगर ब-ऐ'निही औ'द कुनद बमूजिब-ए-आय:-ए-करीमः कमा ब-दअ-ना अव्व-ल ख़ल्क़िन् नु ई'दुहू या’नी चुनांकि ज़ाहिर गर्दानीदेम दर अव्वल-ए-खिलक़त मौजूदाती रा कि मा’दूम गश्तः बूद पस बा’द अज़ तमाम शुदन-ए-(ईं) दौरः बाज़ आ'लम-ए-अबुल-बशर आदम अ'लैहिस्सलाम ब-ऐ'निही पैदा शवद व लायज़ाल चुनीं बाशद व आय:-ए-करीमः कमा ब-द-अकुम् त-ऊ'द़ून नीज़ दलालत बं-ईं म’आ'नी मी-कुनद या’नी चुनाँ कि अव्वल शुमा रा पैदा कर्दम बाज़ हमाँ तौर पैदा कुनेम। अगर कसे शुब्हः कुनद कि ख़ातमीय्यत-ए-पैग़म्बर-ए-मा सल्लल्लाहु अ'लैहि वसल्लम अज़ीं साबित न-मी-शवद मी-गोयेम कि दर रोज़-ए-दीगर नीज़ पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ'लैहि वसल्लम ब-ऐ'निही मौजूद रव्व़ाहद गर्दीद व ख़ातिम-ए-पैग़म्बरान-ए-आँ रोज़ रव्व़ाहद गर्दीद व ईं हदीस शब-ए-मि’राज़ नीज़ दलालत बर हमीं मा’नी मी-कुनद। मी-गोयंद कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अ'लैहि वसल्लम क़तार-ए-शुतुरां रा दीद कि लायन्क़ते’' मी-रवंद व बर हर यके दो संदूक़ बार अस्त व दर हर सन्दूक़ आ'लमे अस्त मिस्ल-ए-हमीं आ'लम व दर हर आ’लम मिस्ल-ए-ख़ुद मुहम्मदी। अज़ जिब्रील पुर्सीद कि ईं चीस्त।गुफ़्त या रसूलल्लाह अज़ वक़्ते कि आफ़रीदः शुदः-अम मी-बीनम कि ईं क़तार-ए-शुतुरान बा सन्दूक़ मी-रवंद व मन हम न-मीदानम कि ईं चीस्त। व ईं इशारः बे-निहायती-ए-अदवार अस्त।
अलहम्दु लिल्लाह-ए-वल् मिन्नह् कि तौफ़ीक़-ए-इतमाम-ए-रिसालः-ए-‘मज्म-उल्-बह्रैन’ याफ़्तः शुद दर सन यक हज़ार व शस्त व पंज हिज्री-ए-नबवी कि चेहल व दोउम अज़ सेनीन-ए-उम्र-ए-ईं फ़कीर-ए-बे-अंदोह मुहम्मद दारा शिकोह बुवद। वस्सलाम।
‘मज्म-उल्-बह्रैन’ का हिंदी अनुवाद
‘अल्लाह’ के नाम से शुरू करता हूँ, जो कृपालु और दयालु है। उसके नाम से जिसका कोई नाम नहीं है, चाहे जिस नाम से उसे पुकारो, वह अपना सिर उठा देता है।
उस अद्वितीय पर दुआ’एँ बरसें जो अपने सुंदर, अनूठे और बेमिसाल चेहरे में नुमायाँ हुआ। वह दो समान सतहों पर ईमान और कुफ़्र को जोड़ता है और उनमें से किसी से उसने अपना सुंदर चेहरा ज़ाहिर नहीं किया है।
पद्य
‘‘कुफ़्र और इस्लाम, दोनों उसकी ओर सरपट दौड़ लगा रहे हैं।
रुबाई
‘‘वही पड़ोसी, साथी और हमसफ़र सब कुछ है,
हज़रत मुहम्मद, उन पर अल्लाह की कृपा और दया हो, को बार-बार प्रणाम हो, वे पूर्ण हैं। वे विश्व-रचना के निमित्त हैं। उनके महान वंशधरों और साथियों को प्रणाम हो।
अब इस प्रकार वीतराग, नाशाद फ़क़ीर दारा शिकोह कहता है कि उसने धर्माचरण करके और सब तत्त्वों को जानकर, सूफ़ियों के, धर्म-रहस्य पता लगाकर और इस महान भेंट से संपन्न होकर, भारतीय एकेश्वरवादियों के सिद्धांतों को जानने की आकांक्षा की, और आचार्यों और इस धर्म के पूर्ण तत्त्वज्ञों, जो धार्मिक अवबोध, प्रतिमान और अंतर्ज्ञान में पूर्णता की पराकाष्ठा को पहुँच चुके थे, के साथ बार-बार संपर्क और सतत विमर्श करके—जिस मार्ग में उन्होंने यत्न किए और सत्य को प्राप्त किया—दारा ने परिभाषा-भेद के अतिरिक्त कोई भेद नहीं पाया। नतीजतन दोनों पक्षों के विचारों को संगृहीत करते हुए और विचार-बिंदुओं को एक साथ मिलाते हुए, जिनका ज्ञान सत्य के जिज्ञासुओं के लिए आवश्यक और उपयोगी है, दारा ने एक पुस्तिका—‘मज्म-उ’ल्-बह्रैन’ या ‘दो समुद्रों का संगम’—सत्य को जानने की इच्छा रखने वाले दोनों पक्षों के सत्य के एक संग्रह के रूप में तैयार की। महान रहस्यवादियों ने कहा, ‘‘तसव्वुफ़ समदृष्टि और दायित्व की स्वच्छंदता है।’’
इस तरह जो न्यायसम्मत और विवेकपूर्ण है, वह शीघ्र समझेगा कि इन विचारों का पता लगाने में मुझे किस प्रकार गंभीरता से विचार करना पड़ा है। यह तय है कि बौद्धिक जन इस पुस्तिका से आनंदाभूति प्राप्त करेंगे, जबकि दोनों पक्षों के अल्पज्ञ जन इन फ़ायदों से महरूम रहेंगे। मैंने अंतर्ज्ञान और आस्वाद के इस अनुशीलन को अपने परिवारिक सदस्यों के हित के लिए प्रस्तुत किया है। मेरी दोनों क़ौमों के जनसाधारण में रुचि नहीं है, जैसा कि ख़्वाजा अब्दुल्लाह अहरार, उन पर ख़ुदा का करम हो, ने कहा है, “अगर मैं यह जानूँ कि पाप में डूबा हुआ अज्ञानी एकात्मवाद का स्वर गान कर रहा है। मैं उसके पास जाऊँ, उसे सुनूँ और उसके प्रति कृतज्ञ होऊँ।’’
1. भूतों (तत्त्वों) की व्याख्या
जानो, कि भूत (तत्त्व) पाँच हैं। संसार की सभी वस्तुओं के मूल कारण ये पाँच ही हैं। पहला ‘उ’न्सुर-ए-आज़म’ (महातत्त्व) है जिसे धर्मशास्त्री लोग ‘अ’र्श-ए-अकबर’ (महासिंहासन) कहते हैं। दूसरा वायु, तीसरा अग्नि, चौथा जल और पाँचवा ख़ाक (मिट्टी)। उन्हें भारतीय भाषा में ‘पंच भूत’ कहा गया है—आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। और आकाश तीन हैं—भूत-आकाश, मन-आकाश और चिद्-आकाश। इनमें जो सभी भूतों में व्याप्त है, उसे ‘मन आकाश’ कहते हैं; जो ब्रह्मांड में व्याप्त है, उसे ‘मन आकाश’ कहते हैं; जो सबको आच्छादित किए हुए है, उसे ‘चिद् आकाश’ कहते हैं। आकाश नित्य है, अर्थात् अनित्य नहीं है और इसके आरंभ और अंत के विषय में कोई ‘क़ुरआन’ की आयत या वेद, जो कि आसमानी किताब है, का पद्य प्रमाण-स्वरूप नहीं है। प्रथम पदार्थ जो चिद्-आकाश से निकला वह ‘इ’श्क़’ था, उसे एकेश्वरवादी भारतीय वैदिक मुनियों की भाषा में ‘माया’ कहते हैं। दाऊद ने जब अल्लाह से पूछा कि उसने सृष्टि क्यों की तब उसने फ़रमाया, ‘‘मैं एक छिपा हुआ ख़ज़ाना था, तब मैंने इच्छा की कि लोग मुझे जानें, इसलिए मैंने सृष्टि की।’’ यह ऊपर के वक्तव्य का प्रमाण है। ‘इ’श्क़’ से ‘रूह-ए-आ’ज़म’ अर्थात् जीवात्मा उत्पन्न हुआ। उसे ‘हक़ीक़त-ए-मुहम्मदी’ (सिद्धों के सिद्ध का तत्त्व) कहते हैं और विश्वास-प्रधान की ‘पूर्ण आत्मा’ उन (हज़रत मुहम्मद) पर अल्लाह की अपार कृपा और दया हो। भारतीय एकेश्वरवादियों ने उसे ‘हिरण्यगर्भ’ और ‘अवस्थात्मा’ नाम दिया है, जो उसके महत्व को बयान करता है।
इसके बा’द वायु तत्त्व है। उसे ‘नफ़र्सुर्हमान’ (परमात्मा की साँस) कहते हैं, जिससे साँस पैदा हुईं। साँस लेते समय गर्म वायु निकलती है। उसके विराट अस्तित्व में क़ैद होने के कारण वायु से अग्नि उत्पन्न हुई और जब वही श्वास दया और एकता के गुणों से संपन्न हुई, तब ठंडी हो गई। इस प्रकार अग्नि से जल की सृष्टि हुई, लेकिन अपनी शुद्धता के कारण वायु और अग्नि—दोनों तत्त्व प्रत्यक्ष नहीं हैं और प्रत्यक्ष होने के कारण—कुछ लोगों ने कहा है कि पहले जल पैदा हुआ और उसके बाद पृथ्वी उत्पन्न हुई और यह पृथ्वी जल के झाग-सी फैली हुई; जैसे दूध—जिसके नीचे आग हो—उबलता है और उस पर पर्त जमने लगती है।
शे’र
‘‘क्या मैं जानता था कि यह असीम महासागर ऐसा होगा कि
उसकी भाप आकाश बन जाएगी और उसका झाग पृथ्वी!
इसके उलट क़यामत के दिन जिसे भारतीय भाषा में ‘महाप्रलय’ कहते हैं; पहले पृथ्वी जल में लय होगी, फिर जल अग्नि के कारण सूख जाएगा और अग्नि को वायु बुझा देगी, वायु महाकाश में विलीन होते हुए ‘रूह-ए-आ’ज़म’ (परमात्मा) में मिल जाएगी : सब कुछ नश्वर है, सिवाय उसके स्वरूप के। वह सब कुछ जो इस धरती पर है, नष्टप्राय है... अंततः तुम्हारे ‘रब’ का प्रतापी एवं उदार स्वरूप ही शेष रहेगा। ऊपर की दोनों आयतों में पाया गया कि प्रत्येक वस्तु जो विनाश से संबद्ध है, महाकाश को इंगित करती है, जो कि अविनाशी है। अगर ऐसा नहीं होता तो वह कहता कि हर चीज़ नश्वर है, सिवाय उसके स्वरूप के। ‘रूप’ से तात्पर्य महा चिद्-आकाश की नित्यता है, जो शुद्ध चैतन्य के सूक्ष्म शरीर को संघटित करती है और पृथ्वी को भारतीय भाषा में देवी कहते हैं, जिससे प्रत्येक वस्तु सृजित होती है और उसमें ही लीन होती है। पवित्र ‘आयत’ में जैसा कि कहा है : इसी धरती से हमने तुम्हें पैदा किया है और इसमें ही तुम्हें लौटाएँगे और इससे ही दुबारा निकालेंगे।
2. इंद्रियों का निरूपण
इन पंच भूतों की भाँति पाँच इंद्रियाँ हैं। भारतीय भाषा में इन्हें ‘पंचेंद्रिय’ कहते हैं। वे हैं—(1) शाम्मः (2) ज़ायक़ः (3) बासिरः (4) सामिअ’: (5) लामिसः। क्रमशः इन्हें भारतीय भाषा में घिरान (घ्राण), रसना, चछ (चक्षुष्), सरुतर (श्रोत्र) और त्वक् कहते हैं और इनके प्रत्यक्ष-बोध-गुणों को गंध, रस, रूप, शब्द और सपरस (स्पर्श) कहते हैं। इस प्रकार घ्राणेंद्रियाँ गंध से संबंधित हैं, क्योंकि पृथ्वी को छोड़ गंध किसी तत्व में नहीं होती और उसे घ्राणेंद्रियाँ द्वारा ग्रहण किया जाता है। ज़ायक़ः (रसना, स्वाद लेने की इंद्रिय—जिह्वा) जल से संबंधित है, जल का स्वाद रसना या जिह्वा से गृहीत होता है। बासिरः (चक्षु) तेजस् (अग्नि) से जुड़ी हुई है, इस वजह रंगों की पहचान केवल आँख से होती है, जबकि प्रकाश-तत्त्व (तेजस् और आँख) दोनों में विद्यमान है। लामिसः (त्वगिंद्रिय) वायु से जुड़ी है, क्योंकि स्पर्श व्यंजक सभी वस्तुओं का वायु के द्वारा ग्रहण होता है। सामिअ’: (श्रवणेंद्रिय) उन्सुर-ए-आ’ज़म, अर्थात् महाकाश से जुड़ी है, जिसकी यांत्रिकता के द्वारा हम शब्द ग्रहण करते हैं और श्रवणेंद्रिय द्वारा महाकाश की हक़ीक़त ‘अह्ल-ए-दिल’ (सिद्धों) को ही ज़ाहिर होता है, जबकि उनके सिवा कोई दूसरा उसे अनुभव नहीं कर सकता। इस प्रकार श्रवण-रूप-ध्यान सूफ़ियों और भारतीय एकेश्वरवादियों को समान रूप से होता है। सूफ़ी सिद्ध इसे ‘शुग़्ल-ए-पास-ए-अनफ़ास’ (श्वास को वश में रखने का अभ्यास) कहते हैं और भारतीय एकेश्वरवादी अपनी पदावली में इसे ‘धुन’ (ध्वनि) कहते हैं।
अब आभ्यंतर इंद्रियाँ भी पाँच हैं—मुश्तरक (सामान्य), मुतख़य्यिलः (काल्पनिक), मुतफ़क्किर (चिंतनशील), हाफ़िज़: (धारणशील, प्रत्यभिज्ञात्मक) और वाहिमः (भ्रमात्मक), परंतु भारतीयों के अनुसार चार हैं—बुद्ध (बुद्धि), मन (मनस्), अहं और चित्। इन चारों के समुदाय को ‘अंतःकरण’ कहते हैं। इसे इसके स्थान पर पंचम इंद्रिय के रूप में देखा जाता है, और चित् का एक स्वभाव है जिसे ‘सत परकरत’ (सत्व-प्रकृति-वृत्ति) कहते हैं, जो बुद्धि के चरण का काम करता है। अगर यह न हो तो चित् संचरण नहीं करे। प्रथम बुध (बुद्धि) अर्थात् अ’क़्ल जो शुभ की ओर जाने और अशुभ की उपेक्षा करने का स्वभाव रखती है। दिल का बोध जिससे होता है, उसमें दो शक्तियाँ हैं—संकल्प और विकल्प, अर्थात् निश्चय और संशय। तीसरी अंतरेंद्रिय (चित्) जो दिल की दूत है और जिसका दम दौड़ लगाना है, सत् और असत् के बीच के विवेक की क्षमता नहीं रखती। चौथी (अंतरेंद्रिय) अहंकार है, ‘स्वयं करने वाला मैं हूँ’, इस प्रतीति का साक्षी है, और परमात्मा के गुणों में से एक है, क्योंकि वह ‘माया’ को रखता है, जो उनके अनुसार ‘इ’श्क़’ है, और अहंकार तीन भागों में विभक्त है—सातक (सात्त्विक), अर्थात् ज्ञान स्वरूप है और इस प्रकार उत्तम है कि परमात्मा कहता है, ‘जो कुछ है मैं हूँ’ (‘सर्वं खल्वहं’ ऐसा अभिमान रूप है)। वह सभी वस्तुओं में व्यापक (सबको घेरे हुए) है : जान रखो निश्चय ही वह हर चीज़ को घेरे हुए है कि वही आदि है और वही अंत है, वही भीतर है और वही बाहर है। और, दूसरा (राजस) अहंकार मध्यम है, अर्थात् बीच की भूमि, जब कोई आध्यात्मिक साधक अपनी दृष्टि जीवात्मा पर रखता है, कहता है, ‘मेरा मन शरीर और भूतों की सीमा से स्वतंत्र हो चुका है, शारीरिकता मुझसे वास्ता नहीं रखती’—“उस जैसी कोई चीज़ नहीं, (और)... अल्लाह सारे संसार से बे-परवाह है।’’ और अहंकार तामस अधम है और निम्न भूमि अविद्या है, अर्थात् ‘हज़रत-ए-वजूद’ का उपासक है। इसका महत्व इस तथ्य की वजह से है कि एक मनुष्य, अति नीच और सीमित है और व्यक्तिपरक होने के कारण, अपने विषय में मूढ़ता, अज्ञान और प्रमाद आरोप कर लेता है और अपने इंद्रिय-अस्तित्व को अनुभव की दृष्टि से देखते हुए कहता है, ‘मैं’ और ‘तू’, एकता से बिल्कुल दूर हैं। अर्थात् कहो, ऐ मुहम्मद, मैं तो केवल एक मनुष्य हूँ—तुम्हारी तरह। इसलिए वसिष्ठ ने कहा है, जब शुद्ध चैतन्य ने परिच्छिन्न होना चाहा, तब वह शीघ्र परमात्मा-स्वरूप हो गया और इस परिच्छिन्नता के कारण, अहंकार-भूमि प्राप्त हो गई। जब इसमें परिच्छिन्नता सम्मिलित हुई तब वह (महत्त्व) अथवा ‘अ’क़्ल-ए-कुल’ (पूर्ण-बुद्धि) हो गया। मन (माइंड), जिसे ‘परकरत’ (प्रकृति) कहा जाता है, संकल्प और महत्त्व से बनता है और संकल्प मन से पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, घ्राण, रसना, चक्षुष्, त्वक्, श्रोत्र उत्पन्न हुईं; और संकल्प—इन पाँच ज्ञानेंद्रियों से अंग और शरीर बने। इनके अपने समुदाय को ‘बदन’ कहते हैं। इस प्रकार परमात्मा जो ‘अबुल-अर्वाह्’ कहा जाता है, अपनी इच्छा से, इन परिच्छिन्नताओं को आरोपित कर लेता है, जैसे कि रेशम का कीड़ा अपनी ही लार से बने तंतुओं से अपने को बाँध लेता है। इस भाँति परमात्मा ने इन काल्पनिक सीमाओं को उत्पन्न किया और उनमें अपने को परिसीमित कर दिया। जैसे वृक्ष का एक बीज अपने से एक पौधा प्रस्तुत करते हुए वृक्ष हो जाता है और वृक्ष की शाखाओं, पत्तों और पुष्पों में विद्यमान होता है, इस प्रकार परमात्मा ने जगत् का स्वयं बनाकर उसमें प्रवेश कर लिया है। इस प्रकार समझो और ध्यान रखो कि हमारे संसार के सृजन के पूर्व वह चिद् रूप में गुप्त था और अब प्रकटीभूत जगत् में वह चिद् रूप गुप्त है।
