दारा शिकोह के सूफ़ी साहित्य
मज्म 'उल् बह्रैन
मज्म'उल बह्रैन बिस्मिल्लाहिर रहमानिर्रहीम ब-नाम-ए-आँ कि ऊ नामे न-दारद ब-हर नामे कि ख़्वानी सर बर-आरद हम्द-ए-मौफ़ूर यगानः-ए-रा कि दो ज़ुल्फ़-ए-कुफ़्र-ओ-इस्लाम कि नुक़्तए-मुक़ाबिल बहम अंद,बर चेहरः-ए-ज़ेबा-ए-बे-मिस्ल-ओ-नज़ीर-ए-ख़्वेश ज़ाहिर गर्दानीद
दारा शुकोह और बाबा लाल बैरागी की वार्ता
नोट - 22 नवंबर 1653 को जब कंधार में असफल होने के बाद हारा हुआ शहजादा दारा शुकोह लाहौर पहुंचा। दारा शिकोह तीन सप्ताह (दिसंबर 1653 के मध्य तक ) लाहौर में ही ठहरा। आगे चलकर होने वाली एक तवील सात दिनों की वार्ता मे जिन दो महान हस्तियों ने हिस्सा लिया वो
रिसाला-ए-हक़-नुमा
रिसाला-ए-हक़-नुमा मुसन्निफ़ दारा शुकोह तर्जुमा आ’दिल असीर देहलवी बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ‘हु-वलअव्वलु वल-आख़िरु वल-ज़ाहिरु वल-बातिनु’ ता’रीफ़ उस ज़ात की जो कि मौजूद-ए-मुतलक़ है और ना’त उस नबी कि जो कि मज़हर-ए-कुल और ख़लीफ़ा-ए-हक़ हैं और आप की
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere