क़व्वाली
रोचक तथ्य
کتاب ’’قوالی امیر خسرو سے شکیلا بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔
क़व्वाली एक फ़न है या’नी एक सिंफ़-ए- मौसीक़ी जिसमें चंद ख़ुश-गुलू मुश्तरका तौर पर बा-ज़ाबता राग रागनी और ताल ठेकों की बुनियाद पर नग़्मा-सरा होते हैं, इस में इब्तिदा ही से दफ़ सितार मर्दाना ताली, तबला और ढोलक की आवाज़ें शामिल रही हैं और जूँ-जूँ वक़्त गुज़रता गया इसमें मुख़्तलिफ़ मश्रिक़ी-ओ-मग़्रिबी साज़ों का इज़ाफ़ा होता गया, यहाँ तक कि मौसीक़ी की आ’म महफ़िलों में जितने साज़ इस्तिमाल किए जाते हैं, उनमें से तक़रीबन निस्फ़ साज़ क़व्वाली में आज शामिल हैं। क़दीम क़व्वाली में इब्तिदा ही से जो जो साज़ शामिल रहे हैं, उनका तज़्किरा मज़हब की बुनियाद पर लिखी गई किताबों में कहीं नहीं मिलता लेकिन ।तारीख़ी तहक़ीक़ी कुतुब में उनका ज़िक्र जा-ब-जा मौजूद है जिनके हवाले अगले सफ़हात में पेश किए जा रहे हैं। मुतज़क्किरा साज़ों का क़व्वाली में शामिल रहना और समा’अ में ममनूअ क़रार दिया जाना ख़ुद इस बात का सुबूत है कि क़व्वाली समा’अ से क़तई मुख़्तलिफ़ चीज़ है।
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