3. ध्यान का निरूपण
यद्यपि भारतीय एकेश्वरवादियों के अनुसार ध्यान के नाना प्रकार हैं। वे उनमें ‘अजपा’ को सर्वोत्कृष्ट मानते हैं। यह ध्यान प्रत्येक प्राणी में स्वप्न-दशा और जाग्रत-दशा में, बिना किसी इच्छा या नियंत्रण के, प्रत्येक क्षण, सदैव उत्पन्न होता है। अतः पवित्र ‘क़ुरआन’ इस तथ्य को व्यक्त करता है, ‘‘और कोई चीज़ नहीं, जो उसकी प्रशंसा के साथ ‘तस्बीह’ न करती हो, लेकिन तुम अपनी ‘तस्बीह’ को समझते नहीं हो।’’ अंदर जाने वाली और बाहर आने वाली श्वास दो शब्दों द्वारा बयान की जाती है जो श्वास बाहर आती है उसे ऊ (वह) कहते हैं और जो भीतर जाती है उसे ‘मन’ (मैं) कहते हैं, और उसका (उनका समुदाय) है ‘ऊ मनम’ अर्थात् ‘वह’ मैं ही हूँ। सूफ़ी लोग अपने व्यवहार से, इन दो शब्दों को ‘हअल्लाह्’ (वह अल्लाह है) समझते हैं, जब श्वास भीतर की ओर आती है तब ‘हु’ प्रकट होता है और जब बाहर की तरफ़ जाती है तब ‘अल्लाह’ ...और प्रत्येक अपने बिना चेतन अवस्था के भी वस्तुतः इन दोनों शब्दों को जपता रहता है।
4. परमेश्वर का गुणाख्यान
सूफ़ियों के अनुसार परमेश्वर के दो गुण हैं—जमाल (सौंदर्य) और जलाल (प्रताप)। पूरी सृष्टि इन दो गुणों से ही व्याप्त है। और भारतीय चिंतकों के अनुसार परमेश्वर के तीन गुण हैं जिन्हें ‘तिरगुन’ (त्रिगुण) कहते हैं—सत् (सत्त्व), रज (रजस्) और तम (तमस्)। सत् अर्थात् सृष्टि, रज अर्थात् स्थिति और तम अर्थात् संहार। सूफ़ी लोग स्थिति के गुण को जमाल का गुण मानते और स्वीकार करते हैं। अर्थात् प्रतिपालक सत्त्वगुण को रजस् या जमाल में अंतर्मुख करके उनके दो प्रकार मानते हैं। चूँकि तीन गुण एक दूसरे में मिले हुए हैं, इसलिए भारतीय चिंतक इन्हें ‘तिर्मूरत’ (त्रिमूर्ति) कहते हैं—ब्रह्मा, बिशुन (विष्णु) और महेश। सूफ़ियों की परिभाषा में जिब्रील, मीकाइल और इस्राफ़ील कहते हैं। ब्रह्मा या जिब्रील सृष्टि के (अधीक्षक) देवता हैं, विष्णु या मीकाइल स्थिति (या अस्तित्व) के देवता हैं और महेश या इस्राफ़ील संहार के देवता है। जल, वायु और अग्नि भी इन देवताओं से संबंधित देवता हैं, इस प्रकार जल जिब्रील के साथ, अग्नि मीकाइल के साथ और वायु इस्राफ़ील के साथ जुड़े हैं। ये तीनों चीज़ें सभी जीवधारियों में प्रकट हैं। इस प्रकार, ब्रह्मा, जो जीभ के जल (आर्द्रता) के रूप में प्रकट है, दिव्य उच्चारण के कारक हैं और वाणी के शक्ति-स्रोत हैं; विष्णु जो आँखों में अग्नि के समान हैं; प्रकाश, दीप्ति और दृष्टि शक्ति के स्रोत हैं, महेश जो नासारंध्र में वायु हैं, श्वास के दो रास्ते हैं जो टूट जाने पर मृत्यु के कारण बनते हैं।
त्रिगुण, जो तीन दिव्य गुणों—सृष्टि, स्थिति और संहार के कारण है—ब्रह्मा, विष्णु और महेश में प्रकट हैं, जो विश्व की सभी सृष्टियों में व्यक्त होते हैं। जब एक जीव पैदा हुआ, वह एक नियत अवधि तक रहता है और फिर नष्ट हो जाता है। शक्ति अथवा इन तीन गुणों की अंतर्निहित सामर्थ्य ‘त्रिदेवी’ कहलाती है। त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न करती है और ‘त्रिदेवी’ इन तीनों की माता है—सरस्वती, पार्वती और लक्ष्मी। बाद में सरस्वती, रजोगुण और ब्रह्मा से जुड़ती है; पार्वती तमोगुण और महेश से, और लक्ष्मी सत्त्वगुण और विष्णु से।
5. रूह (आत्मा) का निरूपण
रूप के दो भेद हैं, एक रूह (साधारण) और दूसरा, अबुल-अर्वाह (रूहों की रूह)। भारतीय विद्वानों की भाषा में इन दोनों को आत्मा और परमात्मा कहते हैं। जब ‘ज़ात-ए-बहत’ (शुद्ध चैतन्य) परिमित और प्रतिबंधित हो जाता है, शुद्धता या अशुद्धता के किसी लिहाज़ से, वह रूह (आत्मा) के रूप में जाना जाता है, अपने परिष्कृत रूप रूह और जसद या शरीर, अपने अपरिष्कृत रूप में। अस्तित्व को अनादि भूत माना जाता है। वह रूह-ए-आ’ज़म (परमात्मा) रूप में जाना जाता है और कहा जाता है कि सर्वज्ञ के साथ वह एक समान परिचय रखता है। वह आत्मा जिसमें सभी आत्माएँ सम्मिलित हैं, ‘परमात्मा’ या अबुल-अर्वाह (आत्माओं का आत्मा) के रूप में जाना जाता है। जिस प्रकार जल और उसकी तरंगों का अंतर्संबंध है, उसी प्रकार शरीर और आत्मा के बीच है। तरंगों का समुदाय, अपने समष्टि रूप में अबुल-अर्वाह या परमात्मा के समान है, जब कि जल अस्तित्व के रूप में केवल शुद्ध और चेतन रूप है।
6. प्राणादि का निरूपण
वायु के—जो मानव-शरीर में संचरण करती है और पाँच स्थानों में रहती है—पाँच नाम हैं : प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। (1) प्राण, जो वायु नासा से पादांगुष्ठ तक संचार करती है, श्वास का वैशिष्ट्य धारण करती है, (2) अपान वायु का संचरण नितंब से जननेंद्रिय तक, नाभि के चारों ओर होता है और यह जीवन का कारण है, (3) समान वायु नाभि और हृदय के बीच संचार करती है, (4) उदान वायु का संचार कंठ से ब्रह्म-रंध्र तक होता है, (5) और व्यान वह वायु है जो शरीर के प्रत्येक अंग—प्रकट अथवा अप्रकट—में व्याप्त रहती है।
7. जगच्चतुष्टय का निरूपण
किन्हीं सूफ़ियों (एकात्मवादियों) के अनुसार—जगत्—जिनमें सृष्टि रहने के लिए विवश है, चार हैं : नासूत (मर्त्यलोक), मलकूत (देवलोक), जबरूत (उच्चतम लोक) और लाहूत (दिव्यलोक, ब्रह्मलोक) । लेकिन कुछ दूसरे पाँच जगत् हैं ऐसा मानते हैं और ‘आलम-ए-मिसाल’ (प्रतिरूप जगत्) को ऊपर कहे गए चार जगत में जोड़ते हैं। कुछ लोग ‘आलम-ए-मिसाल’ का ‘मलकूत’ में अंतर्भाव करते हैं और उन्हें चार समझते हैं। भारतीय विद्वानों के मुताबिक़ ये चार अवस्थाएँ हैं—जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। इनमें से (1) जाग्रत् नासूत से अभिन्न है। वह प्रकट और जागरण रूप जगत् है। (2) स्वप्न, मलकूत से अभिन्न है, जो रूहों और स्वप्नों का जगत् है। (3) सुषुप्ति, जो जबरूत से अभिन्न है, जिसमें दोनों जगत् के चित्र समाविष्ट हो जाते हैं और ‘मैं’ और ‘तू’ (त्वन्ता और अहन्ता) समाप्त हो जाते हैं—तुम उसे अपनी खुली या बंद आँखों से देखते हो, दोनों जातियों के बहुत से विद्वान, इस जगत् के बारे में ज्ञान नहीं रखते, अतः ‘सैयदुत्तायफ़ा उस्ताद अबुल क़ासिम जुनैद बुग़दादी (उनकी रूह सुकून में आराम पाए) ने हमें सूचित किया है, जैसा कि वह फ़र्माते है, ‘‘तसव्वुफ़ एक क्षण के लिए, बिना किसी सहवर्ती के बैठने में होता है।’’ शैख़ुल् इस्लाम ने पूछा कि ‘बिना सहवर्ती के’ से क्या तात्पर्य है? उन्होंने व्याख्या की, ‘‘इसका तात्पर्य है कि बिन चाहे प्राप्त करना और बिन देखे देखना, देखने की प्रक्रिया में देखने वाला कारण या निमित्त हो जाता है। क्योंकि इस प्रकार ‘बिना सहवर्ती के बैठना’ का तात्पर्य है कि आ’लम-ए-नासूत और ‘आ’लम-ए-मलकूत’ के चित्र (उस समय) मन में नहीं उभरते और मौलाना रूम (ईश्वर उनकी क़ब्र को पवित्र करे) ने भी ऐसे विषय पर संकेत किया है :
‘‘अगर तुम चाहो उसे पाना,
(4) तुरीय, लाहूत से अभिन्न है जो शुद्ध चैतन्य स्वरूप है, तीनों जगतों को व्याप्त किए हुए है। यदि कोई नासूत से मलकूत की, मलकूत से जबरूत की और इस आख़िरी से लाहूत की यात्रा करता है तो यह उसकी उन्नति समझी जाएगी, लेकिन ‘हक़ीक़तुल-हक़ायक़’ (परमात्मा का पूर्ण ज्ञान), जिसे भारतीय एकेश्वरवादी ‘अवसन’ कहते हैं। लाहूत से मलकूत में और तब जबरूत पर आता है, तब उसकी यह यात्रा नासूत में ख़त्म होती है। तथ्य यह है कि कुछ सूफ़ी लोगों ने अवतरण की भूमियों को चार की संख्या में वर्णित किया है, जबकि दूसरों ने उन्हें पाँच माना है।
8. शब्द की व्याख्या
शब्द प्रकट हुआ कृपालु (रहमान) के उस नि:श्वास के साथ जो विश्व-रचना के समय ‘कुन’ शब्द के साथ प्रकट हुआ। भारतीय सिद्धों ने उसे ‘सरस्वती’ कहा। यह शब्द सभी दूसरे शब्दों, ध्वनियों और नादों का स्रोत है :
‘‘सर्वत्र जो तुम सुनते हो उसका संगीत है
आख़िर, किसने सुनी है ऐसी दीर्घ आवाज़?’’
भारतीय एकेश्वरवादियों (सिद्धों) के अनुसार, इस शब्द के, जिसे ‘नाद’ कहते हैं, तीन प्रकार हैं—प्रथम अनाहत है, जो अनादि भूत में था, वर्तमान में है और भविष्य में उस प्रकार रहेगा। सूफ़ी लोग उस शब्द को ‘आवाज़-ए-मुत्लक़’ (नित्य शब्द) या ‘सुल्तानुल-अज़्कार’ (सभी जपों का बादशाह) कहते हैं। लेकिन यह शब्द, दोनों जातियों के प्रबुद्ध संतों को छोड़, सभी के लिए अश्रव्य होता है। दूसरा आहत, जो एक वस्तु के दूसरी वस्तु से टकराने पर पैदा होता है, ध्वनि-समुदाय है, जो शब्द में परिणत नहीं होता। शब्द ‘सरस्वती’ के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है और मुसलमान तत्त्वज्ञों का ‘इस्म-ए-आ’ज़म’ (या महान नाम) और भारतीय तत्त्वज्ञों का ‘वेद मुख’ या ‘ओम्’ (ॐ) है। ‘इस्म-ए-आ’ज़म’ का तात्पर्य है कि वह तीनों गुणों—सृष्टि, पालन और संहार—को धारण करने वाला है और फ़तहः, ज़म्मः व कसरः, जो अकरा, उकार और मकार से मेल रखते हैं, भी इस (इस्म-ए-आ’ज़म) से प्रकट हुए हैं। भारतीय एकात्मवादियों ने इस शब्द के लिए जो प्रतीक दिया है, जो हमारे ‘इस्म-ए-आ’ज़म’ से निकट का साम्य रखता है और जिसमें जल, अग्नि, वायु और रज तत्त्व हैं और जिसमें शुद्ध चैतन्य प्रकट हुआ है।
9. नूर का निरूपण
‘नूर’ तीन प्रकार का है। यदि यह जलाल (प्रताप) के गुण से प्रकट होता है तो यह या तो सूर्य-वर्ण, माणिक्य-वर्ण या अग्नि-वर्ण होता है, और यदि जमाल (सौंदर्य) के गुण से प्रकट होता है तो यह या तो चंद्र-वर्ण, मुक्ता-वर्ण या जल-वर्ण होता है और आख़िर में सत्त्व का प्रकाश आता है, जो सभी गुणों से रहित होता है। पवित्र मनुष्यों को छोड़ किसी में प्रकट नहीं होता, जिनके समर्थन में ईश्वर (जो विराट और पवित्र है) ने फ़र्माया है, “अल्लाह अपने प्रकाश की ओर जिसे चाहता है राह दिखाता है...’’ दूसरे नहीं प्राप्त करते हैं।
हे साथी, विचार करें उस पर जो मैंने कहा है, जैसा कि यह तीक्ष्ण विवेक तथा विचार का विषय है। अल्लाह के दूत (उन पर अल्लाह की असीम अनुकंपा हो) ने विचार की प्रशंसा में कहा है, ‘‘मनुष्य और परियों की साल भर की उपासना से एक क्षण की ध्यान में संलग्नता अच्छी है।’’ अब, पवित्र क़ुरआन से प्रकाश ज्ञेय है, “अल्लाह तआ’ला आकाशों और पृथिवियों का प्रकाश है।’’ वह भारतीयों द्वारा ज्योति-स्वरूप, स्व-प्रकाश और स्वयंप्रकाश कहा जाता है, जो सदैव स्वयं देदीप्यमान रहता है, चाहे संसार में दृश्य हो या न हो। अतः सूफ़ी लोग उस ‘नूर’ को ‘मुनव्वर’ शब्द से प्रकट करते हैं और हिंदू भारतीयों ने भी उसे उसी प्रकार वर्णित किया है। इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन में उल्लेख है, ‘‘अल्लाह आस्मानों और पृथिवी का प्रकाश है, उसके प्रकाश का एक साम्य एक गवाक्ष जैसा है, जिसमें एक दीप है, दीप एक काचघटी में है, (और) काच एक चमकता तारा जैसा है, वह इंगुदीफल के तेल से प्रज्वलित है, और वह इंगुदी वृक्ष न पूर्व का है और न पच्छिम का, तेल, जिसका सब कुछ प्रकाश देता है, यद्यपि अग्नि उसे नहीं छूती है। वह प्रकाश पर प्रकाश (प्रकाश से बढ़कर प्रकाश) है। अल्लाह उसी को अपना प्रकाश देता है, जिसे वह देना चाहता है।’’
