Saakhi of Sundardas Chhote
प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।
सुन्दर स्वाद न प्रीति बिन, भूख बिना ज्यौं अन्न।।
प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।
सुन्दर स्वाद न प्रीति बिन, भूख बिना ज्यौं अन्न।।
तीन गुननि की वृत्ति मंहि, है थिर चंचल अंग।
ज्यौं प्रतिबिबंहि देषिये, हीलत जल के संग।।
तीन गुननि की वृत्ति मंहि, है थिर चंचल अंग।
ज्यौं प्रतिबिबंहि देषिये, हीलत जल के संग।।
पाप पुण्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाउं।
सुन्दर सब कछु मानिले, ताहीतें मन नांउ।।
पाप पुण्य यह मैं कियौ, स्वर्ग नरक हूँ जाउं।
सुन्दर सब कछु मानिले, ताहीतें मन नांउ।।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere