Sufinama

कमर पर अशआर

कमर सीधी करने ज़रा मय-कदे में

अ'सा टेकते क्या 'रियाज़' हे हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

दहन है छोटा कमर है पतली सुडौल बाज़ू जमाल अच्छा

तबीअत अपनी भी है मज़े की पसंद अच्छी ख़याल अच्छा

शाह अकबर दानापूरी

है बारीक तार-ए-नज़र से ज़्याद

दिखाई देगी कमर देख लेना

अकबर वारसी मेरठी

पर करामत है क़बा-ए-सुर्ख़ में तेरी कमर

वर्नः मू साबित नहीं रहता है दिलबर आग में

शाह नसीर

वह्म है शक है गुमाँ है बाल से बारीक है

इस से बेहतर और मज़मून-ए-कमर मिलता नहीं

मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन

कमर उस की नज़र आए साबित हो दहन

गुफ़्तुगू उस में अ’बस उस में है तकरार अ’बस

शाह अकबर दानापूरी

था शबाब कमर में 'रियाज़' ज़र होता

तो दिन बुढ़ापे के भी नज़्र-ए-लखनऊ करते

रियाज़ ख़ैराबादी

मिरे क़त्ल को आए इस सादगी से

छुरी हाथ में है ख़ंजर कमर में

राक़िम देहलवी

क्या लगाया यार ने सीने में ही तीर-ए-निगाह

क़ौस की मानिंद मेरा कज कमर होने लगा

किशन सिंह आरिफ़

ख़ुदा-हाफ़िज़ है उस गुल की कमर का

ग़ज़ब झोंके चले बाद-ए-सहर के

आसी गाज़ीपुरी

अ’द्म की हक़ीक़त खुलेगी तमाम

तिरी ज़ुल्फ़ जब ता कमर जाएगी

इमाम बख़्श नासिख़

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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