लेकिन इस फ़क़ीर ने जो कुछ उपर्युक्त कथन से जाना, वह यह है कि ‘गवाक्ष’ पद ब्रह्माण्ड या मौलिक अस्तित्व को लेकर प्रयुक्त है। मिस्बाह या दीप ज्योति-स्वरूप को लेकर है और काचघटी आत्मा है, जो एक चमकता नक्षत्र है और इस दीप के कारण काचघटी भी दीप-सी ही लगती है। वह दीप प्रज्वलित है, शुद्ध चैतन्य को जानता है, जबकि ‘पवित्र वृक्ष’ (शज़र-ए-मुबारक) सत्य, पवित्र और शुद्ध ‘उस’ का वाचक है, जो पूर्व और पच्छिम की सीमाओं से स्वतंत्र है। ‘ज़ैत’ (इगुंदी तैल) से तात्पर्य है ‘परमात्मा’ (रूह-ए-आ’ज़म) जो अनादि और अनंत है। उसमें इगुंदी स्वयं ज्योतिर्मय और देदीप्यमान है, क्योंकि उसमें चारुता और शुद्धता है; और प्रकाशित होने का उसे प्रयोजन नहीं है। अतः उस्ताद अबू बक्र वासिती (उनसे अल्लाह राज़ी हो) रूह की परिभाषा करते हुए कहते है : आत्मा की काचघटी उस प्रकार प्रकाशमय है कि मर्त्यलोक की अग्नि (नार-ए-नासूत) की छुअन की अपेक्षा नहीं रखती और यह सन्निकट है कि अपनी अंतर्निहित सामर्थ्य के कारण स्वयं प्रकाशित होती है। यह ज़ैत तैल का प्रकाश ‘प्रकाश के ऊपर प्रकाश’ (नूरुन-अ’ला नूर) जो जानता है कि अपनी पवित्रता और प्रकाशमयता के कारण यह प्रकाश प्रकाश से भरा है, और कोई उसे इस प्रकाश से देख नहीं सकता जब तक ‘वह’ (परमात्मा) उसे अपने एकत्व के प्रकाश से रास्ता न दिखाए। इस तरह इन सभी पवित्र पद्यों के समुदाय का मुख्य तात्पर्य यह है कि श्रेष्ठ और शुद्ध ब्रह्म अपने सत्त्व के प्रकाश से अपने सुचारु तथा देदीप्यमान आवरणों के बीच प्रकाशित है, और कोई अंधकार या आवरण उसके बीच नहीं है। अब, उसके सत्त्व का प्रकाश रूहों का जनक, अबुल-अर्वाह आत्मा (रूह) के आवरण में, आत्मा (रूह) शरीर के आवरण में उसी प्रकार प्रकट होता है, जैसे दीप अपने को काचघटी के आवरण में दीप्त तथा प्रकाशित करता है। काचघटी गवाक्ष में रखी जाने पर इस प्रकार प्रकाश से प्रकाश (नूर-उन-अला नूर) को जोड़ते हुए अपनी दीप्ति को शुद्ध सत्त्व के प्रकाश में परिणत करती है।
10. ईश्वर के दर्शन का निरूपण
भारतीय एकेश्वरी ईश्वर के दर्शन को ‘साक्षात्कार’ कहते हैं, अर्थात् ईश्वर को अपनी सामान्य आँखों से देखना। समझो कि पैग़म्बरों ने (उन्हें सुकून मिले) या ऋषियों ने (उनकी रूहें शांति पाएँ) इहलोक या परलोक में बाहर की अथवा भीतर की आँखों से ईश्वर के दर्शन को संशय का या विवाद का विषय नहीं बनाया है, और दिव्य ग्रंथों के अनुयायियों, सिद्धों, मुनियों ने, चाहे क़ुरआन पर विश्वास रखते हों, चाहे वेद पर, चाहे तौरेत या पुराने और नए ‘टेस्टामेंट’ पर, इस प्रकरण में एक सामान्य यक़ीन रखते हैं। अब जो ईश्वर के दर्शन पर यक़ीन नहीं करता है, वह अपनी क़ौम का विचारवंचित और दृष्टिहीन सदस्य है, क्योंकि अगर परमेश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह ख़ुद को ज़ाहिर करने की सामर्थ्य क्यों नहीं रखेगा? इस बारे में सुन्नी मत के आ’लिमों ने बहुत स्पष्ट व्याख्या की है। लेकिन कहते हैं कि पवित्र आत्मा (ज़ात-ए-बहत) देखा जाता है, एक अ-संभावना है, क्योंकि पवित्र आत्मा यदि परिष्कृत और अनिश्चित है, वह सिर्फ़ सौंदर्य के आवरण में दृश्य होता है और इसलिए देखा नहीं जा सकता। इस प्रकार का दर्शन एक असंभाव्यता है, और यह सुझाव कि उसे परलोक में देखा जा सकता है न कि इहलोक में, निराधार है, क्योंकि यदि वह सर्वसामर्थ्यवान् है तो उसमें स्वयं किसी प्रकार, कहीं और किसी समय, जब चाहे, प्रकट होने की सामर्थ्य है। मैं समझता हूँ कि कोई उसे नहीं देख सकता (इस लोक में) और कठिनाई से देखता है (परलोक में), क्योंकि उसने कहा है, क़ुरआन में, और जो यहाँ अंधा (बना) रहा, ‘आख़िरत’ में भी वह बे-नूर ही रहेगा।
ईश्वर को प्रत्यक्ष न मानने वाले मो’तज़िला और शिया दार्शनिकों ने इस विषय में बहुत बड़ा अपराध किया है, क्योंकि अगर उन्होंने कहा है कि ईश्वर का दर्शन ग़ैर-मुमकिन है तो इसका अर्थ यह तो है ही कि उसका कोई रूप है, लेकिन उन्होंने ‘दर्शन’ के सभी प्रकारों का निषेध किया है, यह एक बड़ी भूल है। चूँकि ईश्वरीय संदेशवाहकों और सिद्धों में से कई ने अपनी सामान्य आँखों से ईश्वर को देखा और उसके पवित्र वचनों को बिना किसी माध्यम के सुना। और अब जब वे सर्वथा, ईश्वर के वचनों को सुनने में समर्थ हैं, तो क्यों उसे देखने में समर्थ नहीं हैं? वे ज़रूर वैसे हैं। और, जिस प्रकार ईश्वर, देवता, अपौरुषेय ग्रंथ, सिद्ध, महाप्रलय, पुण्य और पाप, तीर्थों में विश्वास आदि आवश्यक है, उसी प्रकार ईश्वर के दर्शन में भी विश्वास धार्मिक कर्तव्य है। नासमझ सुन्नी उ’लमा ने (भी) अर्थ और वचन की परंपरा का विरोध किया जिसमें आ’इशा सिद्दीक़ा ने पैग़म्बर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की असीम कृपा और दया हो) से पूछा, ‘‘अपने पर्वर्दिगार ख़ुदा को आपने देखा है?’’ जिसे पैग़म्बर ने फ़र्माया, “नूरन् इन्नी अराहु’’ (‘‘यह प्रकाश है जिसे मैं देख रहा हूँ’’) इसे इस प्रकार पढ़ा गया, “नूरन् इन्नी उराहु’’ (‘‘यह प्रकाश मैं कैसे देख सकता हूँ?’’) लेकिन यह परंपरा ईश्वर के दर्शन के विरोध में प्रमाण नहीं है, क्योंकि यदि पहली व्याख्या को हम रखते हैं तो यह प्रकाश के आवरण में उसका पूर्ण दर्शन (रूयत-ए-तमाम) होगा, लेकिन यदि हम इसे इस रूप में “यह प्रकाश है, मैं कैसे इसे देखता हूँ?” व्याख्या करते हैं, तब उसके शुद्ध और नीरूप चैतन्य को सूचित करता है। इस प्रकार, यह दोनों पाठ परस्पर विरुद्ध नहीं हैं, लेकिन यह हमारे नबी का चमत्कार है कि एक ही बात में उन्होंने दो प्रश्नों का उत्तर दे दिया।
