इस्म-ए-अल्लाह
चूँकि जामिइयत है इस की मज़हरीयत का शरफ़ सिर्फ़ हक़ीक़त-ए-इन्सानी ही को हासिल है और जामिइयत-ए-इलाही का परतव हक़ीकत-ए-मुहम्-म-दीया ही के आईना में रूनुमा हुआ। बा'ज़ का क़ौल है कि ये इस्म जामिद है और मुश्तक़ और मुश्तक़ मिन्हु के पैदा होने के पहले से है। बा’ज़ का क़ौल है कि मुश्तक़ है इलाह या लह से। ये लोग कहते हैंकि इस्म की अस्ल इलाह थी और मा’बूद के वास्ते इसे बोला जाता था। उस पर अलिफ़ लाम ता’रीफ़ का दाख़िल हुआ तो वो अलइलाह हो गया। कसरत-ए-इस्ति’माल से बीच का अलिफ़ गिर गया तो अल्लाह हो गया।
(1) पहले अलिफ़ से अहदीयत मुराद है जिस में कसरत ग़ुम है। चूँकि अहदीयत तजल्लियात-ए-ज़ात से बिज़-ज़ात पहले थी ये अलिफ़ भी इस्म से पहले आया। जिस तरह अहदीयत अपनी अहदीयत से मुनफ़रिद है ये अलिफ़ भी अपनी ज़ात में मुनफ़रिद है। किसी दूसरे हर्फ़ से मुतअ’ल्लिक़ न हुआ। जिस तरह अहदीयत में कसरत मख़्फ़ी है इस अलिफ़ में भी (अलिफ़,लाम,फ़ा) मख़्फ़ी हैं। ये मख़्फ़ी अलिफ़ बिसातत-ए-ज़ात की तरफ़ इशारा है। मख़्फ़ी लाम सिफ़ात और अफ़आ'ल-ए-क़दीमा की जानिब इशारा करता है।मख़्फ़ी फ़ा अपनी शक्ल के ए'तबार से मफ़ऊलात पर दलालत करती है और अपने नुक़्ता के ए'तबार से ख़ल्क़ की ज़ात को ऐन-ए-हक़ के वजूद में ज़ाहिर करती है। फ़ा के सर के गोल होने से उस के ग़ैर मु-त-नाही होने की जानिब इशारा है। या’नी ये कि मुम्किनात बे-इंतिहा हैं क्योंकि दायरा की इब्तिदा और इंतिहा नहीं होती। सर के ख़ाली होने से इशारा है फ़ैज़ान के क़ुबूल करने की सलाहियत की जानिब। फ़ा के सर का नुक्ता गोया उस सर का दायरा है और एक लतीफ़ इशारा है कमाल-ए-उलूहियत की उस अमानत की जानिब जिस का मु-त-हम्मिल इन्सान है।
(2) पहले लाम से मुराद जलाल है क्योंकि जलाल को ज़ात से ज़्यादा क़ुर्ब है ब-मुक़ाबला जमाल के।
(3) दूसरे लाम से मुराद जमाल-ए-मुतलक़ है।
(4) अलिफ़ जो किताबत में गिरा हुआ है लेकिन तलफ़्फ़ुज़ में साबित है। कमाल का अलिफ़ है किताबत में उस का गिरा होना कमालात के बे इंतिहा होने की तरफ़ इशारा है कोई आँख उस का इद्राक नहीं कर सकती।
(5) हा से उस की हुवीयत मुराद है। दायरा, हा को हक़ से तश्बीह दी जाए तो जौफ़ को ख़ल्क़ से तश्बीह दी जाएगी । गोया हा के गोल होने से वजूद-ए-हक़्क़ी व ख़ल्क़ी की चक्की का इन्सान पर घूमना एक लतीफ़ मगर खुला हुआ इशारा है।
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