और, पवित्र क़ुरआन की आयत है, “कितने चेहरे उस दिन खिले हुए होंगे अपने ‘रब’ की ओर देख रहे होंगे।’’ यह हमारे पर्वर्दिगार के, जिसकी शान ऊँची है, दर्शन के पक्ष में तर्क है, (जबकि) (पवित्र क़ुरआन का) वचन है, “(लौकिक) निगाहें उसे नहीं पातीं, लेकिन वह निगाहों को पा लेता है। वह अतिसूक्ष्मदर्शी और ख़बर रखने वाला है।’’ उसकी अरूपता को व्यक्त करता है। आँख उसे उसके अरूप को पूर्ण योग्यता में नहीं देख पाती, यद्यपि वह सबको देखता है और अतिशय चारुत्व और अरूपता को धारण करता है। और, ऊपर के पवित्र वचन में आए हुए शब्द ‘हु-व’ (वह) उसके शुद्ध चैतन्य की अदृश्यता (अप्रत्यक्षता) को सूचित करता है। अब ईश्वर के दर्शन के पाँच प्रकार हैं—पहला, मन की आँख से स्वप्न में देखना; दूसरा, सामान्य दृष्टि से उसे देखना; तीसरा, स्वप्न और जागरण के बीच की स्थिति, जो निरहंकारता रूप है, में उसे देखना; चौथा विशेष परिच्छिन्न स्थिति में (उसे देखना), पाँचवाँ, एक स्वरूप का बहुत से परिच्छिन्न, बाह्य और आभ्यंतर जगतों के बीच, देखना। जब हमारे पैग़म्बर (उन पर अल्लाह की असीम कृपा हो) ने उसे देखा उस समय वह ख़ुद अलग न थे और देखने वाला और दिखने वाला दोनों एक रूप हो गए थे, पैग़म्बर को स्वप्न जाग्रत् और निरहंता एक दिखाई देने लगे और उनकी आभ्यंतर और बाह्य आँखें, एकीभूत हो गईं। यही ‘पूर्ण दर्शन’ है, जिसे इहलोक और परलोक की अपेक्षा नहीं है और जो सभी देश और काल में संभव होता है।
11. ईश्वर के नामों का निरूपण
जानो कि अल्लाह तआ’ला के नाम असंख्य और समझ में बाहर हैं। निरपेक्ष, शुद्ध, रहस्यों का रहस्य और अपरिहार्य स्वरूप उसे भारतीय सिद्धों की भाषा में असन (असंग?), निर्गुण, निरंकार (निराकार), निरंजन, सत् और चित् नामों से जाना जाता है। यदि उसे ज्ञान से संबद्ध करें तो भारतीय सिद्ध उसे चितन (चेतन) कहते हैं, जबकि मुसलमान ‘अ’लीम’ कहते हैं। ‘अल्-हक़’ (सत्य) के लिए उनके पास (शब्द) ‘अनंत’ है, ‘क़ादिर’ (शक्तिमान्) के लिए ‘समर्थ’, ‘समीअ’ के लिए ‘सरुता’ (श्रोता) है और (देखने वाला) के लिए ‘द्रष्टा’ है। यदि उस परम सत्ता को वाणी का स्वरूप कहा जाए तो उसे वे ‘वक्ता’ कहते हैं। ‘अल्लाह’ को अपनी भाषा में वे ॐ (ओम्) कहते हैं, ‘हू’ को वे ‘सः’ कहते हैं और ‘फ़िरिश्ता’ को वे दीवता (देवता) कहते हैं। ‘पूर्ण आविर्भाव’ (मज़हर-ए –आ’लम) ‘अवतार’ कहा जाता है, जिसके माध्यम से परमेश्वर का सामर्थ्य ठीक उसी प्रकार दूसरे किसी अन्य विशेष वर्ग में, किसी विशेष अवधि में प्रकट नहीं होता। ‘वह्य’ (दिव्य प्रकटन), जो पैग़म्बरों पर उतरता है उसे ‘आकास बानी’ (आकाशवाणी) कहते हैं। यह नाम उसे इस कारण दिया गया है कि हमारे पैग़म्बर (परम सिद्ध), उन पर अल्लाह की अपार कृपा और दया हो, ने कहा है, ‘‘वह मेरे लिए कठिनतम क्षण है, जब मैं घंटियों के नाद या ततैयों की भिनभिनाने जैसी ‘वह्य’ सुनता हूँ, इस प्रकार आकाश से उतरने वाली वाणी ‘आकासबानी’ (आकाशवाणी) है। वे लोग अपौरुषेय वाणी (किताब) को ‘वेद’ कहते हैं, और जिनों में सुंदर जो परी हैं और ‘नछरा’ (अप्सरस्) कहते हैं, और जो पापी हैं उन्हें राछस (राक्षस) कहते हैं। ‘मनुख’ (मनुष्य) उनके अनुसार, मानव प्राणी हैं, जबकि ‘रिखी’ (ऋषि) रहस्यवादी (वली) और महासुध (महाशुद्ध) सिद्ध धर्म-प्रचारक (नबी) हैं।
12. सिद्धत्व और ऋषीश्वरत्व का निरूपण
सिद्धत्व और ऋषीश्वरत्व के तीन प्रकार है—(1) शुद्ध (निर्गुणत्व संबंध तंज़ीही) सिद्धत्व, (2) साम्य रखता हुआ (सगुणत्व संबंधी, तश्बीही) सिद्धत्व और (3) दोनों का समुदाय। प्रथम (निर्गुणत्व संबंधी तंज़ीही) सिद्धत्व नूह (उन पर सुकून क़ायम हो) का सिद्धत्व था, जिन्होंने निर्गुण रूप में ईश्वर को देखा और लोगों को (अपने धर्म में दीक्षित होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन कुछ को छोड़, उन्होंने उनके विश्वास को निर्गुणतत्व संबंधी होने के कारण, नहीं स्वीकार किया। और फलतः नाश के समुद्र में निमग्न हुए। इसी प्रकार हमारे समय के तपस्वियों ने ईश्वर के ‘शुद्ध दर्शन’ के लिए शिष्यों को आमंत्रित किया, लेकिन कोई भी शिष्य अब तक उस एक ‘आ’रिफ़’ (ब्रह्मज्ञानी) के पद पर नहीं पहुँचा और न ही वह उसके प्रवचनों से लाभान्वित हुआ, सुलुक (आध्यात्मिक यात्रा) और तरीक़त (आध्यात्मिक मार्ग) के द्वारा ईश्वर तक पहुँचा।
द्वितीय, तश्बीही सिद्धत्व, मूसा (उन्हें सुकून मिले) के सिद्धत्व के समान है, जिन्होंने स्वयं ईश्वर का साक्षात्कार वृक्ष की अग्नि में किया और मेघों से शब्द सुने। मूसा के अनुगतों के एक बड़े भाग ने मूसा पर अविश्वास होने पर गाय के बछड़े की पूजा शुरू की और पाप किया। आजकल, हमारे कुछ अनुगत (मुक़ल्लिदीन) जिनका जीवन केवल अंधानुकरण का व्यवसाय है, पवित्रता से अलग होकर शक और शंकाओं में डूब गए। उसी प्रकार सुंदर और आकर्षक चेहरों को देखने में आसक्त होकर खेल और खिलवाड़ करते हुए समय यापन करने लगे। किसी को ऐसे लोगों का अनुसरण नहीं करना चाहिए।
पद्य
‘‘प्रत्येक चित्ताकर्षक रूप, जिसे तू देख रहा है
तृतीय, तंज़ीही और तश्बीही (उभय रूप) सिद्धत्व, जैसा मुहम्मद (सल्ल.) का है, जो ‘मुत्लक़’ (शुद्ध) रंग के अधीन बेरंग, निर्गुण और सगुण, समीप और दूर सब कुछ हैं। पवित्र क़ुरआन में इस ‘महती प्रतिष्ठा’ का उद्धरण है, “उस जैसी कोई चीज़ नहीं, और वह सुनने और देखने वाला है।’’ पहला इशारा तंज़ीह के लिए है और दूसरा तश्बीह के लिए। यह विश्वजनीनता और पूर्णता की उच्चतम तथा उदात्ततम भूमि है, जो कि उन महान् (मुहम्मद सल्ल.) के लिए आरक्षित है। इस प्रकार हमारे संदेष्टा ने पूरे संसार को, पूर्व से पश्चिम तक घेर लिया है। अब निर्गुणत्व (तंज़ीही) सगुणत्व से रहित है और सगुणत्व (तश्बीही) निर्गुणत्व से रहित है। लेकिन संश्लिष्ट सिद्धत्व तंज़ीही (नीरूपत्व) और तश्बीही (समरूपत्व) को मिला देता है, जैसा कि पवित्र क़ुरआन में अंतर्निविष्ट है, ‘‘वह आदि है और वही अंत है, वही भीतर है और वही बाहर है।’’ इसी प्रकार सिद्धत्व संप्रदाय के परिपूर्ण में सीमित है, जिसकी प्रशंसा में अल्लाह ने फ़र्माया है, “तुम श्रेष्ठ समुदाय से हो जो लोगों में पैदा हुआ।’’ अर्थात् मेरे अनुयायियों में वे सबसे अच्छे हैं, जो निर्गुणत्व और सगुणत्व को मिलाते हैं। इस प्रकार हमारे संदेष्टा (सल्ल.) के समय में, रहस्यवादियों में से थे अबू बक्र, उमर, उ’स्मान, अ’ली, हसन और हुसैन, छ: बाक़ी (सित्त:-ए-बाक़िया), दस प्रतिनंदित (अ’श्रा-ए-मुबश्शरा) में मुहाज़िरों में महान् अन्सार और सूफ़ी।
और ताबि’ ईन के ज़माने में थे उवैस करनी वग़ैरह, और दूसरे काल के संत थे, जैसे ज़ुननून मिस्री, फ़ुज़ैल अयाज़, मारूफ़ करख़ी, इब्राहीम अद्हम, बिस्र हाफ़ी, सिर्रियुस्सकती, बायज़ीद बिस्तामी, उस्ताद अ’बुल क़ासिम जुनैदी, सह्ल बिन अ’ब्दुल्लाह अत्तुस्तरी, अबू सई’द ख़राज़, रुवैम, अ’बुल हसन अन्नूरी, इब्राहीम ख़वास, अबू बक्र शिब्ली, अबू बक्र वासिती और इस प्रकार के लोग। दूसरे काल में थे अबू स’ ईद अबुल ख़ैर, शैख़ुल इस्लाम, ख़्वाजा अ’ब्दुल्लाह अन्सारी, शैख़ अहमद जाम, मुहम्मद मा’ शूक़ तूसी, अहमद ग़ज़ाली और अ’ब्दुल क़ासिम गुरगानी। बा’द के काल में अन्य (संत) थे, जैसे मेरे पीर (आध्यात्मिक गुरु) शैख़ मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी, अबू मदीनुल मग़्रिबी, शैख़ मुहीउद्दीन इब्नुल अ’रबी, शैख़ नजमुद्दीन कुब्रा, शैख़ फ़रीदुद्दीन अ’त्तार और मौलाना जलालुद्दीन रूमी। और बा’द के समय में थे ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती, ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबंद, ख़्वाजा अहरार, मौलाना अ’ब्दुर्रहमान जामी। अन्य काल के थे जैसे मेरे शैख़ जुनैद शाह मीर, मेरे गुरु मियाँ बारी, मेरे मुर्शिद मुल्ला शाह, शाह मुहम्मद दिलरुबा, शैख़ तय्यब सरहिंदी और बावा लाल बैरागी।
13. ब्रह्माण्ड-निरूपण
‘ब्रह्माण्ड’ से तात्पर्य है ‘सब’ (कुल), जो वृत्त या गोले के रूप में हज़रत–ए-वजूद (ईश्वर) के निश्चय को व्यक्त करता है और चूँकि यह किसी की ओर नहीं झुकता, और न किसी से जुड़ता है। इसका भाग सब ओर से समान होता है और प्रत्येक सृष्टि या प्रदर्शन इसके भीतर होता है। भारतीय एकात्मवादियों ने इसे ‘ब्रह्माण्ड’ नाम दिया है।
14. दिङ्निरूपण
मुसलमान एकात्मवादी पूर्व, पच्छिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर और नीचे प्रत्येक की अलग दिशा मानते हैं। अतः उनके अनुसार छह दिशाएँ हैं, जबकि भारतीय एकात्मवादियों की गिनती के अनुसार, दस दिशाएँ हैं। वे पूर्व, पच्छिम, उत्तर और दक्षिण के अंतरालों में भी दिशाएँ (ईशान, आग्नेय, नैर्ऋत्य और वायव्य) मानते हैं, इसलिए उन्हें ‘दस दिशा’ नाम देते हैं।
15. आकाशों का निरूपण
आकाश, जिन्हें भारतीय ‘गगन’ कहते हैं, संख्या में आठ हैं। इनमें सात आकाश सात ग्रहों के भ्रमणशील सरणि रूप हैं, अर्थात् जुह्ल़ (शनि), मुश्तरी (वृहस्पति), मिर्रीख़ (मंगल), शम्स (सूर्य), जुह्रा (शुक्र), उ’तारुद (बुध) और क़मर (चंद्र)। भारतीय भाषा में इन्हें सात निछत्तर्ज (नक्षत्र) कहा जाता है, जैसे शनीचर (शनैश्चर), ब्रस्पत (वृहस्पति), मंगल, सूरज (सूर्य), सुकुर (शुक्र) बुद्ध और चंद्रमस्। ये सभी स्थिर तारे, जो आकाश में रहते हैं, आठ माने जाते हैं, और विद्वान् लोग इस आकाश को अष्टग्रहक या फ़लक-ए-सवाबित कहते हैं, जब कि मुसलमान धार्मिक विद्वान् (अह्ल-ए-शर) अपनी धार्मिक परिभाषा में इसे ‘कुर्सी’ कहते हैं। पवित्र क़ुरआन की आयत है, “उसका प्रभुत्व (कुर्सी) आकाशों और धरती पर छाया हुआ है।’’
नवाँ आकाश, जो ‘महाकाश’ कहलाता है, आकाशों की सूची में सम्मिलित नहीं है, क्योंकि यह (महाकाश) सभी को घेरे हुए है, यहाँ तक कि कुर्सी, आकाश और पृथिवी इसमें अंतर्निहित हैं।
16. पृथिवी-निरूपण
भारतीयों के अनुसार पृथिवी को चार परतों में विभक्त किया गया है, जिन्हें ‘सपत ताल’ (सप्त तल) कहते हैं। उनके नाम हैं—अतल, बतल (वितल), सुतल, तलातल, महतल, रसातल और पाताल। मुसलमानों के अनुसार भी, पृथिवी की सात परतें हैं, जैसा कि पवित्र क़ुरआन में है, “अल्लाह ही है जिसने सात आकाश पैदा किए और उन्हीं की तरह (कई) धरती भी।’’
17. पृथिवी के विभाग का निरूपण
मुस्लिम विद्वानों के निवास स्वरूप भूमंडल के सात विभाग किए हैं, जिन्हें वे हफ़्त इक़्लीम कहते हैं। उन्हें भारतीय लोग ‘सप्तदीप’ कहते हैं। वे लोग सातों क्षेत्रों को एक प्याज़ की परतों की तरह एक दूसरे पर आवृत्त नहीं मानते, बल्कि वे उन्हें एक सीढ़ी के पायदानों की भाँति समझते हैं और सात पर्वत, जिन्हें भारतीय लोग ‘सप्त कुलाचल’ कहते हैं, मानते हैं कि प्रत्येक क्षेत्र को घेरे हुए हैं। उनके नाम हैं—(1) सुमिरु (सुमेरु), (2) समूपत (शक्तिमाली), (3) हिमकूट (हेमकूट), (4) हिमवान् (हिमवत्), (5) नकध (निषध) (6) पारजात्र (पारियात्र), (7) कैलास।
इसी प्रकार यह क़ुरआन में भी उल्लिखित है, “और पहाड़ों को मेख़ (शंकु)।’’ या’नी “पहाड़ों को हम धरती की खूँटियाँ समझते हैं।
सातों पर्वतों में से प्रत्येक के चारों ओर सात समुद्र हैं, जो प्रत्येक को घेरे हुए हैं, ये सप्त समुद्र कहे जाते हैं—(1) लवण-समुद्र या नमक का सागर, (2) इक्षुरस-समुद्र या ईख के रस का सागर, (3) सुरा-समुद्र या मदिरा का सागर, (4) घृत-समुद्र या घी का सागर, (5) दधि-समुद्र या दही का सागर, (6) क्षीर-समुद्र या दूध का सागर और (7) ह्वादु जल-समुद्र या मधुर जल का सागर। सात समुद्रों की संख्या क़ुरआन की इस आयत से है, “और धरती में जितने वृक्ष हैं, अगर वे सब लेखनी हो जाएँ और यह समुद्र हो जिसे सात और समुद्र रोशनाई पहुँचाएँ तब भी अल्लाह की बातें (लिखने से) समाप्त न हों।’’ अब प्रत्येक ज़मीन, पर्वत और नदी में सृष्टियों का प्रकार है। ज़मीन, पर्वत और नदी, जो सभी ज़मीनों, पर्वतों और नदियों से ऊपर हैं, को भारतीय आचार्य स्वर्ग कहते हैं, जो दूसरे शब्दों में बिहिश्त या जन्नत (पैराडाइज़) कहलाता है। अब ज़मीन, नदी और पर्वत, जो नीचे (सभी) ज़मीनों, पर्वतों और नदियों के नीचे (अधोभाग में) है, को नरक या दोज़ख़ और जहन्नम, नरक और आभ्यंतर अग्नि कहा जाता है। भारतीय एकात्मवादियों ने निश्चय किया है कि स्वर्ग और नरक इस संसार के बाहर नहीं हैं, जिसे ब्रह्माण्ड कहा जाता है। उनका यह भी मानना है कि सात आकाश जो सात ग्रहों के अधिष्ठान हैं, स्वर्ग के ऊपर नहीं है, बल्कि उसके चारों ओर घूमते हैं। स्वर्ग की छत को ‘मन आकाश’ कहते हैं। उसे हमारे लोग ‘अ’र्श’ कहते हैं और स्वर्ग की भूमि को कुर्सी।
18. बर्ज़ख़ का निरूपण
हमारे महासिद्ध, उन पर अल्लाह की कृपा और दया हो, ने फ़र्माया है, “जो मर जाता है वास्तव में उसके लिए पुनरुत्थान है।’’ मृत्यु के बा’द आत्मा, जो रूह है, भौतिक शरीर को छोड़कर, तत्काल ‘मुक्त’ शरीर, जिसे सूछम सरीर (सूक्ष्म शरीर) कहते हैं, में प्रवेश कर जाता है। यह एक सुंदर शरीर है, जो हमारे कर्मों के अनुसार निर्मित होता है। धर्म र्म अच्छा रूप वाला तथा अधर्म कर्म बुरे रूप वाला होता है। क़यामत के ‘प्रश्न और उत्तर’ (जो मृत्यु के बा’द किए जाएँगे) के बा’द जो स्वर्ग के योग्य हैं, उन्हें अविलंब स्वर्ग पहुँचाया जाएगा और जो नरक के पात्र हैं उन्हें नरक, जैसा कि पवित्र क़ुरआन में कहा है, तो जो अभागे होंगे वे आगे में होंगे, जहाँ उनके लिए साँस खींचना और फिर फुँकार मारना होगा (106), वे सदैव उसी में रहेंगे, जब तक आकाश और धरती स्थिर हैं, हाँ, यदि तेरा ‘रब’ ही चाहे तो दूसरी बात है। निःसंशय तेरा ‘रब’ जो चाहे कर डाले (107)। और रहे वे लोग जो भाग्यवान् होंगे तो वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे सदैव रहेंगे, जब तक कि आकाश और धरती स्थिर हैं, हाँ अगर तेरा रब ही चाहे तो दूसरी बात है। यह एक देन है, जिसका सिलसिला कभी न टूटेगा।
‘नरक से बाहर निकालने’ का मतलब है कि आकाशों और पृथिवियों के नाश के पहले, यदि वह चाहे, निकाल दे (पापी व्यक्ति को) नरक से, और उसे स्वर्ग पहुँचा दे। इस वचन की व्याख्या करते हुए इब्न –ए-मसऊ’द, उनसे अल्लाह राज़ी रहे, ने कहा है कि एक ऐसा भी समय नरक के (जीवन) में आएगा, जब लंबे ठहराव के बा’द कोई भी इसके भीतर नहीं रहेगा। ‘स्वर्ग से बाहर निकालने’ का तात्पर्य है कि आकाशों और पृथिवियों (द्यावा-भूमियों) के नाश के पहले, ईश्वर, यदि चाहे तो उच्च स्वर्ग (फ़िर्दौस-ए-आ’ ला) के निवासियों को अपनी असीम उदारता के कारण उच्चतर स्वर्ग में भेज सकता है। “और अल्लाह की ख़ुशी और रज़ामंदी तो सबसे बड़ी चीज़ है।’’ इसका अर्थ है कि अल्लाह के पास एक स्वर्ग है, जो दूसरे स्वर्गों से विशालतर है।
भारतीय इसे ‘बेकुंठ’ (वैकुंठ) कहते हैं, जो भारतीय एकात्मवादियों की मान्यता में महामुक्ति है।
19. महाप्रलय-निरूपण
भारतीय एकात्मवादी सिद्ध यह मानते हैं कि स्वर्ग अथवा नरक में रहने के बा’द महापर्ली (महाप्रलय) या महानाश होगा। उसे भी पवित्र क़ुरआन से निश्चय करना चाहिए। “फिर वह जब बड़ी वाली आपत्ति आएगी।’’ आगे की ‘सूरत’ भी ऐसी ही कहती है, “और ‘सूर’ (क़यामत के समय दो बार फ़रिश्ता इस्राफ़ील द्वारा बजाई गयी तुरही) में फूक मारी गई कि बेहोश हो गया, जो भी था आकाशों में और जो भी था धरती में, सिवाय उसके जिसे अल्लाह ने चाहा कि बेहोश न हो।’’
यह (अपवाद) उन ज्ञानी लोगों (आ’रिफ़ों) को सूचित करता है, जो बेहोशी और बेख़बरी, दोनों से इस या उस संसार में सुरक्षित हैं। अब, आकाशों के विपर्यस्त होने, स्वर्गों और नरकों के नष्ट होने तथा ब्रह्माण्ड की आयु के पूर्ण होने के बाद, स्वर्ग और नरक के निवासी मुक्ति को प्राप्त करेंगे। ये दोनों ही शुद्ध ब्रह्म में ऐक्य प्राप्त होंगे, जैसा कि पवित्र क़ुरआन में कहा है, “जो भी इस धरती पर है, विनाशवान् है, और तुम्हारे ‘रब’ का प्रतापी और उदार स्वरूप शेष रहेगा।’’
20. मुक्ति का निरूपण
मुक्ति, अर्थात् शुद्ध चैतन्य में परिच्छिन्नों का विलय या विगलन। जैसा कि पवित्र क़ुरआन की इस आयत से पता चलता है, “और अल्लाह की ख़ुशी और रज़ामंदी तो सबसे बड़ी चीज़ है। यही बड़ी सफलता है।’’ रिज़्वान-ए-अकबर (उच्च स्वर्ग) में प्रवेश महामुक्ति, परम मोक्ष कहलाता है। मुक्ति तीन प्रकार की है—पहली जीवन्मुक्ति या जीवन की स्थिति में मोक्ष। भारतीयों के अनुसार, जीवन्मुक्ति किसी के मोक्ष या स्वतंत्रता की प्राप्ति होने पर होती है। वह ज्ञान-संपत्ति और सत्य -परिचय से होती है। जीवन्मुक्त व्यक्ति इस संसार की प्रत्येक वस्तु को समष्टि रूप में देखता-समझता है और कर्मों, संचरणों, शुभ-अशुभ आदि को न अपने और न किसी और से संबंद्ध करता है। सृष्टि के साथ अपने सत्य स्वरूप को जानता है। वह सभी भूमियों और सर्व ब्रह्माण्ड में ईश्वर को स्वयं प्रकट होते हुए देखता और जानता है। इसे सूफ़ी लोग ‘आ’लम-ए-कुब्रा (या महान् जगत्) कहते हैं, वही परमेश्वर का ‘समष्टि रूप’ ईश्वर का भौतिक शरीर है। वह उ’न्सुर-ए-आ’ज़म (महाभूत) अर्थात् ‘महाकाश’ को सूक्ष्म शरीर या ईश्वर का सुंदर शरीर समझता है और ईश्वर के शुद्ध चैतन्य को उस शरीर का आत्मा समझता है। सब कुछ ईश्वर का व्यक्तित्व समझने के कारण कण से लेकर पर्वत तक वह ईश्वर के अतिरिक्त कुछ नहीं देखता। जैसे कि मनुष्य (जिसे लघु संसार कहा गया है) अलग-अलग अंगों के होते हुए भी एक ही व्यक्तित्व है। इस प्रकार वह विलक्षण चैतन्य बहुविध नहीं माना जाता, निश्चयों की विविधता के कारण।
पद्य :
‘‘समस्त जगत्, चाहे आत्माएँ हों चाहे शरीर हो
एक निश्चित व्यक्ति है, जिसका नाम संसार है’’
जीवन्मुक्त पवित्र और उच्च ईश्वर को यहाँ तक कि बाल-बाल तक उस ‘निश्चित व्यक्ति’ (संसार या सृष्टि) की आत्मा और जीव समझता है। जैसा कि शेख़ सादुद्दीन हम्वी ने फ़र्माया है :
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